विपुल रेगे। फिल्म विधा में मुख्यतः दस विषयों पर अधिकांश फिल्मों का निर्माण किया जाता है। उनमे से एक ‘प्रेम’ होता है। प्रेम विषय पर सबसे अधिक फ़िल्में भारत में ही बनाई जाती रही हैं। समस्या तब शुरु होती है, जब आप ‘प्रेम’ को लेकर प्रयोगात्मक हो जाते हैं। आनंद एल राय की ‘अतरंगी रे’ ऐसे ही विनाशात्मक प्रयोग का परिणाम है। प्रेम केवल प्रेमिका से न होकर मित्र से, माँ से, पिता से, शिक्षक से भी होता है। प्रेम के अनेक आयाम होते हैं किंतु आनंद राय का विचित्र आयाम दर्शकों की सामान्य समझ से परे दिखाई देता है।
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ये एक ऐसी लड़की की कथा है, जो अपनी कल्पना से एक प्रेमी को जन्म देती है। प्रेमी केवल उसे ही दिखाई और सुनाई देता है। लड़की रिंकू एक रसूखदार परिवार से है। उसकी माँ ने एक मुस्लिम जादूगर सज्जाद से विवाह किया था। रिंकू की माँ और उसके पिता सज्जाद को जलाकर मार दिया जाता है। रिंकू का बालमन ऐसे में एक प्रेमी की कल्पना करता है, जिसकी छवि उसके पिता सज्जाद से मिलती है।
रिंकू बार-बार उस काल्पनिक प्रेमी के साथ घर से भाग निकलती है और पकड़ी जाती है। परेशान होकर परिवार जन उसका विवाह करने के लिए एक युवा विशु को अपहरण कर लेते हैं। विशु और रिंकू का उनकी इच्छा के विरुद्ध विवाह करवा दिया जाता है। यहाँ से परेशानी शुरु होती है क्योंकि सज्जाद अब भी रिंकू को दिखाई देता है, वह उसके साथ मौजूद है।
इस स्क्रीनप्ले पर फिल्म बनाकर व्यावसायिक सफलता पाना कठिन है। जब कथा में ही झोल हो तो फिल्म के बाकी तामझाम का कोई अर्थ नहीं होता। इन दिनों लव जिहाद के बारे में काफी कुछ कहा जाता है और लिखा जाता है। इस कथा से उसकी ही बू आती है। इसके कथानक पर प्रश्न उठाया जा सकता है। समाचारों में हम लगातार देखते हैं कि मुस्लिम प्रेमी से ब्याही हिन्दू कन्या छह माह बाद सूटकेस में मृत देह के रुप में प्राप्त होती है या उसका शव जंगल में ले जाकर जला दिया जाता है।
लव जिहाद इस स्वस्थ्य समाज में एक कोढ़ बनकर सामने आया है। जबकि फिल्म में दिखाया गया है कि एक हिन्दू परिवार मुस्लिम प्रेमी को जीवित जला देता है। निर्देशक का ये एंगल उनकी कल्पना से निकला है, वरना तो वास्तव में आज तक ऐसी कोई घटना देखने में नहीं आई है। इस विचित्र स्क्रीनप्ले में गंभीर त्रुटियां दिखाई देती है। यदि रिंकू का प्रेमी उसकी कल्पना से जन्मा है तो वह अंत में अचानक बिना किसी कारण लोप क्यों हो जाता है।
रिंकू क्या अपने काल्पनिक प्रेमी में ‘फादर फिगर’ देख रही थी। उसके पति विशु से उसके काल्पनिक प्रेमी की प्रतियोगिता भी बचकानी लगती है। यदि इस कथानक में रिंकू के पिता की कहानी न होकर मात्र एक काल्पनिक प्रेमी होता तो बात बन सकती थी। फिर विशु नामक पात्र प्रेमिका के मन पर विजय प्राप्त करता और प्रेमिका के वहम या कहना चाहिए मानसिक व्याधि का भी अंत होता।
