हिंदू अब तो तजो मूर्खता , कब – तक गले कटाओगे ?
जब पानी सर से ऊपर होगा , तब कैसे जान बचाओगे ?
अभी समय रणनीति बनाओ, अपना सब अज्ञान हटाओ ;
शस्त्र- शास्त्र का पूर्ण प्रशिक्षण , धर्म-सनातन अपनाओ ।
अभी तो तुमने धर्म छोड़कर, केवल पाखंड पकड़ रखा है ;
जो जहर बो गया था गांधी , उसके चेलों ने जकड़ रखा है ।
सबके विश्वास का नारा झूठा, विश्वासघात तुमसे करता है ;
कोई डीएनए मिला रहा है , पर हिंदू-लाशें गिनता है ।
शाहीन-बाग जो रोक न पाया , वो क्या तुझे बचा पाएगा ?
रोड-जाम से जो डरता हो , वो क्या राष्ट्र बचा पाएगा ?
हजार- बरस जो हो न पाया , लगता है अब हो जाएगा ;
पहले वीर शिवा – राणा थे , हिंदू अब कैसे बच पाएगा ?
अब तो देश पर शासन करते , सरकारी – अब्बासी हिंदू ;
गुलाम ये सारे जेहादी के , खत्म करेंगे मिलकर हिंदू ।
हिंदू अब भी है धोखे में , इनके चक्कर में फंसा हुआ है ;
महामूर्ख इतना है हिंदू , नाग पाल कर डंसा हुआ है ।
शत्रु-मित्र की पहचान नहीं है , सच्चा-इतिहास नहीं जाना ;
हजार-बरस से कटते आए , फिर भी शत्रुबोध न माना ।
कब – तक चारा बने रहोगे ? इस झूठे भाईचारे में ;
तुम उस नेता पर मरते हो , जो सोचे न तेरे बारे में ।
वो तो तृप्तिकरण में डूबा , अब राष्ट्र डूबने वाला है ;
बचा सको तो धर्म बचा लो , वो ही तेरा रखवाला है ।
धर्म की रक्षा जो करते हैं , धर्म भी उनकी रक्षा करता ;
जो भी धर्म-सनातन भूला , गला उसी का कटता रहता ।
धर्म ही हमको राह दिखाता , शत्रुबोध जागृत करता है ;
शत्रुबोध जिसका हो जागृत , असमय मरने से बचता है ।
शत्रुबोध तेरा सो जाए , अब्बासी- हिंदू यही चाहता ;
सोते से हिंदू जाग न जाए , इसी से झूठा इतिहास पढ़ाता ।
जागो हिंदू ! अब तो जागो , मौत की नींद नहीं सोना है ;
बचा-खुचा जो भी तेरा है , उसको अब न खोना है ।
धर्म – सनातन जगा रहा है , पूरी तरह जाग जाओ ;
जो भी खोया सब पाओगे , देश को हिंदू-राष्ट्र बनाओ ।
हिंदू – राष्ट्र बनेगा भारत , सारे- हिंदू मिल जाओ ;
“इकजुट-जम्मू” सर्वश्रेष्ठ है , इसको सत्ता में लाओ ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”