पुण्य प्रसून वाजपेयी एबीपी से जब से निकाले गये हैं, अपने अंदर मोदी-योगी विरोध और गुबार को निकाल रहे हैं। उन्हें एक और मोदी हेटर्स वामपंथी ‘द वायर’ के सिद्धार्थ वरदराजन का साथ मिल गया है! फिर तो उनके कुतर्कों की आंधी ही चल पड़ी है। पुण्य प्रसून ने दवायर में एक लेख लिखा- ‘अपराधीयुक्त लोकतंत्र में अपराधीमुक्त होने का एनकाउंटर।’ इस लेख में उन्होंने उप्र में पुलिस एनकाउंटर में मारे गये अपराधियों को लेकर सवाल उठाया है। मतलब, आज तक सोहराबुद्दीन व इशरत जहां एनकाउंटर पर मोदी-अमित शाह को घेरने वाला गैंग, अब यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को घेरने की तैयारी में है, क्योंकि उप्र में लोकसभा की 80 सीट है। और इस 80 सीट पर खाता खोले बिना पीडी पुण्य का मालिक राहुल गांधी प्रधानमंत्री बन नहीं सकता, सो पुण्य अपना पीडी धर्म निभाने के लिए उतर पड़ा है।
अब पुण्य प्रसून की की मानसिक दिवालियापन देखिए। द वायर पर एनकाउंटर में मारे गये अपराधियों की सूची कुछ इस तरह दी गई है-
नाम- गुरमीत, उम्र- 25 बरस, केस- 7, एनकाउंटर की तारीख- 31 मार्च 2017, एनकाउंटर की जगह- बलिया.
नाम- नौशाद उर्फ डैनी, उम्र 30 बरस, केस- 19, एनकाउंटर की तारीख- 29 जुलाई 2017, एनकाउंटर की जगह- शामली.
नाम- सरवर, उम्र- 28 बरस, केस- 8, एनकाउंटर की तारीख- 29 जुलाई 2017, एनकाउंटर की जगह- शामली.
नाम- इकरम उर्फ तोला, उम्र- 40 बरस, केस- 11, एनकाउंटर की तारीख- 10 अगस्त 2017, एनकाउंटर की जगह- शामली.
नाम- नदीम, उम्र- 33 बरस, केस- 12, एनकाउंटर की तारीख- 8 सितंबर 2017, एनकाउंटर की जगह-मुजफ्फरनगर.
नाम – शमशाद , उम्र-37 बरस, केस-36, एनकाउंटर की तारीख- 11 सितंबर 2017, एनकाउंटर की जगह-सहारनपुर.
नाम- जान मोहम्मद, उम्र -35 बरस, केस -10, एनकाउंटर की तारीख-17 सितबंर 2017, एनकाउंटर की जगह-खतौली.
नाम- फुरकान, उम्र- 36 बरस, केस- 38, एनकाउंटर की तारीख- 22 सितंबर 2017, एनकाउंटर की जगह- मुजफ्फरनगर.
नाम- मंसूर, उम्र- 35 बरस, केस-25, एनकाउंटर की तारीख- 27 सितंबर 2017, एनकाउंटर की जगह- मेरठ.
नाम- वसीम काला, उम्र- 20 बरस, केस-6, एनकाउंटर की तारीख- 28 सितंबर 2017, एनकाउंटर की जगह- मेरठ.
नाम- विकास उर्फ खुजली, उम्र-22 बरस, केस 11, एनकाउंटर की तारीख- 28 सितंबर 2017, एनकाउंटर की जगह- अलीगढ़.
नाम- सुमित गुर्जर, उम्र- 27 बरस, केस- 0, एनकाउंटर की तारीख- 3 अक्टूबर 2017, एनकाउंटर की जगह- ग्रेटर नोएडा.
नाम- रमजानी, उम्र- 18 बरस, केस- 18, एनकाउंटर की तारीख- 8 दिसंबर 2017, एनकाउंटर की जगह- अलीगढ़.
नाम- नीर मोहम्मद, उम्र- 28 बरस , केस- 18, एनकाउंटर की तारीख- 30 दिसंबर 2017, एनकाउंटर की जगह- मेरठ.
नाम- शमीम, उम्र- 27 बरस, केस- 27, एनकाउंटर की तारीख- 30 दिसंबर 2017, एनकाउंटर की जगह- मुजफ्फरनगर.
