इन दिनों एक नया चलन चला है कि जैसे ही कोई हिन्दू त्यौहार आता है वैसे ही सेक्युलर लेखक एवं पत्रकार एक नई थ्योरी गढ़ने लगते हैं कि यह त्योहार तो मुगल काल से शुरू हुआ था, यह त्यौहार तो बाबर ने शुरू किया था, यह त्यौहार जहाँगीर ने या यह अकबर ने शुरू किया था। अब इन सब बातों पर न जाते हुए कि कौन से निष्पक्ष पत्रकार ने क्या कहा, आइये एक नज़र डालते हैं कि यह कथित महान मुग़ल क्या हिन्दुओं के बारे में क्या सोचते थे। शुरुआत करते हैं बाबर से। बाबर की नजर हिन्दुस्तान पर न जाने कब से थी। राणा सांगा के बारे में वह लिखता है
“हिन्दुओं में बहुत बड़ा राजा बड़े मुल्क और बड़े लश्कर वाला बीजा नगर है और दूसरा राणा सांगा है, इन्हीं दिनों अपनी बहादुरी और तलवार से इतना बड़ा हो गया है कि उसकी असली वलायत तो चित्तौड़ है मगर मंडू की बादशाहों की बादशाहत में खलल पड़ने से बहुत सी वलायतें जो मंडू से इलाका रखती थीं, दबा बैठा है जैसे रणथम्भौर, भेलसा चंदेरी। मगर चंदेरी कई वर्षों से दारुल हरब हो रही थी, और राणा सांगा के बड़े आदमियों में से मेदनी राय वहां रहता था और मैंने संवत 1580 में 2 घड़ी में ही उसके अपने जोर में ले लिया था और हिन्दुओं का कत्ले आम करके मुसलमानों का घर बना लिया”
राणा सांगा के युद्ध के समय बाबर ने हिन्दुओं के सिर की मीनारें बनाई थीं। बाबरनामा में ही लिखा है –
“हिन्दू अपना काम बनाना मुश्किल देखकर भाग निकले, बहुत से मारे जाकर चीलों और कौव्वों का शिकार हुए, उनकी लाशों के टीले और सिरों के मीनार बनाए गए। बहुत से सरकशों की ज़िन्दगी खत्म हो गयी जो अपनी अपनी कौम से सरदार थे। ”
राणा सांगा के साथ युद्ध में हिन्दुओं का कत्लेआम करने के बाद बादशाह ने फतहनामे में खुद को गाजी लिखा है! (गाजी माने इस्लाम के लिए काफिरों का कत्ले आम करने वाला)
ऐसा नहीं था कि केवल हिन्दू मरे ही थे, हिन्दुओं की सेना ने मरते हुए बाबर की सेना के हजारों सैनिकों को मौत के घाट उतारा था
“फिर बादशाह ने उस पहाड़ के ऊपर जिसके नीचे वह लड़ाई हुई थी, हिन्दुओं के सिरों का वह मीनार उठवाया और उस जगह से चलकर 2 कूच में ब्याने पहुंचे। बयाना क्या अलर और मेवात तक हिन्दू और मुसलमान बहुत से रस्ते में मरे पड़े थे। ”
सिरों की मीनार बनाना केवल बाबर तक ही सीमित नहीं रहा था। बाबर का पोता अकबर, जो लेखकों का सबसे प्रिय है, उसने भी सिरों की मीनार बनाई थी। मीनार बनाने से पहले अकबर महान ने विक्रमादित्य हेमू का कत्ल कैसे किया था? पानीपत के द्वितीय युद्ध में जब अकबर ने हिन्दू राजा विक्रमादित्य हेमू की सेना को हराया तो 14 वर्ष के अकबर के सामने बैरम खान ने हेमू का कत्ल किया और उसका सिर काटकर अकबर को प्रस्तुत किया। यही बैरम खान, अब्दुल रहीम खानखाना के पिता थे, जो रहीम सेकुलर जमात के प्रिय बने हुए हैं।
पानीपत के द्वितीय युद्ध के बाद अकबर कहा जाता है कि अकबर महान ने भी हिन्दुओं के सिरों की मीनार बनाई थी।
संस्थागत हरम बनाने का श्रेय भी अकबर को ही है और अकबर की नजर एक बार जिस पर पड़ जाती थी, वह लड़की ज़िन्दगी भर के लिए अकबर के हरम की हो जाती थी। तभी कहा जाता था कि अकबर के हरम में डोली जाएगी, मगर आएगी नहीं!
