गंदी- शिक्षा , झूठा -इतिहास , हिंदू- गौरव का महाविनाश ;
गांधी – नेहरू की साजिश थी, राष्ट्र का कर गये सत्यानाश ।
इन्हीं के चेले केंद्र में बैठे , गांधी – नेहरू की जय जय कार ;
धर्म के दुश्मन ,राष्ट्र के दुश्मन , सब के सब एकदम बेकार ।
हिंदू इतनी गफलत में है , धर्म – सनातन भूला है ;
जैसे फंदा गले में डाले , खुद ही फांसी पर झूला है ।
हजार – बरस से कटता – मरता , फिर भी शत्रु नहीं जाना ;
पीठ में तेरे छुरा मारते , उनको ही अपना माना ।
धर्म – सनातन भूल गये हैं , अपनी जड़ से टूट गये हैं ;
अंग्रेजियत में अंधे इतने , भाग्य ही इनके फूट गये हैं ।
इनकी शतरंज ही उलट गई है , राजा ही प्यादे मरवाता ;
फौरन इस राजा को बदलो , अपने लोगों को मरवाता ।
चरित्रवान और परम-साहसी, यूपी-आसाम से राजा लाओ ;
सारे खेल हमेशा जीतो , अपनी शतरंज को ठीक बनाओ ।
तथाकथित हिंदूवादी दल , कान खोलकर अब सुन ले ;
फौरन अपना नेता बदलो , वरना अबकी हार को चख ले ।
तुष्टीकरण बढ़ाया जितना , उसका परिणाम भोगना होगा ;
टूट चुकी है सब्र की सीमा , हर हालत में जाना होगा ।
काशी के मंदिर तुड़वाकर , घोर पाप कर डाला है ;
उसका भुगतान तो करना होगा , संकट में सबको डाला है ।
तेरे वोटर भी भुगतेंगे , क्योंकि तुझको जितवाया है ;
प्रायश्चित उनका तब होगा , जब तुझको हरवाया है ।
तू भी हारे दल भी हारे , तब शायद प्रायश्चित हो ;
या दल तुझसे पल्ला झाड़े , तब ही जीत सुनिश्चित हो ।
तेरी जगह धर्मात्मा आये , यूपी या आसाम से आये ;
अब तो केवल ऐसे नेता , हिंदू मन – मंदिर में छाये ।
सदियों हिंदू ने धोखा खाया , अपने नेता से छला गया ;
पर अब हिंदू को वरदान मिला है,सोशल मीडिया जो लाया।
हिंदू ने सच्चाई जानी , सच्चा – इतिहास सामने आया ;
तेरा मायाजाल टूटकर , असली चेहरा सामने आया ।
हिंदू तुझको जान चुका है , अच्छी तरह पहचान चुका है ;
तेरा खेला खत्म हो चुका , तेरा जादू टूट चुका है ।
जीत का अब तो यही रास्ता , यूपी से योगी को लाओ ;
प्रायश्चित यदि करना चाहो , देश को हिंदू – राष्ट्र बनाओ ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”