मरणासन्न कानून का शासन , जिंदा भ्रष्टाचार है ;
रिश्वतखोरी का बोलबाला , बाकी सब बेकार है ।
ऊपर से नीचे को बहती ,भ्रष्टाचार की गंगा है ;
क्या नेता है क्या अफसर है? हर कोई तो नंगा है ।
भ्रष्टाचार की इस गंगा में , सारे डुबकी मारें ;
कोई शर्म हया न बाकी , बढ़चढ़ हाथ ये मारें ।
कोई खुद को बेच रहा है , कोई राष्ट्र को बेचे ;
राष्ट्र के ये सारे दुश्मन हैं , राष्ट्र को हरदम नोंचे ।
पता नहीं ये कैसे चल रहा ? देश है राम भरोसे ;
जिस पर करे भरोसा जनता , वो तो जहर परोसे ।
भ्रष्टाचारी नेता ,अफसर ;कायर ,कुटिल ,कपूत हैं;
जिनको हम पहले समझे थे,भारत मां के सपूत हैं।
अपनी माता का दूध लजाते , ऐसे अनाचारी ;
भारत माता का खून पी रहे , कैसे अत्याचारी?
बुद्धू जनता कभी न समझे ,वोट किसे है देना ?
ये भी कभी समझ न पाई , चोट किसे है देना।
अब चाहे कुछ भी हो जाये ,कट्टर हिंदू चुनना ;
तुम्हें बचाये ,राष्ट्र बचाये ; गुंडे, अपराधी मरना ।
गद्दार कभी न सत्ता पाये,वरना सबमिट जायेगा ;
अभी सुनहरा मौका आया,फिर जाने कब आएगा ?
गुंडे व अपराधी सारे , मानवता पर बोझ हैं ;
इसी तरह ये भ्रष्टाचारी , इस धरती का बोझ हैं ।
हिंदू राष्ट्र बना कर इनका , जड़ से करो सफाया ;
अब तो केवल यही रास्ता , राष्ट्र के मन को भाया ।
“वंदे मातरम -जय हिंद”
रचनाकार :बृजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”