सारी दुनिया धर्म की दुश्मन , सारे मजहब वाले हैं ;
दो – चार देश ही मित्र हमारे , बाकी के दिल काले हैं ।
ये भारत की बर्बादी चाहें , हिंदू- धर्म से इनको नफरत ;
ऊपर से तुझको पुचकारें , पूंछ हिलाना तेरी फितरत ।
तुझे नहीं है राष्ट्र की चिंता , अपनी छवि की चिंता है ;
भारत चाहे भाड़ में जाये , नोबेल प्राइज की चिंता है ।
राष्ट्रद्रोह ये नहीं तो क्या है ? तुष्टीकरण बढ़ाता है ;
अपने धर्म को लांछित करता, अल्पसंख्यकवाद बढ़ाता है ।
शाहीन – बाग को हलुवा – पूड़ी , हिंदू जेल में जाता है ;
गुंडो का विश्वास जीतता , डीएनए भी मिलवाता है ।
चरित्रहीन रोल – मॉडल तेरे , गांधी – नेहरू छक्के थे ;
दोनों पूरे जेहादी थे , राष्ट्र के दुश्मन पक्के थे ।
जो भी इनको पूज रहा है , वो भी वैसा बन जायेगा ;
अभी वक्त है राह पर आओ , नाली में बह जायेगा ।
राष्ट्र ने तुझ पर किया भरोसा , उसकी कुछ तो लाज रखो ;
तुझको भेजा जिस काम को करने,अब उसका आधार रखो
धर्म – सनातन हमें बचाता , पर तू मजहब के चक्कर में ;
धर्म नष्ट इस तरह करेगा , डूब जायेगा बीच भंवर में ।
कहीं नहीं अब मंदिर तोड़ो , तीर्थ को तीर्थ बना रहने दो ;
तीर्थ नहीं है पर्यटक स्थल , उसे पवित्र बना रहने दो ।
धर्म से जो खिलवाड़ करेगा , अपना सब कुछ हारेगा ;
दोनों लोक चले जायेंगे , हाथ नहीं कुछ आयेगा ।
मजहब वाले देश हैं जितने , धर्म – सनातन के दुश्मन हैं ;
उनकी चिंता कभी न करना , मानवता के दुश्मन हैं ।
कुछ तो अपनी बुद्धि लगाओ,राष्ट्र का हित सर्वोच्च बनाओ;
सभी देश अपना हित देखें , तुम भी अपना राष्ट्र बनाओ ।
सबसे पहले राष्ट्र हमारा , इसके बाद ही देश पराया ;
केवल यही सूत्र तुम पकड़ो , देखो कैसे राष्ट्र बनाया ।
दुनिया भर की चिंता छोड़ो , पहले अपना घर ठीक करो ;
कश्मीर,बंगाल,केरल,पूर्वोत्तर , इन सब को अब ठीक करो।
सारा डर ,कायरता छोड़ो , शौर्य – साहस से नाता जोड़ो ;
धर्म -सनातन ठीक से पकड़ो, लफ्फाजी,पाखंड को छोड़ो ।
वामी ,कामी , जिम्मी , जेहादी , सारे राष्ट्र के दुश्मन हैं ;
इन सबको औकात बताओ , राष्ट्र की जनता का मन है।
“वंदेमातरम-जयहिंद”
रचयिता: ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”