लौह- पुरुष के तुम चेले हो , उस जैसा बन जाओ ;
तुम तो मोम- पुरुष बन बैठे ,लौह- पुरुष बन जाओ ।
विफल हो गई डेमोक्रेसी , अराजकता बढ़ती जाती ;
भीड़ सड़क को घेर के बैठी , कभी वो आग लगाती ।
अब भी जो खामोश रहा , तो कीर्ति नष्ट हो तेरी ;
किया धरा जो अब तक तेरा , मिट्टी पलीद हो तेरी ।
लोकतंत्र अवरोध बना हो , इसको तुरत हटाओ ;
जान-माल की रक्षा पूरी , आपत् -धर्म निभाओ ।
भीड़तंत्र को रोकना होगा , अनुशासन ले आओ ;
हर स्कूल में फौजी शिक्षा , एन.सी.सी ले लाओ ।
अनुशासन ही एक रास्ता , लोकतंत्र बच सकता ;
वरना चाहे कुछ भी कर लो , तंत्र नहीं चल सकता ।
सबका साथ कभी मत चाहो , गुंडे तेरे साथ नहीं ;
डीएनए की बात भुलाओ , इसका पुरसाहाल नहीं ।
मन की बातें कहना छोड़ो , ठोस धरातल पर आओ ;
अब रोने का काम नहीं है , फौजी शासन लाओ ।
भ्रष्टाचार मुक्त भारत हो , कानून का शासन लाओ ;
लोकतंत्र का ये ही मजहब , कट्टरवाद मिटाओ ।
जितने भी अवैध ढांचे हैं , सबको तोड़ गिराओ ;
कोई मजहब आड़े आये , इसमें मत घबराओ ।
राष्ट्र-विरोधी जितनी ताकत , वोट की ताकत छीनो ;
लहूलुहान है राष्ट्र हमारा , राह के कांटे बीनो ।
राष्ट्र के कारण हम जिंदा हैं ,इसको मत झुटलाओ ;
विश्व – शांति का यही है रक्षक , हिंदू – राष्ट्र बनाओ ।
कितना भी ये कूकर भूंके , तुम चिंता मत करना ;
कुत्ते तो भूंका करते हैं , हाथी कभी न रुकना ।
हस्ती चढिये ज्ञान का , सहज बिछौना डार ;
संसारी तो श्वान हैं , भूकेंगे झक मार ।
कबीरा – बानी कह गया , समझें ज्ञानी – लोग ;
ज्यादातर तो मूर्ख हैं , इसी से रोते लोग ।
तू तो ज्ञानी सिद्ध है , क्यों लालच का गिद्ध ?
सारे एक समान हैं , ये हक है जन्म – सिद्ध ।
भटक गया तू आते-आते , जबकि मंजिल पास ;
ज्ञान – चक्षु को खोलके , अब चल मंजिल पास ।
“वंदेमातरम- जयहिंद”
रचयिता: ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”