विजय देव झा : श्यामा मन्दिर श्मशान परिसर का हिस्सा है और इस मन्दिर में अवस्थित माँ भगवती अपने अनन्य भक्त तान्त्रिक महाराज रमेश्वरसिंह की चिता पर विराजमान हैं।
रमेश्वरसिंह दैवज्ञ तान्त्रिक थे। एकबार उन्होंने अपने पुत्र कामेश्वर सिंह को बलि का प्रसाद दिया। कामेश्वर सिंह आधुनिक विचार वाले थे, बलि का प्रसाद स्वीकार करने में अनिच्छा दिखाई। रमेश्वर सिंह कुपित हो गए और अकस्मात ही कामेश्वर सिंह के लिए उनके मुँह से निकल गया की तुम निःसंतान ही रहोगे। यद्यपि इसके तुरंत बाद उन्हें अपने वाणी पर पश्चात्ताप हुआ। मगर उनके श्राप का असर तो पर गया।
तो आज आप लोग इस मंदिर के उस देवी के निमित्त बलि की व्यवस्था को बंद करवा रहे हैं जो अपने भक्त के चिता पर विराजमान हैं। आप जागृत भगवती और उसके प्रकाण्ड तांत्रिक के साथ मजाक कर रहे हैं। मैं लिखना नहीं चाहता हूँ इसलिए ऊपर बता दिया है।
आज आप इस मंदिर में बलि प्रदान पर रोक लगा रहे हैं। कल को आप मां भगवती के हाथ में खप्पड़ और गले में मुंडवाल पर आपत्ति करेंगे क्यों कि आपके हाथ में सत्ता है, मंदिर के प्रबंधन पर आपने बलात कब्जा कर लिया है।
इस बेहूदे निर्णय के विरोध में हम क्यों इन्हें मिथिला में शक्ति पूजा की परंपरा या फिर मिथिला स्कूल ऑफ लॉ समझा रहे हैं? ये अनपढ़, मूढ़मगज, उद्दंड दैत्यगुण सम्पन्न लोग हैं। जो एक पंक्ति दुर्गा सप्तशती पढ़ नहीं सकता उन पतितों से आप सद्बुद्धि और सार्थक बहस की अपेक्षा रखते हैं? ये आधुनिक समाज के मधु कैटभ शुम्भ निशुम्भ महिषासुर हैं।
मंदिर परिसर में बलि प्रथा का विरोध करने वाले तथाकथित ये सात्विक लोग अपने बाल बच्चे के सर हाथ रखकर शपथ खा कर कहें कि वह या उनके परिवारजन माँस भक्षण करते हैं कि नहीं? शराब पीते हैं की नहीं? हद तो यह है कि ऐसे बभना भी इनकी हाँ में हाँ मिलाते हैं जो दिनभर मुर्गा अंडा खाते रहते हैं।
जब राक्षसों का अहंकार सर पर चढ़ता था तो वह भगवती और भगवान को चुनौती देने लगता था। आज आप भगवान के साथ धुरखेल कर रहे हैं इसी जन्म में आपको इसका फल मिलेगा। एक लंबे अरसे से इस मंदिर के पूजा पद्धति और भूमि विशेष के प्रकृति के साथ छेड़छाड़ हो रहा है। इन लोगों की नजर इस मंदिर के बेसकीमती जमीन पर है।
हमारी धार्मिक व्यवस्था कोई न्यास बोर्ड कोई जैनी तय नहीं करेगा। हमारी मान्यताएं मारवाड़ में तय नहीं होगी।
साभार: विजय देव झा के फेसबुक वाल से।