संदीप देव । सत्य, सत्य ही होता है। मैंने राम जन्मभूमि पर जो भी लिखा या बोला है वह हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय पढ़कर। आज किशोर कुणाल का साक्षात्कार छपा है, उसे भी पढ़िए और अयोध्या पर मैंने जो लिखा और बोला है, उससे मिलान करके देख लीजिए।
मेरे द्वारा प्रस्तुत तथ्य, जो कि अदालत के निर्णय से लिए गये हैं, झूठ की चली आ रही परिपाटी से मेल नहीं खाते। अतः कुछ लोग आश्चर्यचकित होकर धन्यवाद देते हैं कि आपके कारण बिल्कुल नयी बात पता चली, तो कुछ लोग जिनका मानसिक खतना हो चुका है, गाली भी देते हैं, क्योंकि मेरे प्रस्तुत तथ्य से उनके बने-बनाए झूठ का भवन ध्वस्त हो जाता है, जिससे वह विचलित हो कर अभद्रता पर उतर आते हैं। अरे एक ही मानव जन्म मिला है। यह स्वयं की यात्रा, सत्य की यात्रा के लिए है, न कि भेड़ बनने के लिए!
पूर्व IPS और पटना हनुमान मंदिर के संचालक किशोर कुणाल ने कैसे रामजन्मभूमि पर शोधकार्य कर एक बड़ी थिसिस लिखी और फिर राम जन्मभूमि को बचाने में अपना योगदान दिया, जब मैंने यह लिखा तो बहुतों को विश्वास नहीं हुआ। आज उनका ही साक्षात्कार अखबार में छपा है, पढ़ लीजिए।
किशोर कुणाल उस समय तीन-तीन प्रधानमंत्री (वीपी सिंह, चंद्रशेखर और नरसिम्हाराव) के OSD(Ayodhya) थे। उनके पास हिंदू और मुस्लिम पक्षों ने अपना अपना साक्ष्य जमा कराया था। विश्व हिंदू परिषद की ओर से रामजन्म भूमि के प्रमाण स्वरूप केवल एक पुस्तक ‘सहीफा-ए-चहल नसैह बहादुरशाही’ जमा कराई गई थी, जिसके लेखक के बारे में कहा गया था कि इसे औरंगजेब की पोती ने लिखा है, परंतु यह संदिग्ध था। उसमें लिखी बात इतनी कमजोर थी कि वह कभी भी ध्वस्त हो सकते थे। किशोर कुणाल ने बकायदा अपनी थिसिस में उसे सप्रमाण ध्वस्त भी किया है, फिर वह कोर्ट में बाबरी के पैरोकार इस्लामी-वामी इतिहासकारों के समक्ष कहां से ठहरते?
किशोर कुणाल के गुरु थे द्वारका और ज्योतिष पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी। वह उनके पास गये कि यदि हिंदू प्रमाण ही नहीं देगा तो हम केस हार जाएंगे? शंकराचार्य जी ने उनके साथ अपने वकील P.N. मिश्रा को लगाया। किशोर कुणाल की थिसिस को मिश्रा जी ने कोर्ट में रखा। यह किशोर कुणाल ने अपनी थिसिस की भूमिका में कृतज्ञता के साथ लिखा है।
यही कारण है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम ने सबसे अधिक समय बहस के लिए शंकराचार्य जी के वकील को ही दिया, क्योंकि वह हिंदुओं के पक्ष में जो प्रमाण प्रस्तुत कर रहे थे, वह अकाट्य थे और अदालत भी उससे आश्चर्यचकित थी। जस्टिस चंद्रचूड़ ने तो बकायदा पी.एन.मिश्रा का नाम लेकर भरी अदालत में कहा कि आपके कारण हमें नयी-नयी जानकारियां प्राप्त हो रही हैं।
