विपुल रेगे। बिजनेस टायकून मुकेश अंबानी का साम्राज्य ‘मनॉपली’ पर ड्राइव करता है। चाहे जिओ की सिम हो या जिओ फाइबर नेटवर्क हो, हर जगह देखा जाता है कि ये समूह एकाधिकार स्थापित करने के लिए ऐसे बिजनेस एथिक्स अपनाता है, जो किसी भी तरह से नैतिक नहीं कहे जा सकते हैं। जियो अब ओटीटी में भी एकाधिकार के इरादे से आगे बढ़ रहा है। हाल ही में जिओ सिनेमा पर शाहिद कपूर की ‘ब्लडी डैडी’ यूजर्स को मुफ्त में दिखा दी गई। 200 करोड़ की लागत से बनी इस औसत फिल्म को मुफ्त में दिखाने का एक ही कारण है कि जियो समूह अब ओटीटी प्लेटफॉर्म का सिरमौर बनना चाहता है।
अंबानी समूह को एक बात समझनी होगी कि वे सिनेमा जैसे रचनात्मक क्षेत्र में चाहकर भी एकाधिकार नहीं जमा सकते। ‘सिनेमा’ सिम या इंटरनेट का नेटवर्क नहीं है, जिसे आप एक जैसी टेक्टिक्स के साथ बेच लेंगे। इस समय देश के टॉप टेन ओटीटी प्लेटफॉर्म की सूची में जिओ सिनेमा नहीं आता। भारत में पहले नंबर पर हॉट स्टार है। इस लिस्ट में अमेजन प्राइम, सोनी लिव, नेटफ्लिक्स इंडिया, ऑल्ट बालाजी जैसे मंच शामिल हैं।
यदि जिओ की सिनेमा लाइब्रेरी को देखा जाए तो समझ आ जाता है कि वे फिल्मों में पहले नंबर पर क्यों नहीं आ सके हैं। जिओ के पास हॉलीवुड फिल्मों का अच्छा कलेक्शन है लेकिन भारतीय फिल्मों का चयन बहुत बुरा है। क्या जियो समूह मुफ्त की योजना से ओटीटी के बड़े मार्केट पर कब्ज़ा कर सकता है ? जवाब होगा नहीं। ओटीटी मंच को सबसे अधिक देखने वाला युवा दर्शक है। ये दर्शक अच्छे मनोरंजन के लिए पैसे देता है। उसे इन मुफ्त की घटिया फिल्मों से लुभाया नहीं जा सकता।
सेटेलाइट और डिजिटल के बाज़ार में ये चर्चा है कि जिओ कैसे मौजूदा बिजनेस मॉडल को तबाह कर रहा है। हाल ही में हुए आईपीएल के समय जिओ समूह की घातक नीति सामने आई। जिओ ने आईपीएल के मैच मुफ्त दिखाए। इस मुफ्त सेवा के चलते डिज्नी+हॉटस्टार को आईपीएल के लिए लगभग ढाई करोड़ का भुगतान करने वाले सब्सक्राइबर्स जिओ में माइग्रेट कर गए। ग्राहकों को छीनने की ये एक बड़ी संख्या है,जो मुफ्त सेवा के चलते माइग्रेट हो गई।
जिओ समूह की स्ट्रेटजी रही है कि वे पहले मुफ्त सेवा देकर अपने प्रतियोगियों को राह से हटाते हैं और उसके बाद धीमे-धीमे रेट्स बढ़ाते चले जाते हैं। जिओ टेलीकम्युनिकेशन ने पहले यही किया है। उसने अपनी प्रतियोगी कंपनियों को ‘मुफ्त के माल’ से बहुत चोट पहुंचाई थी। अब जिओ अपने ओटीटी प्रतियोगियों को बाहर फेंकने की तैयारी में है। जिओ को गुणवत्ता के आधार पर ये लड़ाई जीतनी चाहिए लेकिन ये लड़ाई वह ‘मुफ्त’ से जीत रहा है।