तुमको जनता ने ताकत दी थी , चाहे जो कर सकते थे ;
शांति-व्यवस्था पूरे देश में, कानून का शासन ला सकते थे ।
बहुमत इतना मिला हुआ था , भला राष्ट्र का कर सकते थे ;
चीन,पाक की ऐसी तैसी , छिन गयी भूमि वो ले सकते थे।
भारत का हिंदू दोयम- दर्जा, तुम समाप्त कर सकते थे ;
तुष्टीकरण की हस्ती क्या है,अल्पसंख्यकवाद मिटा सकते थे
हजार- बरस की जो है गुलामी , दूर उसे कर सकते थे ;
जगह-जगह गद्दार भरे हैं , उनसे मुक्ति पा सकते थे ।
झूठे इतिहास की गहरी साजिश , उसे खत्म कर सकते थे ;
सच्चे इतिहास का मीठा अमृत , राष्ट्र को तुम दे सकते थे ।
शहर – शहर में पाक बने हैं , उन्हें खत्म कर सकते थे ;
गली-गली में चीन घुसा है , उसे साफ कर सकते थे ।
राष्ट्र की गौरवशाली गरिमा , पुनः प्राप्त कर सकते थे ;
विश्व – शांति की रक्षा करने , हिंदू – राष्ट्र बना सकते थे ।
भारत के वीर सपूतों का तुम , बचा काम कर सकते थे ;
वामी ,कामी ,धिम्मी ,सेक्युलर , दुरुस्त उन्हें कर सकते थे ।
राष्ट्रप्रेम की ज्योति बुझ रही, फिर से जागृत कर सकते थे ;
हमलावरों के नामों-निशां को भी , समाप्त कर सकते थे ।
आक्रांताओं के आतंकी वंशज, सही राह पर ला सकते थे ;
हिंदू मुस्लिम के बीच की दूरी,उसको भी तो मिटा सकते थे।
विश्व – गुरु का पद भारत का , पुनः प्राप्त कर सकते थे ;
कितने नोबेल तुझे चाहिये ? सब के सब पा सकते थे ।
पता नहीं क्या हुआ तेरे संग ? सही राह से भटक गया है ;
कायरता हो गयी है हावी , जगह-जगह पर अटक गया है ।
सुभाष बोस को भुला दिया है, सावरकर को बिसराया है ;
गांधी जैसे चरित्रहीन को , पता नहीं क्यों अपनाया है ?
बलिदान वीर था वीर गोडसे , उसको समझ नहीं पाया ;
झूठे – इतिहास का काला- जादू , तेरा पूरा सर चकराया ।
इसी से तेरी नैया डूबी , तू भी डूबने वाला है ;
तेरे संग पार्टी डूबेगी , शीध्र यही होने वाला है ।
चमत्कार अब भी हो सकता, पर अब तुझे संभलना होगा ;
धर्म तुझे जीवन दे सकता , पर धर्म-मार्ग पर चलना होगा ।
उल्टे जितने काम किये हैं , फौरन उन्हें पलटना होगा ;
धर्म – सनातन सर्वश्रेष्ठ है , इसी मार्ग पर चलना होगा ।
“वंदेमातरम-जयहिंद”
रचयिता: ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”