किशोर कुणाल की उस थिसिस की महत्ता देखिए कि उसकी भूमिका स्वयं एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने लिखी है। उनकी दोनों पुस्तक को अदालत ने संज्ञान में लिया, जिससे उन सब प्रश्नों का उत्तर मिल गया, जिसे लेकर मुस्लिम पक्ष कोर्ट के अंदर लगातार सवाल उठाते थे, और हिंदू पक्ष जवाब नहीं दे पाते थे।
उदाहरण के लिए कम्युनिस्ट इतिहासकारों के बल पर मुस्लिम पक्ष यह सवाल उठाता था कि तुलसीदास जी तो अकबर के समकालीन थे, फिर उन्होंने रामजन्म भूमि ध्वंस के बारे में कुछ क्यों नहीं लिखा? इस पर रामभद्राचार्य ‘तुलसी दोहा शतक’ ले आए। कोर्ट ने इसकी पांडुलिपि आदि के बारे में पूछा कि पहली बार यह कब छपी थी? तो रामभद्राचार्य जवाब नहीं दे सके। उन्होंने कहा, मैंनै ही इसे छपवाया है। अतः अदालत ने ‘दोहा शतक’ को ही निरस्त कर दिया। यह निरस्त नहीं होता तो हिंदू पक्ष मुश्किल में फंस जाता, क्योंकि शंकराचार्य की ओर से सारा जोर इस पर था कि रामजन्मभूमि पर सदा से मंदिर ही था, जिसमें हिंदू पूजा पाठ करते थे। और जहां पूजा पाठ होता हो वह मस्जिद हो नहीं सकती। हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने मुस्लिम पक्ष के वकील जिलानी से जब इस पर पूछा तो उसने भी माना कि मस्जिद में पूजा पाठ नहीं हो सकती। अदालत ने कहा, यह कैसे हो सकता है कि बाबर ने उसे आधा-अधूरा तोड़ा, जिस कारण वहां पूजा भी होती रही? रामभद्राचार्य की ‘दोहा शतक’ के झूठ के कारण हिंदू पक्ष मुश्किल में फंस गया था, परंतु जब रामभद्राचार्य इसका प्रमाण ही नहीं दे पाए तो अदालत ने उनकी दोहा शतक वाली गवाही को ही रद्द कर दिया।
कोर्ट में मुस्लिम न्यायाधीश ने अपने आर्डर में स्पष्ट लिखा है कि मुस्लिम और हिंदू, दोनों पक्ष इसे बाबरी मस्जिद साबित नहीं कर पाए। दोनों पक्ष बाद में इस पर सहमत दिखे कि वह मंदिर ही था, जिसे तोड़ा गया। और ऐसा सिर्फ किशोर कुणाल और शंकराचार्य जी के वकील पी.एन.मिश्रा जी के कारण हो सका।
आगे बढ़ते हैं। रामभद्राचार्य जी की इस गवाही के निरस्त होने का प्रमाण अदालत के निर्णय में तो है ही, हाईकोर्ट के जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने सार्वजनिक मंच से कहा कि चूंकि रामभद्राचार्य अपने साक्ष्य को प्रमाणित नहीं कर पाए थे, इसलिए उसे निरस्त करना पड़ा। यह वीडियो तक साक्ष्य के रूप में उपस्थित है, लेकिन अंध समर्थक मानने को तैयार नहीं हैं। वह मीडिया का लिंक यहां-वहां पेस्ट करते रहते हैं, जबकि मीडिया में वही है जिसका रामभद्राचार्य जी ने स्वयं ही दावा किया है, जो कि अदालत के निर्णय के अनुसार झूठा दावा है।
रामभद्राचार्य जी ने रामचरित मानस का भी उदाहरण दिया, लेकिन अदालत ने पूछा कि इसमें उसी जगह रामजी के जन्म होने की बात कहां लिखी है, तो वह जवाब नहीं दे पाए। हां रामभद्राचार्य जी ने स्कंद पुराण का उदाहरण अवश्य दिया, जो अन्य सभी धर्माचार्यों ने भी दिया था और वह स्वीकार हुआ। रामभद्राचार्य जी की भूमिका स्कंद पुराण की गवाही के रूप में अदालत में दर्ज है। इससे कोई भी इनकार नहीं कर रहा है।
