कमलेश कमल. औरत में ख़ून की कमी हो सकती है
हौसले की नहीं
घर या बाहर
रसोई या बिस्तर
कहीं वह होती नहीं कमतर
छूटे अपनों
और टूटे सपनों से भी
नहीं टूटती औरत
सब कुछ झोंक
घर बसाती-सजाती है
और तो और
घिसती नहीं वह
दुःख, ताने या भद्दी गालियों से
अभाव या रोग से
कहाँ टूटती है औरत
हड्डियों के ढाँचे
या बेढब होती देह से भी
वह जानती है
घर चलाने का हुनर
हाँ, जब पाती नहीं
थोड़ी भी झलक
प्रेम के प्रतिदान का
तब भहराकर गिरता है
औरत का हौसला
और वह बिखर जाती है
हाँ, ऐसे ही क्षण में
टूट जाती है औरत
हिल जाती है केंद्र से
और भूल जाती है
सारे तर्क और विचार
बस, इस हाल में
कुछ भी कर सकती है औरत
बेशक टूटे दिल से ही
कुछ भी कर जाती है औरत।