अब आते हैं जहाँगीर पर! जहांगीर पर इसलिए क्योंकि फिल्मों में सलीम और अनारकली से जो रूमानियत की शुरुआत हुई, उसने भारतीय इतिहास में असली को नकली कर दिया और नकली को असली। आइये जानते हैं कि जहाँगीर, जिसे मुगले आजम में जन्माष्टमी मनाते हुए दिखाया जाता था वह असल में हिन्दुओं के बारे में क्या सोचता था। जो जहांगीर फिल्म में जन्माष्टमी मनाते हुए दिखाया गया, वह असल ज़िन्दगी में सलाम तक चंगेज़ ख़ान (Changez Khan / Genghis Khan) और तैमूर के नियमों से करता था। तुजुके जहाँगीर में वह लिखता है
“I had stationed my son Khurram to guard the palaces and treasuries when I set out in pursuit of Khusraw। After my mind was relieved on that score, it was ordered that Khurram should bring Her Majesty Maryamuzzamani and the harem to me। * When they reached the vicinity of Lahore, on Friday the twelfth of the month [August 7] I got in a boat and attained the happiness of paying homage and greeting my mother in the vicinity of a village named Dhar। After executing the rites of koriinush, prostration [sijda), and after observing the formalities the young owe their elders under the terms of the Genghis code and Timurid law, I performed my evening worship of the Omniscient King.”
अर्थात मैंने अपने पुत्र खुर्रम को महालों की देखभाल के लिए कहा और मैं खुसरो की तलाश में बाधा, और खुर्रम से कहा कि वह माननीय मरयम मुज्ज्मानी और हरम को मेरे पास लाएं। जब वह आईं तो मैंने अपनी माँ (सनद रहे कि पूरे इतिहास में जोधाबाई को ही सलीम की माँ दिखाया गया है जबकि ऐसा है नहीं) का स्वागत किया और उनको चंगेज़ खान के नियम और तैमूर के क़ानून के हिसाब से सलाम किया।
अर्थात वह नमस्ते भी नहीं करता था, कहने के लिए वह भारत की धरती पर पैदा हुआ था, मगर उसके क़ानून चंगेजी थे! इतना ही नहीं जहाँगीर से सिक्ख गुरु अर्जुन सिंह की स्वतंत्रता भी नहीं देखी गयी। वह कहता है
“There was a Hindu named Arjan in Gobindwal on the banks of the Beas River। Pretending to be a spiritual guide, he had won over as devotees many simple-minded Indians and even some ignorant, stupid Muslims by broadcasting his claims to be a saint. They called him a guru. When this was reported to me, I realized how perfectly false he was and ordered him brought to me. I awarded his houses and dwellings and those of his children to Murtaza Khan, and I ordered his possessions and goods confiscated and him executed.”
जहाँगीर से अर्जुन सिंह का गुरु होना सहन नहीं हुआ और उसने उनके बेटों को अपने मुसलमान सेवक को दे दिया और अर्जुन सिंह को मरवा दिया।
हिन्दुओं से नफरतों की कहानियां अनंत हैं, और ऐसा नहीं हैं कि मुग़ल बादशाहों की यह नफरत किसी से छिपी है या उन्होंने छिपाई है, उन्होंने अपनी हर क्रूरता को खुलकर लिखा है। बस उनकी इस नफरत को हमारे सेक्युलर इतिहासकारों ने और अब सेक्युलर पत्रकारों ने झूठ की चाशनी में लपेटकर देना शुरू किया है। अब उनका हर झूठ काटा जा रहा है। और काटा भी जाएगा!
Good job Sandeepji
Keep digging
आपकी इतनी मेहनत और परिश्रम से एकत्रित किए गए तथ्यों के लिए मैं प्रमाण नहीं मांगता। लेकिन हमारे पास यथा संभव प्रमाण होम चाहिए।
इतिहास के प्रमाण हमें आगे की दिशा व्यवस्थित करने में सहयोगी होंगे।