श्वेता पुरोहित। हंस और बलभद्र का युद्ध तथा सात्यकि और डिम्भक का युद्ध
वैशम्पायनजी कहते हैं – बाणधारियों में श्रेष्ठ धर्मात्मा बलदेवजी ने तुरंत धनुष लेकर दस बाणों से हंस को घायल कर दिया। हंसने भी बदले में पाँच शीघ्रगामी नाराचों द्वारा उनपर प्रहार किया; परंतु हलधर ने पुनः दस नाराच मारकर बीच में ही उन्हें काट दिया और शीघ्र ही एक नाराच से हंस के ललाट में बलपूर्वक आघात किया। उस नाराच ने गहरी चोट पहुँचा कर हंस को अचेत कर दिया। वह देरतक रथ के पिछले भाग में बैठा रहा। इसके बाद होश में आकर हंस ने तरकस से बाण निकाला और उससे यदुश्रेष्ठ बलभद्र को घायल करके रणभूमि में देवताओं को विस्मय में डालते हुए उसने सिंह के समान गर्जना की। उसके बाण से आहत होकर माधव हलधर कुपित हो उठे और समराङ्गण में अत्यन्त उष्ण रक्त वमन करते हुए लम्बी साँस खींचने लगे। उनका शरीर रक्त से रञ्जित हो कुङ्कुम से भीगा हुआ-सा प्रतीत होने लगा। तब नीलवस्त्रधारी हलधर माधव ने हंस के समान गतिवाले वीर हंस को लाखों नाराचों से पीड़ित कर दिया। उनके धनुष से छूटे हुए वे सुन्दर पंखवाले तीखे और भयंकर नाराच हंस के रथ, ध्वज, धनुष, चक्र और दोनों तरकसपर पड़कर सब ओर से पीड़ा देने लगे। महाराज ! तब बल-पराक्रम के मद से उन्मत्त हुए और समय का ज्ञान रखने वाले हंसने कुपित होकर एक बाण से हलधर को घायल करके उनकी ध्वजा काट डाली; फिर चार बाणों से चारों घोड़ों को मारकर एक बाण से उनके सारथि को भी यमराज के हवाले कर दिया। तब क्रोध में भरे हुए महाबाहु हलधर उस महान् समरमें गदा लेकर फुफकारते हुए शेषनाग के समान हंस पर टूट पड़े। हलधर बलरामजी ने उस गदा के द्वारा हंस के रथ, ध्वज, चक्र, अश्व तथा सारथि सबको तिल-तिल करके काट डाला और बारम्बार गर्जना की। बलवान् वीर बलभद्र ने पुनः गदाद्वारा हंस को चोट पहुँचायी। यह देख हंस भी गदा लेकर अपने रथ से कूद पड़ा। तदनन्तर लोक में विख्यात तेजवाले महाबाहु महारथी हंस और हलधर उस महासमर में युद्ध करने लगे।
वे दोनों परम पराक्रमी, एक-दूसरे के वध की इच्छा रखनेवाले, महायुद्ध के लिये परिश्रम करनेवाले और हंस के समान चलने वाले थे। उनमें अत्यन्त अद्भुत युद्ध होने लगा। जैसे पूर्वकाल में देवासुर-संग्राम के अवसरपर इन्द्र और वृत्रासुर आकाश में जूझते थे, उसी प्रकार वे हंस और बलभद्र भी परस्पर युद्ध कर रहे थे। उस महासमर में दोनों के सारे अङ्ग खून से रँग गये थे। उस युद्धस्थल में एक-दूसरे के बल से दोनों को अत्यन्त खेद हो रहा था। तदनन्तर बलभद्र ने दाहिने मार्ग का अनुसरण किया। हंसने स्वयं ही बायें पैंतरे को अपनाया। हाथी के समान पराक्रम प्रकट करनेवाले उन दोनों वीरों ने युद्धमें एक-दूसरे को गदा द्वारा घायल किया। उन महाबाहु वीरों ने पूरा बल लगाकर एक-दूसरे के वध के लिये परस्पर प्रहार किया। उस महान् समराङ्गण में समस्त देवताओं के देखते-देखते वे दोनों वीर देवासुर-संग्राम के समान बड़ा भारी युद्ध करने लगे। देवता और मुनि भी बड़े विस्मय को प्राप्त हुए। देवता, गन्धर्व और किन्नर विस्मय के वर्श होकर इस प्रकार कहने लगे – ‘अहो! ऐसा युद्ध हमने न तो पहले कभी देखा है और न सुना ही है’। एक-दूसरे को जीतने का उत्साह मन में लिये वे दोनों वीर उत्तम युद्ध कर रहे थे। तदनन्तर उदार पुरुषों में श्रेष्ठ हंस ने उस महासमर में दाहिने पैंतरे पर विचरना आरम्भ किया और बलवान् बलभद्र बायें पैंतरेपर अत्यन्त तीव्र गतिसे विचरने लगे। युद्ध की कला जानने वाले विद्वानों में श्रेष्ठ बलभद्र और हंस ने देवताओं के देखते-देखते पहले दोनों घुटनों को मोड़कर रणभूमि में एक-दूसरे को गदाद्वारा गहरी चोट पहुँचायी।
सात्यकि और डिम्भक का युद्ध
तदनन्तर डिम्भक और सात्यकि अत्यन्त घोर युद्ध करने लगे। वे दोनों बलवान् वीर क्षत्रियों में विख्यात थे। उन्होंने महायुद्ध में बड़ा परिश्रम किया था। वे दोनों सदा वृद्ध पुरुषों का सेवन करनेवाले थे।
