अयोध्या में राम जन्मभूमि परिसर में चल रहे कार्य के दौरान खुदाई में पुरावशेष मिलने के बाद कुछ लोग नया बखेड़ा खड़ा कर रहे हैं। किसी छुटभैये नेता ने ट्विटर पर दावा किया है कि अयोध्या एक बौद्ध स्थल था। किसी ने यूनेस्को से मांग कर डाली है कि निष्पक्ष रूप से राम जन्मभूमि की खुदाई कर सत्यता का पता लगाया जाए। फिर एक घृणित खेल शुरू हो गया है। खंडित मूर्तियों व अन्य पुरा-सामग्रियों को लेकर झूठे दावे किये जा रहे हैं। ये दुर्भाग्य ही है कि भारत में बिखरी पुरातत्व की अनमोल संपदा की समझ न सरकारों को रही, न भारत के नागरिकों को। पुरातत्व की सामान्य जानकारी न होना और उसमे रूचि न होने का ही कारण है कि भारत के गौरवशाली इतिहास की अधिकांश जानकारी आम नागरिक के पास नहीं है। पुरातत्व में रूचि न होने के कारण एक सामान्य हिन्दू अयोध्या का इतिहास नहीं जानता। उसका फायदा वामी-कामी गैंग उठाता है और गुमराह करता है। आज जानिये पुरातत्व के आधार पर वामी गैंग की काट कैसे होगी।
वैवस्वत मनु ने अयोध्या की स्थापना की थी। ये समय श्रीराम जन्म से भी बहुत-बहुत पहले का है, इसलिए ब्रिटिश काल के बाद से किये जा रहे दावे इस विशेष कालखंड में कोई अस्तित्व ही नहीं रखते। वैवस्वत सातवें मनु थे। उनकी संतानों से आठ राजवंशों की स्थापना हुई थी। इक्ष्वाकु राजवंश उनमे से एक है, जिसमे प्रभु श्रीराम ने जन्म लिया था। इस बात का प्रमाण मांगने वाले तैत्तिरीय आरण्यक और अथर्ववेद टटोल सकते हैं, इनमे अयोध्या का उल्लेख किया गया है। अयोध्या भारतवर्ष की सर्वाधिक प्राचीन नगरियों में से एक है।
जैन धर्म के तीर्थंकर ऋषभदेव, अजीतनाथ, अभिनंदन, सुमतिनाथ और अनंतनाथजी का जन्म अयोध्या में ही हुआ। लेकिन उनका प्रादुर्भाव श्रीराम के बहुत बाद में हुआ। अयोध्या का इतना प्राचीन इतिहास है कि ये राम जन्म के बाद से अब तक चार बार उजड़ी और बसाई गई है। यूनेस्को से खुदाई की मांग करने वाले जानते ही नहीं कि यूनेस्को के सात मानकों पर अयोध्या नगरी अपने पुरातात्विक सर्वेक्षण पर खरी उतरी है और अगले दो साल में उसे वैश्विक धरोहर भी घोषित कर दिया जाएगा।
नव बौद्ध आरोप लगाने से पहले इतिहास और अयोध्या में हो चुके उत्खनन की जानकारी ही नहीं रखते। जहाँ खुदाई के समय बुद्ध काल के अवशेष मिले थे, वह रामजन्म भूमि नहीं थी बल्कि हनुमानगढ़ी और लक्ष्मणघाट क्षेत्र थे। यहाँ प्राचीन काल में बीस बौद्ध विहार हुआ करते थे। ये ऐतिहासिक तथ्य है कि गौतम बुद्ध ने अयोध्या में छह वर्ष निवास किया। अयोध्या की अलौकिकता उन्हें वहां खींच लाई थी।
आखिरकार बुद्ध स्वयं भी सनातनी परंपरा के वाहक थे। सातवीं शताब्दी में जब ह्वेनसांग चीन से अयोध्या आया तो उसे ज्ञात हुआ कि बुद्ध को यहाँ ‘वर्षावास’ करना भाता था। जो नव बौद्ध राजनीति से प्रेरित होकर राम जन्मभूमि को बुद्ध की भूमि बताने का प्रयास कर रहे हैं, उन्हें ज्ञात हो कि ये मूर्खतापूर्ण हास्यापद प्रयास होगा क्योंकि बुद्ध तो स्वयं सनातनी थे। बुद्ध को उनकी मुख्यधारा से आप कैसे अलग कर सकते हैं।
