विपुल रेगे। बीते कालखंड को महसूस कराने में दक्षिण के फिल्मकारों का कोई तोड़ नहीं है लेकिन जब हम ‘Guns & Gulaabs’ देखते हैं तो लगता है कि इस जॉनर में कोई तो बॉलीवुड की ओर से चुनौती दे सकता है। कृष्ण डीके और राज निदिमोरु द्वारा निर्देशित ये वेब सीरीज पसंद की जा रही है। ये कुछ दर्शकों को नब्बे के दशक का गाढ़ा नॉस्टेल्जिया देने में सफल रही है। अफीम पर एकाधिकार की इस रोचक लड़ाई में प्रेम के फूल भी पनपते हैं। रोमांस, एक्शन, अपराध और अफीम के मसालों से बनी ‘गन्स एंड गुलाब्स’ टॉप ट्रेंड कर रही है।
ओटीटी मंच : नेटफ्लिक्स
निर्देशक जोड़ी राज एंड डीके की ‘गन्स एंड गुलाब्स’ दो कस्बों गुलाबगंज और शेरपुर की कहानी है। गांची और नबीद के बीच अफीम को लेकर लगातार विवाद होते हैं। ये दोनों अपने एरिया के अफीम किंग माने जाते हैं। नारकोटिक्स एक नए अफसर अर्जुन वर्मा को इस इलाके में भेजती है। गांची का राइट हैण्ड बाबू टाइगर गैंगवार में मारा जा चुका है। टीपू टाइगर बाबू का बेटा है लेकिन बाप के धंधे से अधिक उसकी रुचि चंद्रलेखा में है। कलकत्ता की एक बड़ी गैंग का आदमी सुकान्तो बड़ी मात्रा में अफीम चाहता है। गांची और नबीद में इस सौदे को लेकर गैंगवार छिड़ जाता है।
कहानी में एक और कैरेक्टर है। इस कैरेक्टर का नाम है चार कट आत्माराम। आत्माराम सुपारी लेकर हत्याएं करता है और उसे मारना बहुत मुश्किल है। इस सारे खेल में एक और स्टोरी प्लाट चल रहा है। टीनएजर्स स्कूली बच्चों के रोमांस की गाथा अलग ही चल रही है, जो आगे जाकर गैंगवार से कनेक्ट हुई है। राज एंड डीके की निर्देशकीय शैली निराली और बहु आयामी है। वे फिल्म के बारीक से बारीक पक्ष पर पैनी निगाह रखते हैं। उनकी ये प्रस्तुति भरपूर ‘नास्टॉल्जिक किक’ देती है। हर एपिसोड में इतनी ताकत है कि वह दर्शक को अगले एपिसोड देखने के लिए रोक सकती है।
पीरियड फिल्मों में आर्ट डायरेक्शन एक आवश्यक तत्व होता है। यदि इसमें चूक गए तो कालखंड का ज़ादू उभरकर नहीं आ पाता। ‘गन्स एंड गुलाब्स’ में रामचरण तेज लाबानी ने आर्ट डायरेक्शन दिया है। सेट डेकोरेशन सलोनी पोरवाल और आरती रामचंद्रन ने किया है। इस समीक्षा में इन नामों का ज़िक्र इसलिए हो रहा है क्योकि उनका काम दर्शकों ने नोटिस किया है। ये इन लोगों की मेहनत का नतीजा है कि दर्शक स्वयं को कैसेट, लैंडलाइन फोन, एसटीडी पीसीओ, सिटी बस की दुनिया में पाता है। इन सबका बहुत सजीव चित्रण किया गया है। नब्बे का दशक जीवंत होता सा लगता है।
ये ‘रेट्रो थीम’ केवल परदे पर नहीं, बल्कि टाइटलिंग में भी दिखाई देती है और मन को भाती है। ‘गन्स एंड गुलाब्स’ के कैरेक्टर्स बड़े इंट्रेस्टिंग हैं। इनमे ‘चार कट आत्माराम’ का कैरेक्टर दर्शक को याद रह जाता है। सतीश कौशिक अपनी आखिरी भूमिका में दिखाई दिए हैं। गांची का किरदार कौशिक ने निभाया है। अपने अंतिम किरदार में भी वे दर्शकों को हंसाकर गए हैं। राजकुमार राव अब अपनी ‘ख़ास शैली’ त्यागकर मसाला भूमिकाओं में रच बस गए हैं। टीपू के किरदार में वे दर्शक की प्रशंसा लूट ले जाते हैं।
सलमान दुलेकर बहुत प्रतिभा संपन्न हैं। नारकोटिक्स अधिकारी के किरदार में उन्होंने छाप छोड़ी है। एक और ऐसा अभिनेता है, जो इस सीरीज के बाद चमकेगा। झारखण्ड के निवासी आदर्श गौरव ने सीरीज में गांची के बेटे जुगनू का किरदार निभाया है। राजकुमार राव जैसे अभिनेता के सम्मुख आदर्श ने जो अभिनय किया है, वह देखने योग्य है। आदर्श का किरदार शक्तिशाली बनाया गया है और अंत तक बना रहता है। निर्देशक जोड़ी ने इस दिलचस्प सीरीज को अश्लील नहीं होने दिया है। हाँ फिल्म में कहीं-कहीं गालियों का प्रयोग किया गया है।
‘गन्स एंड गुलाब्स’ एक मनोरंजक वेब सीरीज है। इसका कंटेंट ओटीटी के लायक है और अश्लील नहीं है। इसमें अच्छी एक्टिंग है, कैची स्टोरी टेलिंग है, अच्छे एक्शन सीक्वेंस हैं। भरपूर हास्य है। इस वर्ष ‘गन्स एंड गुलाब्स’ ओटीटी प्लेटफॉर्म पर चर्चा में बनी रहेगी।