मस्जिदें बनवाने जा रहा हूँ,
मदरसे लगवाने जा रहा हूँ,
हेडगेवार की सीख छिपाने जा रहा हूँ,
गोलवलकर की पुस्तकें, चिट्ठियाँ हटा रहा हूँ,
हिन्दू-समाज के बैरियों की वाहवाही चाह रहा हूँ,
दलील स्वार्थ में डूब-उतरा रहा हूँ,
जानकारों, नीतिवानों से भाग रहा हूँ,
भोले स्वयंसेवकों को बहला रहा हूँ,
हिन्दू समाज को धमका रहा हूँ,
अपनी पार्टी चमका रहा हूँ,
दूसरी हिन्दू पार्टियों को गलिया रहा हूँ,
सत्ता संयोजन का सुख भोग रहा हूँ,
पिछली बातों-करनियों से पल्ला झाड़ रहा हूँ,
अपने मुँह-मियाँ मिट्ठू बन रहा हूँ,
सारी शिक्षा संस्थाएं कब्जा रहा हूँ,
बौड़मों धंधेबाजों को जमा रहा हूँ,
सच्चा शिक्षण-वाचन मिटा रहा हूँ,
बस अंधनेता-भक्ति फैला रहा हूँ,
सच्चों पर कीचड़ फेंक रहा हूँ,
झूठों से यारी गाँठ रहा हूँ,
पर सब कर्म-कुकर्म जिम्मेदारी से भाग रहा हूँ,
ऐसे परम होशियार बन रहा हूँ,
सभी हिन्दू संगठन संस्थाएं मिटा रहा हूँ,
पर इस्लामियों के सामने बिछ रहा हूँ,
हिन्दू संस्कृति को धकिया, संघ संस्कृति बना रहा हूँ।
हाँ, मैं संघ हूँ –
समाज को मर्मांतक गढ्ढे में धकेल रहा हूँ।
मेरी जयकार करो, हिन्दुओं,
मुझ से जुड़ो –
शास्त्रों से नहीं,
ज्ञान से नहीं,
धर्म से नहीं,
गुरु से नहीं –
केवल और केवल मुझ से जुड़ो,
वरना भाड़ में जाओ!
मैं महान हूँ,
हाँ, मैं संघ हूँ!
मैं महान हूं, हां मैं संघ हूं।
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