राजनीति का गिरता स्तर , नीचे ही नीचे जाता ;
कितनी गंदी हो गयी भाषा ? बटन दबाकर फाँसी देता ।
कोई शर्म नहीं है बाकी , वस्त्रहीन हों जैसे सारे ;
एक हमाम में नहा रहे हैं , सत्ता – लिप्सा के ये मारे ।
कितनी गंदी सत्ता-लिप्सा है ? कितना नीचे ले जायेगी ?
अंतहीन अय्याशी जिनकी , गर्त में ही ले जायेगी ।
सत्ता के ये महा-जुँआरी , देश दाँव पर लगा दिया ;
सारी अंधी चालें चलकर , सब कुछ मटियामेट कर दिया ।
वो तो हिंदू सहनशील है , खामोशी से सब कुछ सहता ;
पर अब सीमा टूट रही है , आखिर मरता क्या न करता ?
अब्बासी-हिंदू का पूर्ण सफाया,हिंदू ने मन में ठान लिया है ;
बटन दबाकर फाँसी देना , अब हिंदू ने जान लिया है ।
हर चुनाव में बटन दबेगी , गुंडा फाँसी पायेगा ;
अब्बासी – हिंदू की खैर नहीं है , हर सत्ता से जायेगा ।
उल्टा – दाँव पड़ गया उसका , सत्ता हाथ से जायेगी ;
अब तो ऐसा बटन दबेगा , रस्सी गले में आयेगी ।
अब्बासी-हिंदू के दाँव थे जितने , सब उल्टे पड़ जायेंगे ;
चौबे छब्बे बनने निकले थे , पर दुबे से नीचे जायेंगे ।
सदा घमंडी का सर नीचा , अहंकार का मुँह काला ;
खत्म हुये इसके अच्छे दिन , अब किस्मत में बंद है ताला ।
जैसी करनी वैसी भरनी , जनता ही सजा सुनायेगी ;
ईवीएम का बटन दबाकर , फाँसी पर लटकायेगी ।
यही प्रकृति का न्याय सदा से , कोई भी न बच पाया ;
खुद को ऊँचा मानने वाला , ऊँट पहाड़ के नीचे आया ।
जिनको तूने भुनगा समझा , आँखों में घुस जायेंगे ;
बड़बोलापन नहीं काम का , लेने के देने पड़ जायेंगे ।
अबतक तेरी किस्मत अच्छी थी,क्योंकि हिंदू अनजान रहा ;
जागरूक अब हो रहा है हिंदू , तुझको ठीक से जान रहा ।
अब काठ की हांडी नहीं चढ़ेगी , एक बार ही चढ़ती है ;
तेरी हांडी कब की जल गयी ? हिंदू जनता ये समझती है ।
बेहतर है चुपचाप चला जा , थोड़ी फजीहत कम होगी ;
अपनी जगह योग्य आने दे , हार करारी कम होगी ।
अब्राहमिक – एजेण्डा तेरा , कभी पूर्ण न हो पायेगा ;
“एकम् सनातन भारत” दल अब, “राम-राज्य” को लायेगा ।