विपुल रेगे। ‘पोन्नियिन सेलवन’ का दूसरा भाग रिलीज हो गया। सन 1958 में एमजी रामचंद्रन और उसके बाद अभिनेता कमल हसन ने भी इस कहानी पर फिल्म बनाने का प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हो सके। महंगी लागत के कारण ‘पोन्नियिन सेलवन’ का स्वप्न साकार होने से टलता रहा। अब फिल्म निर्देशक मणिरत्नम ने ये स्वप्न साकार कर दिया है। फिल्म का दूसरा भाग मनोरजंक, इतिहास की जानकारी देने वाला और रोमांचक है। इसके सिनेमाई दृश्यों को किसी पेंटिंग की भांति रचा गया है। पहले दिन की ओपनिंग ने तय कर दिया है कि फिल्म एक बड़ी व्यावसायिक सफलता की ओर बढ़ चली है।
‘पोन्नियिन सेलवन’ का अर्थ होता है ‘कावेरी का बेटा।’ ये फिल्म चोल वंश के महान शासक राजाराज चोल को दी गई भव्य आदरांजलि है। चोल वंश के राजा परांतक के बाद राजाराज ने बागडोर संभाली और साम्राज्य का अद्भुत विस्तार किया। फिल्म का मुख्य पात्र राजाराज चोल है। इसी पात्र के इर्दगिर्द पूरी कथा बुनी गई है। पांडयान वंश चोल साम्राज्य को समाप्त करना चाहता है। पहले भाग में बताया गया था कि अरुणमोझी वर्मन और वल्लावरीयान का समुद्री बेड़ा डूब गया है।
चोल साम्राज्य में शोक का वातावरण है। नंदिनी आदित्य कारिकालन को मारने का षड्यंत्र रच रही है। मणिरत्नम ने इस भाग को अपने निर्देशकीय तजुर्बे से बहुत सुंदर और बहुत प्रभावी बना डाला है। मणिरत्नम उन निर्देशकों में से हैं, जिनकी फिल्मों के दृश्य बोलते महसूस होते हैं और तीव्रता के उच्च स्तर पर दर्शक को छूते हैं। मणिरत्नम होना आसान नहीं है। जब एमजी रामचंद्रन और कमल हसन इस महाकाव्य को रचने में विफल रहे तो मणिरत्नम ने बीड़ा उठाया।
सन 2010 से वे लगातार फिल्म बनाने की कोशिश करते रहे और सन 2019 में उन्हें राह मिली। दक्षिण भारत के एक शक्तिशाली शासक पर फिल्म बनाकर उन्होंने अपनी सिनेमाई यात्रा के अंतिम पन्नों पर सुंदर हस्ताक्षर कर दिए हैं। अभिनय के स्तर पर ये फिल्म बहुत ऊंचाई पर दिखाई देती है। ऐश्वर्या राय बच्चन, विक्रम, जयम रवि, कार्थिक, तृषा कृष्णन और प्रकाश राज का अतुलनीय अभिनय दर्शक का दिल जीत लेता है। ‘पोन्नियिन सेलवन’ को देखने के कई स्तर हो सकते हैं।
सिनेमेटोग्राफी लेवल पर ये अंतरराष्ट्रीय मानकों को छू लेती है। इसके दृश्य किसी आकर्षक पेंटिंग की तरह लगते हैं। क्लोजअप्स से लेकर एक्सट्रिम लॉन्ग शॉट्स बहुत भव्यता से लिए गए हैं। कार्थिक और तृषा कृष्णन का एक दृश्य दर्शक के दिल में बस जाता है। खिलंदड़ वल्लावरीयान और कुंदावी के बीच का ये रोमांटिक दृश्य नदी किनारे फिल्माया गया है। ऐसे कई दृश्य आँखों में बस जाते हैं। सिनेमेटोग्राफर रवि वर्मन का कैमरा भव्य राजाप्रसादों की दीवारों से उतरकर कावेरी नदी की लहरों तक जाता है।
रवि वर्मन की ‘दृष्टि’ के बिना ‘पोन्नियिन सेलवन’ विजुअल ट्रीट नहीं बन सकती थी। दूसरे भाग में रहमान का संगीत कमज़ोर है। उन्होंने अपनी बढ़िया धुनें पहले भाग में ही खर्च कर दी। संगीत का पक्ष छोड़ दे तो बाकी हर विभाग में फिल्म खरी उतरती है। ये एक आदर्श स्टोरीटेलिंग है, जो आज के युवा निर्देशकों को सीखना चाहिए। मणिरत्नम अपने दृश्यों में ठहराव प्रस्तुत करते हैं। आज के कालखंड की फ़िल्में भागती हैं, इसलिए उनका ‘स्थायी’ प्रभाव नगण्य होता है।
भागती फ़िल्में कालजयी नहीं होती, दस साल में ही बिसरा दी जाती है। मणिरत्नम का सिनेमा आसानी से भूलाया नहीं जा सकेगा। विशेष रुप से उनकी ये दो फ़िल्में ‘कालखंडों’ को पार करती रहेगी और प्रासंगिक बनी रहेगी।