कोर्ट के निर्णय के अनुसार रामभद्राचार्य जी का योगदान बस इतना ही है। लेकिन जब मुस्लिम पक्ष ने वामपंथी इतिहासकारों के बल पर स्कंद पुराण को ही बाद की रचना घोषित कर फर्जी साबित करने का प्रयास किया (पुराणों को फ़र्जी साबित करने का प्रयास इस्लामिस्टों की तरह कुछ हिंदू व हिंदू संस्थाएं भी करती रहती हैं। आज देख लो उस पुराण के बल पर ही हमें राम जन्मभूमि मिली।) तो ज्योतिष पीठ के वर्तमान शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी (जो उस समय ब्रह्मलीन शंकराचार्य के प्रतिनिधि के रूप में अदालत में गवाही देते थे। अदालत में डिफेंस विटनस नं-2 के रूप में उनका नाम दर्ज है) ने अंग्रेज कलेक्टर एडबर्ड के स्तंभों के जरिए स्कंद पुराण को प्रमाणित कर दिया।
दरअसल एडबर्ड ने स्कंद पुराण में वर्णित अयोध्या के सभी तीर्थ क्षेत्रों पर पत्थर का स्तंभ लगवाया था, जिसे अदालत में गवाह के रूप में उपस्थित एक मात्र अविमुक्तेश्वरानंद जी ने देखा था। उन्होंने यह प्रमाण दिया। बाद में अदालत ने जांच कराई तो वह स्तंभ वहां मिला। बकायदा अदालत के निर्णय में यह दर्ज है और मैं अपने पिछले पोस्ट में उसे लोगों के लिए संलग्न भी कर चुका हूं।
रामजन्म भूमि को बाबर ने नहीं तोड़ा, इसे तथ्यों के आलोक में प्रमाणित किया किशोर कुणाल ने और कोर्ट में पेश किया वकील पी.एन.मिश्रा ने कि रामजन्मभूमि मंदिर बाबर ने नहीं औरंगजेब ने तोड़ा था। चूंकि वह तुलसीदास जी के निधन के बाद तोड़ा गया था तो फिर तुलसी इस पर कैसे लिखते? किशोर ने तो सप्रमाण यह तक साबित किया कि तुलसीदास जी ने रामनवमी के दिन अयोध्या के रामजन्मभूमि मंदिर में बैठकर ही रामचरितमानस लिखना आरंभ किया था। तुलसीदास जी पर भी इस बात को लेकर कुछ हिंदू हमलावर रहते थे। बाबा तुलसीदास जी का सम्मान रखा किशोर कुणाल और शंकराचार्य जी की पीठ ने।
किशोर कुणाल के तथ्यों से मुस्लिम पक्ष के वकील इतने चिढ़ गये थे कि सुप्रीम कोर्ट के अंदर जब हिंदू महासभा के वकील विकास सिंह ने उस पुस्तक में वर्णित नक्शे को प्रस्तुत किया तो मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने वह नक्शा उनके हाथ से छीनकर कोर्ट में फाड़ डाला था। जहां तक मुझे याद है 16 अक्टूबर 2019 की वह तिथि थी। आप सब उस दिन की मीडिया रिपोर्ट में इसे देख सकते हैं। वह नक्शा भी मेरे पास है और वो दोनों पुस्तकें भी, लेकिन आज वे पुस्तकें नहीं छपती हैं।
मैंने प्रकाशक प्रभात प्रकाशन से विनती की है कि किशोर कुणाल की दोनों पुस्तकें पुनः प्रकाशित करें और हो सके तो हिंदी में इसका अनुवाद भी कराए। मैं हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को भी हिंदी में अनुवाद कर पब्लिश कराने का प्रयास करूंगा ताकि सच हिंदुओं के घर-घर पहुंचे और जिन्होंने कोर्ट के अंदर लड़ाई लड़ कर हमें रामजन्मभूमि दिलवाया है, उन सभी के प्रति हम कृतज्ञता से भरे रहें!