नाम- शब्बीर, उम्र- 32 बरस, केस- 20, एनकाउंटर की तारीख- 2 जनवरी 2018, एनकाउंटर की जगह-शामली.
नाम- बग्गा सिंह, उम्र- 40 बरस, केस- 17, एनकाउंटर की तारीख-17 जनवरी 2018, एनकाउंटर की जगह- लखीमपुर खीरी.
नाम- मुकेश राजभर, उम्र-32 बरस, केस- 8, एनकाउंटर की तारीख- 26 जनवरी 2018, एनकाउंटर की जगह-आजमगढ़.
नाम- अकबर, उम्र- 27 बरस, केस- 10, एनकाउंटर की तारीख- 3 फरवरी 2018, एनकाउंटर की जगह- शामली.
नाम- विकास, उम्र- 36 बरस, केस- 6, एनकाउंटर की तारीख- 6 फरवरी 2018, एनकाउंटर की जगह- मुजफ्फरनगर.
नाम- रेहान, उम्र- 18 बरस, केस- 13, एनकाउंटर की तारीख- 3 मई 2018, एनकाउंटर की जगह- मुजफ्फरनगर.
इसके बाद प्रसून लिखते हैं- “ये यूपी की योगी सरकार में पुलिस एनकाउंटर में मारे गए 21 अपराधियों का कच्चा चिट्ठा है. सीएम ने निर्देश दिया और पुलिस ने खोज-खोजकर उन अपराधियों को निशाने पर लिया, जिन्हें न लिया जाता तो शायद अपराध और बढ़ जाते. हर एनकाउंटर के बाद सीनियर पुलिस अधिकारियों ने पुलिसकर्मियों की पीठ थपथपायी और सीएम ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की.”
यहां से पुण्य प्रसून एक नया कुतर्क या कहिए बकैती शुरु करते हैं। वह लिखते हैं- “एनकाउंटर उन्हीं का हुआ जिन पर मुकदमे दर्ज हैं और पुलिस का तर्क भी यही रहा कि नामजद अपराधियों को वह पकड़ने गई तो उन्होंने भागने की कोशिश की. किसी ने फायरिंग भी कर दी तो एनकाउंटर हो गया, इसलिए योगी सरकार के मंत्रियों का हाल देखते हैं.”
केशव प्रसाद मौर्य- उपमुख्यमंत्री, कुल केस- 11, आईपीसी की गंभीर 15 धाराएं
नंद गोपाल गुप्ता नंदी- कैबिनेट मंत्री, कुल केस- 7, आईपीसी की 10 गंभीर धाराएं
सत्यपाल सिंह बघेल- कैबिनेट मंत्री, कुल केस- 7, आईपीसी की 10 गंभीर धाराएं
दारा सिंह चौहान- कैबिनेट मंत्री, कुल केस -2, आईपीसी की 7 गंभीर धाराएं
सूर्यप्रताप शाही- कैबिनेट मंत्री, कुल केस -3, आईपीसी की 5 गंभीर धाराएं
ओमप्रकाश राजभर- कैबिनेट मंत्री, कुल केस- 1, आईपीसी की गंभीर 2 धाराएं
स्वामी प्रसाद मौर्य- कैबिनेट मंत्री, कुल केस- 1, आईपीसी की गंभीर 2 धाराएं
रीता जोशी- कैबिनेट मंत्री, कुल केस- 2, आईपीसी की गंभीर एक धारा
आशुतोष टंडन- कैबिनेट मंत्री, कुल केस- 1, आईपीसी की एक गंभीर घारा
ब्रजेश पाठक- कैबिनेट मंत्री, कुल केस- 1, आईपीसी की 3 गंभीर धाराएं
उपेंद्र तिवारी- राज्य मंत्री, कुल केस- 6, आईपीसी की गंभीर 6 धाराएं
सुरेश कुमार राणा- राज्य मंत्री, कुल केस- 4, आईपीसी की गंभीर 6 धाराएं
भूपेंद्र चौधरी- राज्य मंत्री, कुल केस- 2,आईपीसी की गंभीर 2 धाराएं
गिरीश चंद्र यादव- राज्यमंत्री, कुल केस- 1, आईपीसी की 4 गंभीर धाराएं
मनोहर लाल- राज्यमंत्री, कुल केस-1, आईपीसी की 3 गंभीर धाराएं
अनिल राजभर- राज्यमंत्री, कुल केस – 2, आईपीसी की एक गंभीर धारा.
