जनरल रावत चमक रहे थे
मैं अब्बासी – हिंदू नेता , हिंदू – धर्म मिटा दूॅंगा ;
किसी तरह से बचा है भारत , उसको भी निपटा दूॅंगा ।
अपार – दौलत पास है मेरे , तरह-तरह से लूट रहा हूॅं ;
चंदा लेकर ही धंधा देता , वरना जेलों में ठूॅंस रहा हूॅं ।
जितने कानून भी आड़े आते, मनमाफिक उनको तोड रहा हूॅं ;
संविधान भी न छोडूॅंगा , योजना उसकी बना रहा हूॅं ।
केवल अपना जयकारा भाता ,भगवान को छोटा बना रहा हूॅं ;
औलिया से बन चुका मसीहा , खुद का मजहब बना रहा हूॅं ।
चरित्र नाम है जिस चिड़िया का , देश से उसको भगा रहा हूॅं ;
चरित्रहीनता रग-रग में है , उसी में डुबकी लगा रहा हूॅं ।
केवल मेरा – जीवन है प्यारा , बाकी जायें भाड़ में ;
हर घंटे मैं बदलू कपड़े , पूरा – पाखंड है आड़ में ।
महामूर्ख हिंदू-बेचारा , क्या खाकर मुझको समझ सकेगा ?
शत-प्रतिशत मैं झूठ बोलता , क्या कोई इसको मान सकेगा ?
सदियों से दबा हुआ है हिंदू , अपनी नियति मान रहा है ;
इसीलिए मैं आसानी से , उनसे धर्म को छीन रहा हूॅं ।
सबको मैंने भ्रष्ट कर दिया और अपना यस-मैन बनाया ;
पर न्यायपालिका व सेना से , मैं सदा-सदा मुॅंह की खाया ।
क्योंकि स्वतंत्र है न्यायपालिका , मेरा जादू चल न पाया ;
पर सेना मेरी मुट्ठी में थी , अग्नि-वीर उसमें घुसवाया ।
रेजीमेंटल – सिस्टम तोड़ा , सेना को कमजोर बनाया ;
अब्राहमिक अपने मित्रों पर , मैंने भारत-वर्ष लुटाया ।
पर देशभक्ति से पूर्ण-प्रकाशित, जनरल-रावत चमक रहे थे ;
मेरे जैसे अब्बासी – हिंदू , उनसे थर-थर कांप रहे थे ।
पर मेरी कुटिल-चाल के चलते , ये कांटा भी साफ हुआ ;
बड़े-बड़े सेना – अधिकारी संग , हेलीकॉप्टर क्रैश हुआ ।
अंतिम – खतरा न्यायपालिका , अगली बार मिटा दूॅंगा ;
संविधान ऐसा लाऊॅंगा , निष्कंटक मैं ही राज करूॅंगा ।
हिंदू को कमजोर कर चुका , कितने मंदिर तोड़ चुका हूॅं ;
तीर्थ-स्थल सब धूल-धूसरित , सैरगाह सब बना चुका हूॅं ।
देवालय टूट बने शौचालय , झूठे-इतिहास की गंदी-शिक्षा ;
सरकारी पदों में म्लेच्छ भर रहा , हिंदू को सरकारी-भिक्षा ।
पाॅंच-किलो अनाज की भिक्षा , इसीलिये मैं देता हूॅं ;
हिंदू से मैं इसके बदले , उनका सब-कुछ ले लेता हूॅं ।
गजवायेहिंद है मेरा मकसद , पूरा करवाके जाऊॅंगा ;
ईवीएम बस रहे सलामत , निश्चित मैं ऐसा कर पाऊॅंगा ।