श्वेता पुरोहित। केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्न शोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम्।
पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्धुना सेव्यमानं नौमीड्यं जानकीशं रघुवरमनिशं पुष्पकारूढरामम् ॥
(रा०च०मा० ७। मंगलाचरण)
अर्थात् मोर के कण्ठ की आभा के समान (हरिताभ) नीलवर्ण, देवताओं में श्रेष्ठ, ब्राह्मण (भृगुजी)-के चरण- कमलके चिह्न से सुशोभित, शोभासे पूर्ण, पीताम्बरधारी, कमलनेत्र, सदा परम प्रसन्न, हाथोंमें बाण और धनुष धारण किये हुए, वानर समूह से युक्त, भाई लक्ष्मणजी से सेवित, स्तुति किये जाने योग्य, श्री जानकी जी के पति, रघुकुलश्रेष्ठ, पुष्पक विमान पर सवार श्रीरामचन्द्र जी को मैं निरन्तर नमस्कार करता हूँ।
पुष्पक विमान इच्छानुसार चलने वाला दिव्य विमान था। उस विमान में सोने के खम्भे और वैदूर्यमणि के फाटक लगे थे। वह सब ओर से मोतियों की जाली से ढका हुआ था। उसके भीतर ऐसे-ऐसे वृक्ष लगे थे, जो सभी ऋतुओं में फल देनेवाले थे। उसका वेग मन के समान तीव्र था। वह अपने ऊपर बैठे हुए लोगोंकी इच्छा के अनुसार सब जगह जा सकता था तथा चालक जैसा चाहे, वैसा छोटा या बड़ा रूप धारण कर लेता था। उस आकाशचारी विमान में मणि और सुवर्ण की सीढ़ियाँ तथा तपाये हुए सोने की वेदियाँ बनी थीं। वह देवताओं का ही वाहन था और टूटने-फूटनेवाला नहीं था। सदा देखने में सुन्दर और चित्तको प्रसन्न करनेवाल था। उसके भीतर अनेक प्रकारके आश्चर्यजनक चित्र थे। उसकी दीवारोंपर तरह-तरहके बेल-बूटे बने थे, जिनसे उसकी विचित्र शोभा होती थी। ब्रह्मा (विश्वकर्मा)-ने उसका निर्माण किया था। वह सब प्रकार की मनोवांछित वस्तुओंसे सम्पन्न, मनोहर और परम उत्तम था। न अधिक ठण्डा था और न अधिक गरम । वह विमान सभी ऋतुओंमे आराम पहुँचानेवाला तथा मंगलकारी था।
ब्रह्माजी ने यक्षों के स्वामी राजराज वैश्रवण कुबेर की सेवाओं से प्रसन्न होकर उन्हें यह विमान दिया था। रावण इन कुबेर का विमाता से उत्पन्न भाई था। उसने दीर्घकालतक तपस्या करके ब्रह्माजी को प्रसन्न किया और उनसे गन्धर्वों देवताओं, असुरों, यक्षों, राक्षसों, सर्पों, किन्नरों तथा भूतों से अपराजेयता का वरदान प्राप्त किया। वरदान से गर्वित रावण ने सबसे पहले अपने भाई कुबेर को युद्ध में परास्त किया और उन्हें लंका के राज्य से बहिष्कृत कर दिया। यक्षराज कुबेर लंका छोड़कर गन्धर्वों, यक्षों, राक्षसों तथा किम्पुरुषों के साथ गन्धमादन पर्वत पर आकर रहने लगे, परंतु रावण इतनेसे ही सन्तुष्ट नहीं हुआ, उसने पुनः आक्रमण करके उनक पुष्पक विमान भी छीन लिया।
तब कुबेर ने कुपित होकर उसे शाप दिया—‘अरे ! यह विमान तेरी सवारी में नहीं अ सकेगा। जो तुझे युद्ध में मार डालेगा, उसी का यह वाहन होगा मैं तेरा बड़ा भाई होनेके कारण मान्य था, परंतु तूने मेर अपमान किया है। इससे बहुत शीघ्र तेरा नाश हो जायगा’
विमानं पुष्पकं तस्य जहाराक्रम्य रावणः ।
शशाप तं वैश्रवणो न त्वामेतद् वहिष्यति ॥
यस्तु त्वां समरे हन्ता तमेवैतद् वहिष्यति ।
अवमन्य गुरुं मां च क्षिप्रं त्वं न भविष्यसि ॥
(महा० वन० २७५। ३४-३५)
राम-रावण-युद्ध में जब रावण का वध हो गया, तो विभीषण ने लक्ष्मण और सीतासहित श्रीरामजी के वापस् अयोध्या लौटने हेतु पुष्पक विमान उन्हें प्रस्तुत किया था इस प्रकार श्रीरामजी पुष्पकारूढ़ होकर अयोध्या आये और अयोध्या आने के पश्चात् उन्होंने उस दिव्य विमानक पूजन कर उसे प्रसन्नतापूर्वक कुबेर जी को वापस कर दिया।
श्री रघुनाथजी की जय 🙏🚩