किन्तु यहाँ ऐसा नहीं हुआ। लड़की की मानसिक व्याधि में हिन्दू-मुस्लिम का एंगल डाला गया। प्रेमी की छवि उसके पिता सदृश दिखाई गई। ये दो गंभीर त्रुटियां फिल्म को ले डूबी। अभिनय के स्तर पर देखे तो धनुष को सारा अली खान और अक्षय कुमार छू भी नहीं सके। अपितु केवल धनुष अपने बल पर एक त्रुटिपूर्ण स्क्रीनप्ले और दो कमतर कलाकारों का बोझ नहीं उठा सकते थे।
ऊपर से ए.आर.रहमान का संगीत। क्या हो गया है रहमान को ? एक समय का सितारा संगीतकार आज सुरीली धुनों के लिए क्यों तरस गया है। बोझिल संगीत फिल्म के डूबने का बड़ा कारण बनेगा। सारा अली खान ऐसी परिपक्व भूमिकाओं को करने योग्य प्रतिभा नहीं जुटा सकी हैं। उनके चेहरे पर एक से भाव देख दर्शक उकता जाते हैं। अक्षय कुमार का भावहीन अभिनय बची हुई नैया को डूबा देता है।
अब वे बूढ़े लगने लगे हैं। कई दृश्यों में वे वृद्ध से दिखाई देते हैं। उनको कम से कम प्रेमी की भूमिकाओं से परहेज कर लेना चाहिए। देश को तो वे हर दूसरी फिल्म में बचाते ही रहते हैं। क्या हम ये मान ले कि आनंद एल राय अब तक शुरुआती करिश्मे के बल पर अब तक टिके हुए हैं। ‘तनु वेड्स मनु’ और ‘रांझणा’ की धमाकेदार सफलता के बाद उनकी कोई फिल्म हिट नहीं हुई है। शाहरुख़ खान की ‘ज़ीरो’ उन्होंने ही निर्देशित की थी।
आनंद राय अपनी धार खोते दिखाई दे रहे हैं। या कहना चाहिए कि उन्होंने अपनी धार खो दी है। जब दर्शक फिल्म समाप्त होने की प्रतीक्षा करे तो समझ जाना चाहिए कि बॉक्स ऑफिस पर आपका समय अधिक नहीं बचा है। अतरंगी रे डिज्नी + हॉटस्टार को लगभग 80 करोड़ में बेची गई थी। टी सीरीज से 12 करोड़ संगीत अधिकार बेचने के मिले। बजट मात्र चालीस करोड़ बताया जा रहा है।
जबकि सब जानते हैं कि अक्षय कुमार एक दिन के शूट के एक करोड़ चार्ज करते हैं। प्रचार में जो खर्च हुआ वह क्यों नहीं जोड़ा गया। फिल्म 2020 में थियेटर में प्रदर्शित होने वाली थी लेकिन कोविड के कारण प्रदर्शन टल गया।
इसके बाद निर्माता ने इसे ओटीटी पर प्रदर्शित करने का निर्णय लिया। स्पष्ट है कि मूल बजट छुपाया जा रहा है और फिल्म को सफल बताया जा रहा है। ऐसी फिल्मों को प्रदर्शित कर आंकड़ों में हेरफेर कर जब सफल बता दिया जाता है तो मुझे वह खबरे याद आती हैं, जिनमे हमें बताया जाता है कि काले धन को ठिकाने लगाने के लिए ऐसी फिल्मों का निर्माण होता ही रहता है। अतरंगी रे से निर्माता को कुछ प्राप्त नहीं होगा। दर्शक को अपना मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखना है तो इस फिल्म से दूर से ही किनारा कर लेना चाहिए।
Worst review man you dont need to review movie rather you should review your mind.
Absolutely….🤣🤣
Kuch baten sach h baki sabhi nhi all in all movie achchi h sara aur dhanush dono ka kam achcha h.