वीर सात्यकि ने वेदों के पारङ्गत विद्वान् डिम्भक के स्तन, मुख और छाती में दस पैने बाणों से प्रहार किया। उस बलवान् वीर के द्वारा घायल किये गये क्षत्रियशिरोमणि डिम्भक ने जिसे युद्ध में अपने पराक्रमपर बड़ा गर्व था, सात्यकि को पाँच हजार नाराचों द्वारा चोट पहुँचायी, परंतु वृष्णि वीर सात्यकि ने उन नाराचों को बीच में ही गर्जना करके तथा बोलकर हुंकारमात्र से ही खण्डित कर दिया।
तब सात शीघ्रगामी बाणों से घायल होकर कुपित हुए नृपश्रेष्ठ डिम्भकने पुनः एक लाख बाणों से सात्यकि को क्षत-विक्षत कर दिया। तत्पश्चात् पराक्रमी यादव वीर सात्यकि ने एक तीखे अर्धचन्द्राकार बाण से डिम्भक के उस धनुषको काट डाला। तब पराक्रमी वीर डिम्भक ने दूसरा धनुष लेकर तेलसे धुले हुए भयंकर क्षुरप्र के द्वारा सात्यकि को गहरी चोट पहुँचायी। उस बाण से घायल हो रक्त-वमन करते हुए सात्यकि वसन्त में खिले हुए पलाश के समान बड़ी शोभा पाने लगे। तब उन्होंने पुनः डिम्भक के उस विशाल धनुष को काट डाला, जिसको उसने दुबारा हाथ में लिया था। तदनन्तर डिम्भक ने पुनः दूसरा धनुष हाथ में लेकर समस्त क्षत्रियों के देखते- देखते यादवेश्वर सात्यकि को पैने बाणों से घायल करना आरम्भ किया। सात्यकि ने युद्धस्थल में दुरात्मा डिम्भक के उस अत्यन्त भयंकर धनुष को तीखे पंखवाले बाणसे पुनः काट डाला। फिर नृपश्रेष्ठ डिम्भक ने तुरंत दूसरा धनुष लेकर उसके द्वारा सात्यकि को पुनः बींधना आरम्भ किया। इस प्रकार सात्यकि ने सब क्षत्रियों के देखते-देखते डिम्भक के एक सौ दस धनुष काटकर बड़े जोरसे गर्जना की।
तब डिम्भक और सात्यकि दोनों वीर अपने धनुषों को त्यागकर अत्यन्त भयंकर खड्ग हाथ में ले परस्पर युद्धके लिये उपस्थित हुए। वे दोनों वीर खड्गयुद्ध के ज्ञाताओं में श्रेष्ठ थे।
महाभाग दुःशासनकुमार, सोमदत्तपुत्र भूरिश्रवा, पराक्रमी अभिमन्यु तथा नकुल (और डिम्भक, सात्यकि) – ये युद्धस्थल के छः श्रेष्ठतम वीर खड्गयुद्ध के ज्ञाताओं में उत्कृष्ट माने गये हैं। नृपश्रेष्ठ ! इन छहों में भी ये दोनों श्रेष्ठ नरेश सर्वोत्तम कहे गये हैं।
वे ही दोनों युद्ध की लालसा लेकर खड्ग द्वारा परस्पर जूझने लगे। भ्रान्त, उद्घान्त, आविद्ध, प्रविद्ध, बाहुनिःसृत, आकर, विकर, भिन्न, निर्मर्याद, अमानुष, संकोचित, कुलचित, सव्यजानु, विजानु, आहिक, चित्रक, क्षिप्त, कुसुम्ब, लम्बन, धृत, सर्वबाहु, विनिर्बाहु, दक्षिण, उत्तर, त्रिबाहु, तुङ्गबाहु, सव्योन्नत, उदासि, पट्टिक, मौष्टिक, यौधिक और प्रथित-ये खड्गयुद्धके बत्तीस पैंतरे हैं।
खड्ग युद्ध में लगे हुए उन दोनों वीरों ने ये सभी पैंतरे वहाँ प्रकट किये। वे बारम्बार प्रहार करते हुए भी थकते नहीं थे। महाराज! पुष्कर में रहकर उन दोनों वीरों ने युद्ध के लिये दृढ़ निश्चय कर लिया था। तदनन्तर देवता, गन्धर्व, सिद्ध और महर्षि विजय के लिये परिश्रम करनेवाले उन दोनों वीरों की भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे – ‘अहो ! बाहुबल से सुशोभित होनेवाले इन दोनों वीरों का धैर्य और पराक्रम अद्भुत है। ये ही दोनों युद्ध में समर्थ हैं तथा खड्ग विद्या और धनुर्वेद के पारङ्गत विद्वान् हैं।
इनमें से एक तो भगवान् शङ्कर का शिष्य है और दूसरा बुद्धिमान् द्रोणाचार्य का। अर्जुन, सात्यकि और जगदीश्वर भगवान् वासुदेव – ये तीन सदा ही युद्धस्थल में ‘महावीर’ के नाम से विख्यात हैं । ‘डिम्भक, कुमार कार्तिकेय और भगवान् शिव – ये तीन मुख्य ‘महारथी’ हैं। ये सभी बल और वीर्य में विख्यात हैं ‘। इस प्रकार वे देवता, गन्धर्व, सिद्ध, यक्ष और बड़े-बड़े नाग युद्ध देखने की इच्छा से खड़े होकर एक साथ उपर्युक्त बातें कर रहे थे।
शेष अगले भाग में…
बस अब कुछ ही भाग रह गए हैं इस कथा के अंत में। यहाँ तक बने रहने के लिए धन्यवाद 🙏 आशा है कि आपको ये कथा रोचक लग रही होगी।