विपुल रेगे। 270 करोड़ की लागत से बनाई गई ‘सालार पार्ट वन -सीज़फायर’ प्रभास के करिश्मे से रोशन हो रही है। प्रभास का करिश्मा एक कमज़ोर फिल्म को भी बूस्ट दे देता है। निर्देशक प्रशांथ नील की ये फिल्म दर्शकों की जबरदस्त भीड़ के साथ ओपन हुई है। ‘ए’ प्रमाणपत्र के साथ रिलीज हुई इस फिल्म में बहुत सा एक्शन है, हिंसा है और एक गहरी कहानी है, जिसे दर्शक को ध्यान से समझना पड़ता है। शाहरुख़ खान की ‘डंकी’ को टिकट खिड़की पर एक मजबूत प्रतिद्व्न्दी मिल गया है।
कलाकार : प्रभास,पृथ्वीराज सुकुमारन, श्रुति हसन, जगपति बाबू, बॉबी सिम्हा, टीनू आनंद, रामन्ना, ईश्वरी राव, सरिया रेड्डी, रामचंद्र राजू, जॉन विजय
निर्देशक: प्रशांत नील
जॉनर :एक्शन-ड्रामा
भाषा : तेलुगु, तमिल, हिंदी, मलयालम
संगीत : रवि बसरूर
सिनेमेटोग्राफी -भुवन गौड़ा
प्रशांथ नील का सिनेमा लार्जर देन लाइफ है। वे बहुत बड़े कैनवास पर फ़िल्में बनाते हैं। ‘सालार पार्ट वन -सीज़फायर’ में वह ताकत है कि ‘मॉस ऑडियंस’ को खींच सके। प्रशांथ नील अपनी फिल्मों में एक काल्पनिक विश्व खड़ा करते हैं। उनकी केजीएफ में सोने की लंका को विश्वसनीयता के साथ पेश किया गया था। ‘सालार पार्ट वन -सीज़फायर’ की कहानी में तीन ट्रेक्स साथ चलते हैं।
कहानी
देवा और वर्धा बचपन से गहरे दोस्त हैं। ये दोनों एक दूसरे के लिए जान दे सकते हैं। वर्धा एक ऐसे कबीले का वंशज है, जिसका इतिहास खूनखराबे से भरा हुआ है। एक बड़े गैंगवार के बाद दोनों दोस्त अलग हो जाते हैं। देवा को अपनी और अपनी माँ की जान बचाने के लिए गांव-गांव भागना पड़ता है। इसके बाद कहानी में एक बड़ा अंतराल आता है। एक लड़की आद्या को खानसार समुदाय द्वारा अपहरण कर ले जाया जा रहा है। इस लड़की को बचाने के लिए देवा प्रकट होता है। खानसार समुदाय इतना ताकतवर है कि देश की सरकार उससे सीधे नहीं भिड़ती। खानसार के एक बड़े काफिले को रोककर देवा उन्हें सीधी चुनौती देता है। इसके बाद कहानी के छुपे हुए सिरे सामने आने लगते हैं। शुरुआत में कहानी और इसके पात्रों को लेकर दर्शक के मन में जो कन्फ्यूजन रहता है, वह बाद में दूर हो जाता है। कहानी में तीन ट्रेक साथ चलते हैं और काफी हिस्सा फ्लैशबैक में भी जाता है। दर्शक को ये फिल्म बड़े ध्यान से देखनी पड़ती है क्योंकि दो मिनट का मोबाइल कॉल कहानी समझने में उलझन पैदा कर सकता है।
निर्देशक प्रशांथ नील का फ़िल्में बनाने का अपना स्टाइल है। उनके पात्र इस दुनिया के नहीं लगते। वे कहानी वास्तविक बनाने का प्रयास भी नहीं करते। प्रशांथ के निशाने पर हमेशा ‘मॉस ऑडियंस’ होती है। ‘सालार पार्ट वन -सीज़फायर’ को देखने की एक बड़ी वजह इसका एक्शन है। एक्शन सीक्वेंस के लिए निर्देशक ने वजनदार परिस्थितियों का निर्माण किया है। इनमे से एक तो थियेटर से बाहर आने के बाद भी याद रह जाता है।
खानसार के एक सरदार का बेटा अय्याश है। वह रोज़ बस्ती में जाकर पतंग उड़ाता है। पतंग जिस घर में जाकर गिरती है, वहां के परिवार को अपनी युवा बेटी देनी पड़ती है। इस दृश्य में प्रभास और प्रशांथ ने सौ प्रतिशत ज़ोरदार काम दिखाया है। यही दृश्य इस फिल्म की यूएसपी है। प्रशांथ से इस फिल्म में बड़ी गलतियां भी हुई हैं। जैसे काल्पनिक विश्व खानसार का सामाजिक चित्रण ‘केजीएफ’ की गोल्ड माइन बस्तियों की तरह वास्तविक नहीं लगता। खानसार के सेट्स पर गहराई से काम नहीं किया गया। फिल्म के पहले हॉफ में स्टोरी को बिल्डअप करने में काफी समय लिया गया है।
‘केजीएफ’ की तरह ही इस फिल्म में अधिकांश सीन डार्क टोन में फिल्माए गए हैं। लगभग आधी फिल्म इसी टोन में है और कहानी को समझने में एक अवरोध पैदा करती है। कई जगह प्रशांथ दोहराव का शिकार भी हुए हैं। अब वे अपनी निर्देशकीय शैली के शिखर पर विराजमान हैं। ‘सालार पार्ट वन -सीज़फायर’ में तो उन्होंने अपने शिखर को जैसे-तैसे बचा लिया है लेकिन उन्हें अब अपनी शैली में ताज़गी लाने की आवश्यकता है। इसके बावजूद फिल्म टिकट खिड़की पर सुरक्षित है। प्रभास के असाधारण ओरा ने फिल्म की कमजोरियों को ढांप लिया है। सालार में एक्शन दृश्यों को पूर्णता के साथ कोरियोग्राफ किया गया है। शारीरिक एक्शन से से लेकर दिल दहला देने वाली कार का पीछा करने तक, फिल्म ऐसे एक्शन सीक्वेंस पेश करती है जो यथार्थवादी और दृश्यमान दोनों हैं।
प्रभास का भूमिका के प्रति समर्पण झलकता है, जो फिल्म के एक्शन को बिल्कुल नए स्तर पर ले जाता है। गहरे धूसर रंगों के माध्यम से गहराई से बुने हुए कथानक, शानदार सीक्वेंस और इसके अविश्वसनीय पात्रों के साथ ये एक कमाऊ और बिकाऊ फिल्म सिद्ध हुई है। रवि बसरूर का संगीत औसत है, हां फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर जरूर दमदार है। भुवन गौड़ा अपनी सिनेमैटोग्राफी से फिल्म को अलहदा रंग देते हैं। अन्य कलाकारों में जगपति बाबू ,बॉबी सिम्हा, टीनू आनंद, ईश्वरी राव, श्रिया रेड्डी, रामचंद्र राजू, मधु गुरुस्वामी, जॉन विजय, सप्तगिरि ने अच्छा अभिनय किया है।
एस.एस.राजामौली ने प्रभास को एक सुदर्शन आक्रामक पुरुष के रुप में प्रस्तुत किया था और प्रशांथ नील ने उन्हें ‘गॉडजिला’ बना दिया है। ‘आदिपुरुष’ का सदमा पीछे छूट चुका है और प्रभास ने बॉक्स ऑफिस पर बलशाली मुक्का दे मारा है।