ऐसे बहुत सारे तथ्य हैं जो रामजन्म भूमि दिलाने में सहायक साबित हुए हैं। यह सारे तथ्य 2010 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णायक निर्णय में ही आ गये थे, जिसे 2019 में यथावत सुप्रीम कोर्ट ने माना है। परंतु मीडिया की सतही रिपोर्टिंग के कारण ये तथ्य आमजन का पहुंच ही नहीं सके। जनता इतना भारी भरकम निर्णय पढ़ नहीं सकती, इसीलिए अनेक झूठ आज सच बनाकर मीडिया ने पेश कर दिए हैं और लोग वही मानने को विवश हैं!
मेरी रिपोर्टिंग तथ्य और सत्य आधारित होती है, अतः जो लोग बने-बनाए मानक लेकर मुझसे जुड़े हैं, उनका आहत होना स्वाभाविक है। मुझसे लेफ्ट-राईट, दोनों पक्ष आहत रहता है और दोनों ही मुझ पर हमला करते हैं।
राईट सोशल मीडिया पर गाली-गलौच करता है तो लेफ्ट मुझे समाप्त करने के लिए ‘हिंदू उग्रवादी’ कह कर मेरी पूरी जीवनी ही ‘हिंदू पॉप स्टार’ पुस्तक के रूप में छाप चुका है। इसे प्रकाशित भी विदेशी पब्लिशर ने और इंडोर्स वामपंथी इतिहासकार रामचंद्र गुहा और कांग्रेसी पत्रकार राजदीप सरदेसाई जैसों ने किया है!
लेकिन मैं न डरने वाला हूं, न टूटने वाला। भगवान श्रीविष्णु की कृपा से मैं सत्य के लिए लड़ता रहूंगा, तब तक जब तक शरीर में प्राण है। “तथ्य किसी के नहीं होते, वह क्रूर होते हैं और मैं उसी क्रूरता का वाहक हूं।” यह मेरे फेसबुक प्रोफाइल में आरंभ से ही लिखा हुआ है।
अतः केवल ऐसे लोग मेरी मित्रता सूची में रहें जिनको किसी विषय पर पूर्वग्रह से मुक्त सत्य जानना है। यदि आप सत्य नहीं जानते तो एक जिज्ञासु की भांति पूछ सकते हैं और मैं ऐसी टिप्पणियों का जवाब भी देता हू़ं, भले वह मेरा आलोचक हो। नहीं जनता तो बता देता हूं कि मुझे इस बारे में पता नहीं है। परंतु जिन्हें सत्य जानना ही नहीं, केवल गाली गलौज करनी है तो उनसे आग्रह है कि वह अपने पारिवारिक और पार्टीगत संस्कार आपके घर और अपने लोगों तक सीमित रखें!
मैं ऐसे लोगों को लगातार बाहर निकलता रहता हूं, जो संवाद में विश्वास ही नहीं रखते, बस अपने व्यक्तित्व में गुंथे अपशब्द को प्रकट करते रहते हैं! ऐसे अधिकांश लोगों का डीपी भी नकली होता है और प्रोफाइल भी ब्लाक होता है। ऐसे ‘चोर व्यवहार’ वाले लोगों पर खर्च करने के लिए मेरे पास समय नहीं है।
लोगों के बने-बनाए मानक को बचाए रखने की जिम्मेदारी किसी खोजी पत्रकार की नहीं है। मैं सिर्फ अपको सत्य बताऊंगा, चाहिए तो मेरे साथ बने रहिए, नहीं चाहिए तो विदा हो जाइए। अपना और मेरा, दोनों का समय नष्ट मत कीजिए।धन्यवाद।