घिरा हुआ है तू ऐसों से , जो पूरे जेहादी हैं ;
उल्टे- सीधे काम कराते , अंत अवश्यंभावी है ।
काशी में मंदिर तुड़वाते , पुरी के कितने मठ तुड़वाये ;
सारे दुष्ट कार्य मुगलों के , तेरे हाथों से करवाये ।
किस लालच में फंसा हुआ तू ? कठपुतली सा नाच रहा ;
हाथ तेरे कुछ न आयेगा , खाली हाथ ही भाग रहा ।
भोग- विलास,लोभ- लालच की, चकाचौंध सब फर्जी है ;
अंत में केवल वो पायेगा , जो ईश्वर की मर्जी है ।
मृगतृष्णा में भटक रहा है , कुछ भी हाथ न आयेगा ;
रोता जग में आया था तू , रोता ही तू जायेगा ।
अब तो आयु वानप्रस्थ की , धर्म – सनातन अपना लो ;
धर्म से सारे कार्य करो तुम , सत्य -मार्ग को अपना लो ।
अब सारी नौटंकी छोड़ो , लफ्फाजी भी सारी छोड़ो ;
आंधी खाई में राष्ट्र जा रहा, उसकी दिशा को फौरन मोड़ो ।
सात साल बर्बाद कर दिये , अब तो ढंग से काम करो ;
अल्पसंख्यकवाद मिटाओ सारा , तुष्टीकरण को बंद करो ।
शाहीन बाग की ऐसी – तैसी , रोड जाम होने मत देना ;
शत -प्रतिशत कानून का शासन , गुंडागर्दी मत होने देना ।
साहस – शौर्य जगाओ अपना , निर्भय होकर काम करो ;
जितने भी जेहाद चल रहे , उनको फौरन खत्म करो ।
देश है केवल देशभक्तों का , गद्दारों को मार भगाओ ;
कोई नहीं मुसाफिरखाना , घुसपैठियों को मार भगाओ ।
जीवन तेरा गलत राह पर , धर्म – राह पर ले आओ ;
मानवता की रक्षा करने , देश को हिंदू – राष्ट्र बनाओ ।
हिंदू – राष्ट्र बनेगा भारत , सारे संकट कट जायेंगे ;
धर्म – सनातन की छाया में , सारे प्राणी सुख पायेंगे ।
धर्म की राह दिखाये भारत , पूरा विश्व शांति पायेगा ;
मानवता से भटका मानव , सही राह पर आयेगा ।
सर्वश्रेष्ठ है धर्म – सनातन , सबका ये कल्याण करे ;
सारे अत्याचार मिटाकर , हर – प्राणी का त्राण करे ।
सच्चा धर्म मानेगा मानव , भ्रम के मजहब हट जायेंगे ;
स्वार्थ ,लोभ ,भय ,भ्रष्टाचार के, सारे मत्सर मिट जायेंगे ।
एकमात्र ये सही राह है , धर्म -सनातन को अपनाओ ;
सारी भटकन दूर हटेगी , सही लक्ष्य को पा जाओ ।
“वंदेमातरम-जयहिंद”
रचयिता:ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”