पुण्य के अनुसार, “वैसे, सीएम बनने से पहले तक सांसद योगी आदित्यनाथ पर भी तीन मुकदमे थे. उन पर भी आईपीसी की 7 धाराएं लगी थीं लेकिन सीएम बनने के बाद कैबिनेट निर्णय से सारे मामले खत्म हो गए. यानी इलेक्शन वॉच की रिपोर्ट के मुताबिक योगी के मंत्रिमंडल में 45 फीसदी मंत्री दागदार हैं, जिन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. यानी जिस वक्त राज्य के अपराधियों पर नकेल कसने की बैठक हुई होगी तो कैबिनेट ने ही इसे पास किया और उसमें भी कई चुने हुए नुमाइंदे खुद कई आपराधिक मामलों में फंसे हुए हैं.”
अब यह कुतर्क देखिए कि पुण्य प्रसून चाहते हैं कि दागी मंत्रियों और सांसदों का भी एनकाउंटर कर दिया जाए! यानी एनकाउंटर में मारे गये अपराधियों के प्रति सहानूभूति रखते हुए यह बकैत मानसिक दिवालिएपन के इस कगार पर पहुंच गया कि उसे भागे या पुलिस पर फायरिंग करते अपराधी और जनता द्वारा चुने गये जनप्रतिनिधि में कोई अंतर ही नजर नहीं आ रहा है! उसे न अदालत पर भरोसा है, न न्याय व्यवस्था पर! यदि न्याय व्यवस्था पर भरोसा रहता तो वह दागी जनप्रतिनिधियों की तुलना पुलिस मुठभेड़ में मारे गये अपराधियों से नहीं करता!
वैसे उप्र में मुठभेड़ तो 1400 के करीब हुई है, लेकिन पुलिस ने इसमें सबको नहीं मारा है। मारा वही गया है जो भाग रहा था या फिर जिसने पुलिस पर फायरिंग की थी। पुलिस की मंशा यदि खराब ही होती तो 1400 मुठभेड़ में मरने वाले अपराधियों का आंकड़ा और बड़ा होता! लेकिन जिसने सरेंडर किया उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया। जिस तरह जनप्रतिनिधियों पर अदालत में कार्रवाई चल रही है, वैसे ही सरेंडर करने वाले या पकड़े गये अपराधियों पर भी कार्रवाई चल रही है। लेकिन मोदी-योगी नफरत में पूरी तरह से कुंठित पुण्य प्रसून को इसकी तुलना नहीं करनी है। क्योंकि इसकी तुलना करते ही उसके लेख का लब्बो-लुआब भड़भड़ा कर गिर जाएगा!
वह लिखते हैं, “अपराधियों की जगह लोकतंत्र का ही एनकाउंटर आपराधिक तंत्र कर रहा है जो खुद को जनता का प्रतिनिधि बताता है. लोकतंत्र के मंदिर यानी संसद या विधानसभा में बैठकर कानून बनाता है.” यहां इस लाइन में पुण्य की दोयम दर्जे की पत्रकारिता देखिए कि उसने खुद को अदालत साबित करते हुए सभी आरोपी जनप्रतिनिधियों को अपराधी घोषित कर दिया है। यानी न अदालत सही, न न्याय व्यवस्था, केवल बकैतों का गिरोह जो कहे, वही सही। वह तो तुला हुआ है कि जिस तरह यूपी पुलिस ने अपराधियों का एनकाउंटर कर दिया, वैसे ही दागी मंत्रियों और सांसद का भी करे! उसके पूरे लेख का लब्बो-लुआब यही है।
अब ऐसा मानसिक विक्षिप्त पत्रकार कहलाए तो यह पूरी पत्रकारिता बिरादरी का अपमान है। पत्रकारिता का यह ‘अपमान’ आंकड़े गढ़ कर कुछ भी बकैती करने के लिए स्वतंत्र है, उसे यह समझ आ जाना चाहिए कि ऐसी बकैती भी यदि वह कर रहा है तो इसलिए कि इस देश में अभिव्यक्ति की आजादी अक्षुण्ण है। यही अभिव्यक्ति की आजादी है, जिसके इस देश में न होने के नाम पर यह और इसका बकैत गिरोह प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी को हिटलर साबित करने के लिए रात-दिन स्यापा करता रहता है!
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