एक ही गांधी काफी था , भारतवर्ष कटाने को ;
तू क्यों गांधी बन बैठा ? क्या हिंदू-धर्म मिटाने को ?
पता नहीं क्या तेरे मन में ? तुष्टीकरण बढ़ाता जाता ;
शाहीन बाग से कितना डरता ? रोड -जाम करवाता जाता ।
गुंडे घेरे बीच सड़क में , फिर भी तू कुछ न करता ;
बंगाल में कितने हिंदू मर गये ? तू मुख से कुछ न कहता ।
जम्मू को बर्बाद कर रहा , क्यों कश्मीर बनाता है ?
कश्मीर में क्या कुछ कसर रह गई ? जम्मू में करवाता है ।
आखिर क्या एजेंडा तेरा ? गजवायेहिंद करवायेगा ?
अंतिम कार्यकाल है तेरा , क्यों कालिख पुतवायेगा ?
कितना पाप धरेगा सर पर ? कितना बोझ उठायेगा ?
कितने हिंदू मरवायेगा तू ? कितने मंदिर तुड़वायेगा ?
गौरी – गजनी का काम अधूरा , तू पूरा करवायेगा ;
क्यों धर्म का दुश्मन बन बैठा है ? क्या कोई ये बतलायेगा ?
क्यों मजहब वालों से डरता ? इसकी वजह बताना होगा ;
यदि कोई बहुत बड़ा कारण है , तो सत्ता से जाना होगा ।
तेरे कारण राष्ट्र मिट रहा , ये हमको मंजूर नहीं ;
अब तो योगी – हेमंता से , कुछ भी कम मंजूर नहीं ।
बची खुची जो तेरी इज्जत , उसको ढंका – छुपा रहने दो ;
स्वेच्छा से पद त्याग करो , कुछ तो सम्मान बना रहने दो ।
सम्मान सहित हो तेरी विदाई , परम- साहसी आने दो ;
हजार बरस से युद्ध चल रहा , उसमें विजयी होने दो ।
योगी लाओ – देश बचाओ , दुश्मन का सत्यानाश करो ;
इसमें रोड़ा मत अटकाओ , अब तो धर्म का काम करो ।
परम – साहसी , शूरवीर , योगी ही धर्म बचायेंगे ;
सारा अत्याचार मिटाकर , हिंदू – राष्ट्र बनायेंगे ।
शांतिपूर्वक ये परिवर्तन , पार्टी-स्तर से हो जायेगा ;
या काली का तांडव होगा , रक्त से खप्पर भर जायेगा ।
समय हाथ से निकल न जाये , इसमें तुम मत .देर करो ;
स्वेच्छा से सिंहासन छोड़ो , आदित्यनाथ का तिलक करो ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”