“सुभद्रा” राधाकृष उनियाल
जेसिकालाल मर्डर में
मनु का जेल जाना
बाप के रसूख से
जमानत पर छूटना
रेस्टुरेंट में फिर फसाद करना
और वापिस जेल जाना
तथा माँ को याद करना
- अख़बार की सुर्खियों में था
किन्तु प्रश्न उठता है
कि मनु ने जो किया
क्या माँ ने सिखाया था
- नहीं, कदापि नहीं
यह सोचना माँ का अपमान है
माँ की मंशा पर शक - हमारा अज्ञान है
माँ प्रकृति की निर्मल पहचान है
उसका मातृत्व सृष्टि की शान है
सदाचरण ईश्वरीय नियम है
जिसकी नींव माँ डालती है
इसीलिए मुसीबत में
पहले माँ ही याद आती है
किन्तु दोष आता है जब
माँ कुपथगामी बालक को रोकने का आत्मबल नहीं जुटाती है
और उसके दोष
अपने आंचल में छुपाती है
बालक माँ-बाप का अनुसरण करता है
वह उपदेश से कम
आचरण से अधिक सीखता है
माँ का धर्मसंगत आचरण
बालक में धर्म जगाता है
पिता का कर्मसंगत आचरण
उसका कर्म संवारता है
समाज का न्याय संगत आचरण
उसका न्यायबोध कराता है
राष्ट्र का नैतिक आचरण
उसका चरित्र निखारता है
दुःखद है कि
धर्मबल के अभाव में
आज हम कर्तव्य विमुख हो रहे हैँ
नैतिकबल के अभाव में
हम पथभ्रष्ट हो रहे हैँ
चरित्रबल के अभाव में
हम निरे पशु बन गए हैँ
हमारा आत्मबल मर रहा है
हमारा न्यायबोध मर रहा है
हमारा जनतंत्र मिट रहा है
राष्ट्र छिन्न-भिन्न हो रहा है
अराजकता फल रही है विघटनवाद पल रहा है
देशभक्त-सिपाही रोज बेमौत मरते हैँ
इनके बलिदान पर कुछ निखट्टू मौज करते हैँ
हरएक अपने ही लिये सोचता है
देश की अस्मिता पर प्रहार होता है
स्वेच्छाचार का यह सिलसिला सालों से चल रहा है
किन्तु देश के कर्णधारों के कान जूं तक नहीं रेंक रहा है
लेकिन गिरवी निष्ठा वाले महारथियों से इतिहास अब ऊब गया है
शकुनि जैसे कूटनीतिज्ञों का सूरज भी अब डूब गया है
हे भारत की माताओं !
भारत माता के उध्दार हेतु
तुमको अब आगे आना होगा
आजके इस विषम महाभारत में
तुमको सुभद्रा बनकर दिखाना होगा
देशहित में अभिमन्यु जैसे वीरों को गढ़ना होगा
चक्रव्यूह भेदन का पूर्ण वृतांत बिन सोये सुनना होगा
इस धर्मयुद्ध में पुत्रछोह के भय से भी उबरना होगा
कर्मयोग की शिक्षा इन वीरों के रक्त में मिलानी होगी
कृष्ण की गीता भी घुट्टी में इनको पिलानी होगी
तुम्हारे निष्काम कर्म की बानगी कृतज्ञ राष्ट्र को नवजीवन देगी
तुम्हारे ही पराक्रम से राष्ट्र की संप्रभुता भी अक्षुण रहेगी