पैंसठ साल का रघुवेन्द्र सिंह ने अपनी दूसरी शादी एक जवान लड़की से रचाई है, जो उससे आधी उम्र की है। ठाकुर ने इस लड़की को ख़रीदा था। शादी की रात ही रघुवेंद्र सिंह की नृशंस हत्या हो जाती है। पुलिस इंस्पेक्टर जटिल यादव हत्या की जाँच के लिए शादी वाले घर पहुंचा है। पहली नज़र में लग रहा है कि ठाकुर की हत्या उसकी नई नवेली पत्नी ने कर डाली है, लेकिन जटिल यादव को लगता है कि कहीं तो कुछ मिसिंग है। इसी परिवार की एक महिला कुछ साल पहले अपने घर आते समय गायब हो गई थी। नवाजुद्दीन सिद्दीकी अभिनीत ‘रात अकेली है’ को विद्या बालन की ‘शकुंतला देवी’ के बाद देखना ऐसा अनुभव है, जैसे आपकी कार खड़खड़ाती कच्ची राह से निकलकर चिकने स्मूद हाइवे पर दौड़ने लगी हो।
इस कहानी को रहस्यों के धागों से इस तरह बुना गया है कि दर्शक फिल्म से एंगेज हो जाता है। किसी भी क्राइम थ्रिलर की सफलता इसमें ही निहित होती है कि वह दर्शक को अपने में डूबा दे। ‘रात अकेली है’ का कथानक बहुत दिलचस्प है। दो हत्याएं कुछ वर्षों के अंतर पर हुई है और दोनों में गहरा संबंध है।
इंस्पेक्टर निष्ठापूर्वक इस केस की जाँच करना चाहता है लेकिन एक नेता केस में इन्वॉल्व है और वह इंस्पेक्टर को गुमराह कर असली क़ातिल से ध्यान हटाना चाहता है। लड़की राधा का किरदार संदेहास्पद है। रघुवेन्द्र सिंह के अलावा घर के एक युवा से उसका प्रेम प्रसंग भी चल रहा है। आखिर तक पता नहीं चल पाता कि हत्या किसने की है। जटिल यादव शादी समारोह के वीडियो एक बार फिर देखता है। अब उसे समझ आता है कि वह क्या गलती कर रहा था।
नवाजुद्दीन सिद्दीकी पिछले कुछ वर्ष में प्रखर अभिनेता होकर उभरे हैं। उनके अभिनय की मिठास हर फिल्म से बढ़ती ही चली जाती है। जटिल यादव का किरदार बड़ा जटिल था। एक सख्त पुलिस इंस्पेक्टर अविवाहित है। उसकी माँ हर बार उसे लड़की दिखाने ले जाना चाहती है।
सफ़ेद होते बालों को रंगने वाले जटिल के मन में दबी इच्छाएं समय-समय पर जाग जाती है। जटिल का नाम जतिन था लेकिन उसकी माँ की गलती से जन्म प्रमाणपत्र में नाम ‘जटिल’ लिखा जाता है। इस क्राइम थ्रिलर में जो भी कमियां रह जाती हैं, उसे नवाज़ का जीवंत अभिनय ढांप देता है।
राधिका आप्टे स्वाभाविक अभिनेत्री हैं। वे सहजता से अपने किरदार में उतर जाती है। राधा का किरदार उनके बिंदास व्यक्तित्व को सूट करता है। हम उन्हें पिछले कई साल से देख रहे हैं। वे ऑफबीट किरदार अधिक स्वीकार करती हैं। पिछली बार ‘अंधाधुन’ में राधिका ने बहुत प्रभावित किया था।

राधा के किरदार में वे लुभाती हैं। शरद केलकर, स्वानंद किरकिरे, शिवानी रघुवंशी, श्वेता तिवारी ने भी बेहतर किया है। गीतकार स्वानंद किरकिरे को अभिनय की पारी रास आ रही है, ये उनके एक्ट को देखते हुए महसूस होता है। इस क्राइम थ्रिलर में अंत तक रूचि बनी रहती है तो उसका एक कारण कलाकारों के परफॉर्मेंस भी हैं।
निर्देशक हनी त्रेहन रात के अंधकार को भी अपने सस्पेंस का अटूट भाग बना लेते हैं। उनके भीतर एक अच्छा निर्देशक छुपा बैठा है, इस फिल्म को देखकर पता चला। बस उनसे एक छोटी सी त्रुटि हो गई। फिल्म का कथानक शुरू में बहुत धीमा रहता है, जो इस जॉनर की फिल्मों के लिए अच्छी बात नहीं होती।
शुरू के बीस मिनट कहानी स्थापित होने में लग जाते हैं। बाद में फिल्म लय पकड़ती है और एक सौंधे सुखद अंत पर जाती है। बैकग्राउंड स्कोर और कैमरा वर्क प्रशंसनीय है। बैकड्रॉप के तौर पर कानपुर का प्रयोग किया गया है, जो सुखद लगता है। सबसे अच्छी बात ये लगी कि इस रक्तरंजित कथा के ठूंठ पर एक प्रेम की तितली भी आ बैठती है। ऐसी फिल्मों में लव एंगल स्थापित कर पाना सर्वथा कठिन कार्य है। एक ऐसी स्त्री, जिस पर हत्या का अंदेशा है और उसके चरित्र पर भी संदेह है, उसके लिए प्रेम का एंगल खोज लाना प्रशंसा योग्य है।
शकुंतला देवी जैसी नीरस फिल्म देखने के बाद ‘रात अकेली है’ देखना राहत भरा अनुभव रहा। ओटीटी पर ‘दिल बेचारा है’, ‘ब्रीद’ और ‘रात अकेली है’ जैसी फिल्मों का अच्छा प्रदर्शन फिल्म निर्माताओं के लिए शुभ संकेत है। कोरोना जैसी आपदाओं में मनोरंजन के लिए ये एक अच्छा मंच हो सकता है, बशर्ते अच्छे कंटेंट के साथ निर्माता इस ओर रुख करें।
बहरहाल इस वीकेंड आप ‘रात अकेली है’ देख सकते हैं। यदि आप क्राइम थ्रिलर के शौक़ीन हैं तो ये फिल्म आपको पसंद आ सकती है। छोटी उम्र के दर्शकों के लिए इस फिल्म में कुछ नहीं है। नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने ओटीटी पर अपनी पहली ‘स्मैश हिट’ दे दी है।