विपुल रेगे। भौकाल : 2 आरंभ से अंत तक प्रचंड है। मोहित रैना का विस्फोटक अभिनय और अचूक निर्देशन का जोड़ इसे एक भव्य वेब सीरीज में परिवर्तित कर देता है। ओटीटी के दर्शकों ने खुले मन से मोहित रैना का अभिनंदन किया है। उत्तरप्रदेश पुलिस के एसएसपी नवनीत सिकेरा के रुप में रैना ने अपने नाम का मील का पत्थर गाड़ दिया है।
ओटीटी मंच : Mx player
जिन नवनीत सिकेरा के शौर्य पर ये वेब सीरीज बनाई गई है, वे अब उत्तरप्रदेश के डीजीपी के पद पर सेवारत हैं। उनके पुलिस सेवा में आने का कारण भी एक घटना रही। सिकेरा के पिता को कोई धमकी भरे कॉल कर रहा था। जब वे अपने पिता के साथ पुलिस स्टेशन रिपोर्ट लिखवाने गए तो वहां रिपोर्ट नहीं लिखी गई और उनका मज़ाक बनाया गया।
इस घटना से सिकेरा पुलिस सेवा में जाने के लिए प्रेरित हुए। पहले प्रयास में ही वे पुलिस भारतीय सिविल सेवा के लिए चुने गए। उसके बाद उन्होंने जो किया, वह तो स्वर्णिम इतिहास बन गया। मोहित रैना नवनीत सिकेरा के रुप में इतने प्रभावी और वास्तविक दिखाई देते हैं तो उसका कारण रैना और सिकेरा के बीच हुई तीन महत्वपूर्ण मुलाकातें हैं।
सम्भवतः इन तीन मुलाकातों में रैना ने सिकेरा के प्रेरक व्यक्तित्व को आत्मसात किया होगा। निर्देशक जतिन वागले और मोहित रैना के शोध व होमवर्क से इतना तो हुआ कि भौकाल की पुलिस बॉलीवुडी पुलिस की तरह नहीं लगती अपितु बहुत वास्तविक दिखाई देती है। कथा वही से शुरु होती है, जहाँ से छोड़ी गई थी। शौक़ीन की हत्या होने के बाद उसकी प्रेमिका नाज़ किसी भी तरह नवनीत सिकेरा को मारना चाहती है।
बदले हुए माहौल में वजीर भी बदल जाते हैं। अब देढ़ भाई पिंटू और चिंटू डर का साम्राज्य बनाना चाहते हैं। सांसद असलम राना इस काम में उनकी मदद स्वचालित हथियार भेज कर करता है। देढ़ भाई मिलकर आतंक मचाना शुरु करते हैं और नवनीत सिकेरा एक दिन स्वयं को सिस्टम की कालिख में घिरे पाते हैं।निर्देशक जतिन वागले ने दूसरे भाग के दस एपिसोड प्रस्तुत किये हैं। इनमे से एक भी एपिसोड बोझिल नहीं लगता।
उन्होंने हर एपिसोड में रोचकता बनाए रखी है। दर्शक की दिलचस्पी बढ़ती जाती है कि अंत में क्या होने जा रहा है। निर्देशक की सबसे बड़ी विशेषता है कैरेक्टर बिल्डिंग। उन्होंने फिल्म के मुख्य पात्रों को आकाश जैसा विस्तार दिया है। वे पात्र को उसकी जटिलताओं और विषमताओं के साथ गहनता से प्रस्तुत करते हैं। मोहित रैना के सहज अभिनय की सब ओर मुक्त कंठ से प्रशंसा हो रही है।
मुझे आश्चर्य है कि दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग को उनमे असीमित प्रतिभा क्यों नहीं दिखाई दी। ये वेब सीरीज उनके ऊर्जा के स्पंदन से ही दौड़ती है। इस बार उन्होंने अभिनय के कई शेड्स दिखाए हैं। वह दृश्य बहुत प्रभावशाली रहा, जिसमे मुजफ्फरनगर की महिलाएं सिकेरा को चूड़ियां भेंट कर देती है और सिकेरा उसे चुनौती समझकर अपने साथ ले आता है।
मुख्य खलनायक पिंटू के रूप में प्रदीप नागर ने चमत्कार कर दिया है। मैं बेझिझक उनकी तुलना शोले के गब्बर से करना चाहूंगा। जब वह किसी को मारने जाता है तो उसके पहले ही दर्शक के मन में दहशत घर कर जाती है। ये बहुत स्ट्रांग विलेन है जो अंतिम समय तक चुनौती बना रहता है। प्रदीप नागर में गजब का पोटेंशियल दिखाई दिया मुझे।
चिंटू देढ़ा का किरदार सिद्धांत कपूर ने किया है और वे भी पूरी तरह अपने किरदार में रहते हैं। ये वेब सीरीज अंत तक रोमांचक बनी रहती है। मुझे इसकी व्यवसायिक सफलता में कोई संदेह नहीं है। फिल्म का क्लाइमैक्स बहुत शानदार है। ये वैसा ही अंत है, जैसा दर्शक अपेक्षा करता है। ये वेब सीरीज छोटे बच्चों के लिए नहीं है। इसमें एक एडल्ट दृश्य भी है और रक्तपात भयंकर है। अपितु वह फिल्म की मांग के अनुसार किया गया है। ये एक दर्शनीय वेब सीरीज है। जिनको भौकाल पसंद आई थी, उन्हें इसका दूसरा भाग भी बहुत भाएगा।