विपुल रेगे। कार्तिक आर्यन और कृति सेनन की ‘शहज़ादा’ एक पैसा वसूल एंटरटेनर है लेकिन खराब रिव्यूज, ‘पठान’ और हॉलीवुड फिल्म ‘एंटमैन’ के बीच फंस गई है। ब्लॉकबस्टर तेलुगु फिल्म ‘अला वैकुंठपुरामुलु’ की इस ऑफिशियल रीमेक को अच्छी ओपनिंग नहीं मिली है। हालाँकि मनोरंजन की दृष्टि से फिल्म टिकट खिड़की पर पैसा वसूल है। एक तेलुगु फिल्म का एक अच्छा एडाप्टेशन ‘शहज़ादा’ में देखने को मिलता है। बॉलीवुड में पारिवारिक + एक्शन फिल्मों का दौर लगभग समाप्ति की ओर है। यदि कार्तिक की ये फिल्म कलेक्शन सुधार लेती है तो अस्सी के दशक का ये फ़िल्मी फार्मूला बॉलीवुड की फिल्मों में फिर से सांस भरते दिखाई दे सकता है।
‘अला वैकुंठपुरामुलु’ की आधिकारिक रीमेक ‘शहज़ादा’ में एक धनिक परिवार की संतान और एक गरीब परिवार की संतान की अदला-बदली हो जाती है। एक निर्धन पिता गलत ढंग से अपने बच्चे को एक बड़े परिवार में पहुंचा देता है। वह परिवार उस बच्चे को अपना बच्चा समझकर पालता है और उनका अपना बच्चा गरीब के घर में पल रहा है। अस्सी के दशक का फार्मूला दक्षिण आज भी सफलतापूर्वक चला पा रहा है लेकिन हिन्दी पट्टी में इसका ट्रेंड ही नहीं रहा।
ऐसा नहीं कि दर्शक पारिवारिक फ़िल्में देखना नहीं चाहते। इन फिल्मों का दर्शक वर्ग कम ही थियेटर्स में फ़िल्में देखने जा रहा है। कार्तिक आर्यन, कृति सेनन, परेश रावल, रोनित रॉय, सचिन खेड़ेकर और मनीषा कोइराला की केंद्रीय भूमिकाओं वाली ‘शहज़ादा’ फैमिली ड्रामा और एक्शन पर टिकी हुई है। ऐसी कहानियां बहुत सी फिल्मों में दोहराई जा चुकी है और आगे भी दिखाई देंगी। ऐसी कहानियो पर ट्रीटमेंट अच्छा हो तो दर्शक देखना पसंद करते हैं।
कार्तिक आर्यन और कृति सेनन के नाम पर थियेटर्स में भीड़ आती है लेकिन अभी वह भीड़ ‘पठान’ और एंटमैन’ के बीच बंटी हुई है। हालांकि ये एक फैमिली फिल्म है। इसमें अश्लीलता और खून खराबे वाली हिंसा नहीं है। ये एक लवेबल फिल्म है, जो दर्शक को सुकून देती है। कार्तिक अब अनुभवी अभिनेता बन चुके हैं। ‘शहज़ादा’ में वे न केवल प्रभावित करते हैं, बल्कि ये संकेत भी देते हैं कि आने वाले समय में वे बॉलीवुड के मुख्य सितारों में शामिल हो जाएंगे।
कार्तिक अब तक लवर बॉय थे लेकिन अब वे एक्शन अवतार में भी आ गए हैं। हालाँकि उनका व्यक्तित्व एक्शन फिल्मों के लिए नहीं है लेकिन इसके बावजूद इस भूमिका को वे निभा ले गए हैं। कृति सेनन के साथ उनकी एक स्वाभाविक केमेस्ट्री परदे पर दिखाई देती है। फिल्म अधिक दुःख और पीड़ा में नहीं जाती। जब फिल्म किसी दुखद दृश्य की ओर बढ़ती है तो निर्देशक एक फनी मूमेंट डालकर संतुलन बना लेते हैं। परेश रावल तो सदा से ही अपने रोल को स्वाभाविकता से निभाते रहे हैं। उनकी प्रेजेंस से फिल्म का कद बढ़ जाता है।
निर्देशक रोहित धवन जाने माने फिल्म निर्देशक डेविड धवन के बेटे हैं। उन्होंने विरासत में निर्देशन के गुर पिता से पाए हैं। यदि आगे फिल्म के कलेक्शन बढ़ते हैं तो रोहित के लिए एक नया रास्ता खुल सकता है। ‘शहज़ादा’ एक सकारात्मक संदेश देती हुई सुखद अंत पर समाप्त होती है। महाशिवरात्रि पर उल्लास का वातावरण होता है और सिंगल थियेटर्स में आम जनता बहुत फ़िल्में देखने आती है। ये वे आम दर्शक हैं, जो किसी भी फिल्म से प्यार करते हैं तो वह आसमान की ऊंचाई पर होती है। सिंगल थियेटर्स के दर्शकों ने फिल्म को स्वीकार किया है। आगे देखना है कि कार्तिक बॉक्स ऑफिस पर अपना विजयी ध्वज गाड़ पाते हैं या नहीं।