ईसा से लगभग सौ वर्ष पहले उज्जैन के राजा विक्रमादित्य अयोध्या पहुंचे थे। तब तक अयोध्या उजड़ चुकी थी। यहाँ उनकी भेंट तीर्थराज प्रयाग से हुई। तीर्थराज ने उन्हें अयोध्या और सरयू के बारे में बताया। विक्रमादित्य ने अपनी उलझन बताते हुए कहा उजड़ी हुई अयोध्या की सीमा और क्षेत्रफल के बारे में कैसे पता चलेगा। उन्होंने कहा ‘गवाक्ष कुंड के पश्चिम तट पर एक रामनामी वृक्ष लगा है।
ये वृक्ष अयोध्या की परिधि नापने के लिए लगाया गया था। इस वृक्ष के एक मील के घेरे में एक नवप्रसूता गौ को घुमाओ। जिस स्थान पर उसके स्तनों से दूध की धारा गिरने लगे, समझना वही राम की जन्मभूमि है।’ विक्रमादित्य ने ठीक ऐसा ही किया। राम जन्मभूमि पर खुर रखते ही गौ माता के स्तनों से दूध की धारा फूट पड़ी। नवप्रसूता गाय का दूध जहाँ पर गिरा था, ठीक उसी स्थान पर उन्होंने श्री राम मंदिर का निर्माण करवाया।
राम जन्मभूमि की प्राचीनता का प्रमाण तो प्रोफेसर दीनबंधु पाण्डेय की किताब ‘राम-जन्मभूमि मन्दिर अयोध्या की प्राचीनता’ ही देने में सक्षम है। वे ‘स्थापत्यम (जर्नल आफ़ दि इन्डियन साइंस आफ़ आर्किटेक्चर एण्ड अलायेड सर्विसेस) के अतिथि संपादक हैं। उनकी किताब के अनुसार अयोध्या व राम जन्मभूमि की प्राचीनता ब्रिटिशों और मुगलों द्वारा दी गई जानकारी से भी बहुत पहले तक जाती है। वे अपनी दी जानकारी को वेदों में वर्णित इतिहास से पुष्ट करते हैं।
दीनबंधु पाण्डेय के अनुसार 6 दिसंबर 1992 को ध्वस्त ढाँचे के मलबे से एक अभिलेख प्राप्त हुआ था। संस्कृत में लिखा ये अभिलेख गाहड़वाल शासक गोविन्दचन्द्र के शासन में लिखा गया था। इनका शासनकाल 1114-1155 तक माना जाता है यानि ब्रिटिश रचित झूठ का पर्दाफ़ाश हो जाता है। अभिलेख में साकेत के मण्डलपति मेघसुत द्वारा विष्णु-हरि के भव्य मन्दिर बनाए जाने का उल्लेख किया गया है। इस मंदिर के निर्माण को आयुषचन्द्र ने पूरा करवाया था। इसी मंदिर को मीर बाकी ने ध्वस्त किया था।
एक सन हमें थमा दिया गया सन 1528। ताकि हम इस तारीख को पकड़ कर बैठे रहे और वामी-कामी गैंग के अनर्गल इतिहास को पचा जाए। ताकि नव बौद्ध इस तारीख की झूठी प्रामाणिकता के नाम पर राजनीति खेल सके। इक्ष्वाकु वंश का इतिहास इतना प्राचीन है, जितनी प्राचीन अयोध्या है और जितने प्राचीन वैवस्वत मनु हैं। क्या वेद झूठ बोलेंगे? क्या खुदाई में मिले अभिलेख झूठ बोलेंगे? क्या उस वंश को झुठला दोगे, जो आज भी इक्ष्वाकु की गौरवशाली परम्परा को आगे बढ़ा रहा है। उनमे राम रक्त दौड़ता है। भारतभूमि पर जन्म लिया हर मनुष्य राम से बंधा है। ये प्रमाण वगैरह तो कागजी बातें हैं।
एक बात और, बुद्द भी इक्ष्वाकु बंश में पैदा हुए अर्थात् श्री राम के वंश में ?