मैं अपने जन्मदिन विशेष पर दो कविताएं लिखकर भेज रहा हूं । संदीप देव की निर्भीक पत्रकारिता मुझे ऐसी कविताएं लिखने की प्रेरणा देती है । शुभकामनाओं सहित ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”
हिंदू – कंधों पे चढ़ – चढ़ के , राज्य की सत्ता पाते हो ;
सत्ता पाके ऐसा बौराते , हिंदू को ठुकराते हो ।
झूठा इतिहास पढ़ाते अब भी , मंदिर को कब्जाते हो ;
मंदिर पर सरकारी कब्जा ,धन को जजिया में देते हो ।
दुनिया भर के दौरे कर लो ,पर हरदम इसको याद रखो ;
सबसे पहले अपना घर है , बाद में दूजा घर देखो ।
सदियों से भारत पीड़ित है , राष्ट्र – विरोधी तत्वों से ;
गुंडे , लुच्चे और जेहादी , धर्म – विरोधी तत्वों से ।
भ्रष्टाचार में पुलिस लिप्त है , शासन का पुरसा हाल नहीं ;
पैसों में कानून बिक रहा , न्याय का पूछो हाल नहीं ।
कदम – कदम पर दुख – तकलीफें, देश में हाहाकार है ;
जान – माल – इज्जत न सुरक्षित , कैसा अत्याचार है ?
काहे का तू जननायक है ? कैसी मन की बातें हैं ?
राष्ट्र की पीड़ा बढ़ती जाती , कदम- कदम पर घाते हैं ।
अबलौं नसानी अब न नसाओ,राष्ट्र का भी कुछ काम करो;
सच्चे इतिहास को फौरन लाओ,सबसे पहला ये काम करो।
स्कूलों में नैतिक शिक्षा , धर्म की शिक्षा , फौजी शिक्षा ;
ये सब करना बहुत जरूरी , मत मांगो वोटों की भिक्षा ।
सारे वोट बैंक को तोड़ो , पूरा अल्पसंख्यकवाद मिटाओ ;
मजहब की अब बात बंद हो , केवल सच्चे धर्म को लाओ ।
सच्चा धर्म है धर्म – सनातन , सबको एक बराबर समझे ;
जबकि हर मजहब वाला , औरों को दुश्मन समझे ।
धर्म – सनातन राष्ट्र- धर्म है ,मानव- धर्म भी यही कहाता ;
पर जितने बेईमान हैं नेता , उनको ये सब नहीं सुहाता ।
तू तो ऐसा कभी नहीं था , अब ऐसा क्यों हाल हो गया ?
सख्त एक्शन तू न लेता , रोते-रोते बेहाल हो गया ।
आंसू की कीमत को समझो , इसको नहीं बहाना है ;
राष्ट्र -विरोधी गतिविधियों को , हर स्थिति में मिटाना है ।
कुर्सी को बिल्कुल मत देखो , केवल राष्ट्र के कार्य करो ;
क्योंकि हिंदू जाग चुका है , हर हालत में करो या मरो ।
हिंदू – मन ने ठाना है , मानवता को बचाना है ;
इसका एकमात्र रास्ता है , हिंदू – राष्ट्र बनाना है ।
“वंदे मातरम – जय हिन्द”
रचयिता : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”