विपुल रेगे। स्वतंत्रता के उदयकाल से पहले भारत में सिनेमा का सूर्य उदित हो गया था। ‘जुबली’ भारतीय सिनेमा की उसी भोर की कहानी कहती है। ये चालीस और पचास के दशक की यात्रा है। इस मद्धिम यात्रा में सपने, संघर्ष, दुःख, महत्वाकांक्षा और भारतीय सिनेमा पर वैश्विक सत्ता की काली छाया पड़ने की कहानी है। ‘जुबली’ अफसानों से भरी एक किताब है, जिसमे सच के कुछ रेशे पैबस्त हैं।
ओटीटी मंच : Prime video
‘जुबली’ के बारे में समीक्षात्मक कहना थोड़ा मुश्किल है। ये उस जंक्शन की तरह है, जहाँ बहुत से ट्रेन आ जा रही हैं और हर ट्रेन खूबसूरत है, महत्वपूर्ण है। ये वेबसीरीज एक मद्धम गति से चलती यात्रा है। स्लो पेस की ये ट्रेन अचंभित करती है और साथ ही एक नॉस्टेल्जिया दे जाती है, एक मीठा अतीताघात। विक्रमादित्य मोटवाने की ‘जुबली’ दस एपिसोड्स में बनाई गई है। मनोरंजन का ये हैवी डोज उन दर्शकों के लिए हैं, जो फिल्म मेकिंग की बारीकियों को समझते हैं। ये उन दर्शकों के लिए भी हैं, जो सिनेमा को उसके विस्तार में देखना चाहते हैं।
एक आम दर्शक के लिए ये बहुत ही लंबी वेब सीरीज है, जो एक दुखांत पर समाप्त होती है। मोटवाने की वेबसीरीज में कुछ सच्चे किस्से छलक आए हैं लेकिन उन्हें अफ़साने का नकाब पहनाकर पेश किया गया है। मोटवाने की इस पेशकश में बॉम्बे टॉकीज, अशोक कुमार, देविका रानी, हिमांशु राय, नजमुल हसन सच के वे रेशे हैं, जिन्हे आप सहज ही पहचान सकते हैं। हालाँकि इन सच्चे किरदारों की कहानियों में बहुत कुछ काल्पनिक है।
कहानी चालीस के दशक से शुरु होती है। श्रीकांत राय ‘रॉय स्टूडियो’ का मालिक है। राय की पत्नी सुमित्रा स्टूडियो में बराबर की पार्टनर है। रॉय स्टूडियो एक ऐसा चेहरा खोज रहा है, जिसकी मदद से वह सिनेमाई बाज़ार पर एकाधिकार जमा ले। श्रीकांत राय की पहली पसंद कराची का प्रसिद्ध कलाकार जमशेद खान है। जमशेद सुमित्रा के प्यार में पड़ जाता है। एक दिन दोनों घर से भाग जाते हैं। श्रीकांत अपने लैब असिस्टेंट बिनोद दास को आदेश देता है कि पत्नी और उसके प्रेमी को वापस लेकर आए।
सीरीज में से स्टोरी ट्रेक्स हैं। दूसरा ट्रेक है जय खन्ना का। जय विभाजन के बाद सुलगे दंगों से बचकर परिवार के साथ भारत पहुंचा है। एक ट्रेक वेश्या नीलोफर कुरैशी का है, जिसका किरदार आगे जाकर महत्वपूर्ण हो जाता है। निर्देशक विक्रमादित्य की सबसे बड़ी खूबी ये है कि वे एक पीरियड ड्रामा को विश्वसनीय ढंग से पेश कर पाए हैं। और उनकी सबसे बड़ी कमी ये रही है कि अपनी बात कहने के लिए उन्होंने पूरे दस एपिसोड खर्च किये हैं। इसे घटाया जाता तो परिणाम बहुत बेहतर आते। एडिटिंग मुख्य कमी रही है।
अभिनय के स्तर पर ‘जुबली’ बहुत ऊंचाई पर दिखाई देती है। सभी ने अभिनय में एक दूसरे को भरपूर टक्कर दी है। अभिनय के इस महासंग्राम में अपारशक्ति खुराना अविजित दिखाई देते हैं। मदन कुमार के किरदार में अपारशक्ति ने वह कर दिखाया, जो अब तक उनसे अपेक्षित भी नहीं था। खुराना ने गजब का ‘अंडरप्ले’ डिलीवर किया है। जम्मू के रहने वाले सिद्धांत गुप्ता ने जय खन्ना के किरदार को जीवंत किया है। सिद्धांत में बहुत ऊर्जा दिखाई देती है। वे आने वाले समय के स्टार होंगे।
अदिति राव हैदरी ने सुमित्रा राय का किरदार आत्मविश्वास के साथ निभाया है। अब उनके अभिनय में अनुभव झलकने लगा है। राजस्थान के नंदिश संधू ने बहुत ही प्यारे ढंग से ‘जमशेद खान’ का किरदार निभाया है। वे इससे पहले बहुत से टीवी शोज और फिल्मों में दिखाई दिए हैं लेकिन इस वेब सीरीज से उन्हें बड़ा एक्सपोजर मिलेगा। प्रसोनजीत चटर्जी ने श्रीकांत राय के किरदार में जान डाल दी है। संगीतकार अमित त्रिवेदी का ‘जुबली’ को परफेक्ट पीरियड बनाने में बड़ा योगदान है। उन्होंने ऐसा संगीत रचा है, जैसा हम चालीस-पचास के दशक की फिल्मों में सुनते आए हैं।
अमित त्रिवेदी के जीनियस टच के कारण इसे ‘द म्यूजिकल’ कहने का मन करता है। संगीत इसका एक मजबूत पक्ष है। इस संगीत की सहायता से विक्रमादित्य एक विशेष कालखंड का सम्मोहन रच सके हैं। विक्रमादित्य की ‘जुबली’ मंथर गति से चलती है। इसके दृश्यों में वह ठहराव है, जिसकी कमी हमें आज की फिल्मों में बहुत खलती है। यदि आप गहराई से फिल्मों को देखना न जानते हो ‘जुबली’ की यात्रा आपको बोर कर सकती है। कुछ फिल्मों के लिए ‘विशेष दर्शक’ की दरकार होती है।
‘जुबली’ उन विशेष दर्शकों के लिए है। एक भावपूर्ण, अर्थपूर्ण यात्रा, जो वर्तमान से प्रारंभ की ओर जाती है। समय के गलियारों में ‘फ़्रिज’ हो चुके उस कालखंड को पिघलाकर उष्मित करने के लिए विक्रमादित्य मोटवाने बधाई के अधिकारी हैं।