विपुल रेगे। निर्देशक नितेश तिवारी की ‘बवाल’ दरअसल एक कमाल फिल्म है। वीएफएक्स और कम्प्यूटर ग्राफिक्स वाली फिल्मों के ज़माने में एक मार्मिक फिल्म लेकर दर्शक तक पहुंचना मुश्किल होता है। हालाँकि प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई इस फिल्म तक दर्शक खुद पहुँच रहा है। नितेश तिवारी के सिनेमा में वह गहराई होती है, जिसमे दर्शक स्वयं को भूलकर डूब जाता है। एक अच्छे विषय पर बनी इस फिल्म को चहुंओर से सराहना मिल रही है।
ओटीटी मंच : Prime video
‘बवाल’ एक ऐसे शिक्षक अजय दीक्षित की कहानी है, जो अपनी असफलताओं को ‘इमेज ब्रांडिंग’ के सहारे छुपाता आ रहा है। वह शिक्षक के पेशे के लिए अयोग्य है, लेकिन बाज़ीगरी से इस बात को छुपा लेता है। अजय और उसकी पत्नी के बीच अच्छे संबंध नहीं है। एक दिन अजय क्लास में एक बच्चे को तमाचा मार देता है। बच्चे का पिता विधायक है। बात बढ़ती है और अजय को सस्पेंड कर दिया जाता है। इससे पहले की अजय की जाँच हो, वह एक और इमेज ब्रांडिंग के लिए पत्नी को लेकर वर्ल्ड टूर पर निकल जाता है। अजय जर्मनी जाता है और वहां से द्वितीय विश्व युद्ध का इतिहास वीडियो के ज़रिये बच्चों को पढ़ाता है। ये सब अजय अपनी नौकरी बचाने के लिए कर रहा है।
अच्छी कहानी और नितेश तिवारी के ट्रीटमेंट से ये फिल्म देखने योग्य हो जाती है। इस यात्रा में क्या क्या घटित होता है और कैसे अजय का जीवन नया मोड़ लेता है, ये जानने के लिए आपको ये फिल्म देखनी होगी। वरुण धवन और जाह्नवी कपूर अब मैच्योर हो चले हैं। विशेष रुप से वरुण के अभिनय में निखार आ गया है, वे परिपक्व हो गए हैं। जाह्नवी कपूर का ‘कच्चापन’ कम हो रहा है। इस फिल्म में उन्होंने तुलनात्मक रुप से बेहतर अभिनय दिखाया है। परदे पर वरुण और जाह्नवी की केमेस्ट्री झलकती है। इन दोनों के किरदार बड़े ही जटिल थे लेकिन वे स्वाभाविकता से इन्हे निभा ले गए हैं।
फिल्म के क्लाइमैक्स पर निर्देशक ने अच्छा काम किया है, इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। मिथुन और तनिष्क बागची ने सुंदर गीत बनाए हैं। इन गीतों को बेहतरीन सिचुएशन के साथ परदे पर दिखाया गया है। इस गंभीर कथानक में निर्देशक ने हास्य की भरपूर संभावनाएं खोज निकाली है। कहानी में एक गुजराती परिवार दिखाया गया है। इस परिवार के साथ वरुण धवन के दृश्य हंसाते हैं। अश्विनी अय्यर तिवारी की इस मार्मिक कहानी को नितेश तिवारी ने संतुलन के साथ प्रस्तुत किया है।
ये एक ऐसे शिक्षक की कहानी है, जो एक नारी के आत्मीय स्पर्श से परिवर्तित होकर नया इंसान बन जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध के प्रसंगों को शिक्षक के जीवन के साथ जोड़कर रचनात्मक प्रयोग किया गया है, जो देखने में अच्छा लगता है। Nadiadwala Grandson Entertainment को इस फिल्म को थियेटर में रिलीज करना चाहिए था। थियेटर में ये अपने कंटेंट के दम पर अच्छा व्यवसाय कर सकती थी। फिल्म में किसी तरह के एडल्ट दृश्य नहीं हैं। न ही इसमें कोई विवाद जैसी बात है।
ये एक सुंदर सरल फिल्म है, जो आपको एक ऐसी यात्रा पर ले जाती है, जो देखने वाले को भी बदल सकती है। फिल्म अंत में संदेश देती है कि जो आपके पास है, उसमे खुश रहने के बजाय दुनिया हासिल करने के लिए मत भागो, जो पास है उसे ही ‘दुनिया’ बना लो। फिल्म में कोई अश्लील दृश्य नहीं है इसलिए परिवार के साथ देखी जा सकती है।