चरित्रहीन सब मुझको भजते , मैं अब्बासी – हिंदू हूँ ;
चरित्रवान हिंदू से डरता , मैं अब्बासी – हिंदू हूँ ।
मीठी – मीठी बातें करता , संघर्षों से दूर रहूँ ;
साजिश करने में हूँ माहिर , सच्चाई से दूर रहूँ ।
मुझे कबूतर अच्छा लगता , कठिनाई में आंखें मूंदे ;
मैं गांधी का पक्का चेला , दोनों आंख, कान, मुँह मूंदे ।
गुंडागर्दी कभी न देखूँ , उसके खिलाफ कभी न बोलूं ;
केवल हिंदू को शिक्षा देता , उसके बंधे- हाथ न खोलूं ।
वर्ल्ड का लीडर बनके रहूँगा , हिंदू चाहे जितने मर जायें ;
मजहब वाला अगर मर गया , तब तो आंसू रुक न पायें ।
हिंदू को मानव न समझूँ , वे तो केवल वोटर हैं ;
झक मारकर मुझे ही देंगे , महामूर्ख ये वोटर हैं ।
उनको मूर्ख बनाकर रखना , झूठा – इतिहास पढ़ाना है ;
सोशल मीडिया बड़ा है खतरा , सच्चा इतिहास बताना है ।
ये खतरा तो बढ़ता जाता , हिंदू सोते से जगता जाता ;
पर वामी,जेहादी,जिम्मी,सेक्युलर, ये तो सब हैं मेरे भ्राता ।
इसीलिये मंदिर के धन को , जजिया में खूब लुटाता हूँ ;
जजिया देखकर वोट खरीदूँ , हिंदू को मूर्ख बनाता हूँ ।
इसी तरह से दाल गल रही , खिचड़ी भी बन जायेगी ;
जब तक हिंदू मूर्ख रहेगा , तब तक मेरी बन आयेगी ।
सोशल – मीडिया से ही खतरा , ये हिंदू को जगा रहा है ;
मेरी ढंकी – छुपी बातों को , सब हिंदू को बता रहा है ।
पर जब तक बदनसीब है भारत , मेरे जैसे आबाद रहेंगे ;
भले – लोग ठोकर खायेंगे , सुअर पंजीरी खायेंगे ।
यदि सौभाग्य जगा भारत का , मेरे जैसे चले जायेंगे ;
यूपी या आसाम के जैसे , नेता ही आ पायेंगे ।
मैं अब्बासी – हिंदू हूँ , अब्बास के पास चला जाऊँगा ;
मेरा क्या है ? निपट अकेला, पर तुम्हें रुला कर जाऊँगा ।
रोल – मॉडल है मेरा गांधी , उसका पूरा काम करूँगा ;
दोनों गालों पर थप्पड़ खाके, धर्म का काम तमाम करूँगा ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”