आप सब एनडीटीवी देखते हैं। आप देखते होंगे कि एनडीटीवी के प्राइम टाइम एंकर रवीश कुमार बहुत चिढ़, कुढ़न और व्यंग्य से राष्ट्र और राष्ट्रवादियों पर हमला करते हैं! फ्रांस में यदि एक राष्ट्रवादी पार्टी हार गयी तो यहां उसका जश्न एनडीटीवी पर मनाया जाता है। आप देखते होंगे कि पुण्य प्रसून वाजपेयी हमेशा सरोकार, भुखमरी, दरिद्रता को उछालते हुए राष्ट्र की अवधरणा पर चोट करता है। आप सोशल मीडिया पर कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों को पढ़ते होंगे जो तरह-तरह के कुतर्क गढ़ते हुए भारत को राष्ट्र मानने से इनकार करते दिखते हैं! कोई उसमें क्षेत्रीय अस्मिता का पैरोकार बन जाएगा, कोई हिंदू राष्ट्र के बहाने राष्ट्र की मूल अवधारणा पर चोट करेगा तो कोई आदि गुरु शंकर तक को घसीट लेगा, बिना यह जाने कि आखिर शंकर ने केरल से चलकर केदार तक को एक सनातक धागे में पिरोने की कोशिश क्यों की? घुमावदार शब्दों से तथ्य को नहीं ढंका जा सकता! ऐसे लोगों को कल रिपब्लिक के प्रमुख संपादक अर्णव गोस्वामी ने बहुत ही जबरदस्त जवाब दिया!
अर्णव गोस्वामी ने कहा कि ‘मैं आसाम से आता हूं, जहां उल्फा क्षेत्रीय अस्मिता के मुद्दे को उछालता रहा है। मैं कभी क्षेत्रीय अस्मिता को अपने राष्ट्र के उपर नहीं रख सकता। मेरे लिए मेरा नेशन ही सर्वोपरी है।’ तय मानिए यदि आप मन से अपने राष्ट्र को सर्वोपरि मानेंगे तो कोई रवीश, कोई पुण्य या कोई अन्य आपको कभी गुमराह नहीं कर पाएगा! बड़ी बात यह है कि आप क्या मानते हैं? कमजोर विश्वास वालों पर वामपंथी प्रहार सबसे पहले होता है, यह मार्क्स भी जानता था, स्टालिन भी और हिटलर भी! इसलिए दुविधा में न फंसे वेद से लेकर रामायण, महाभारत और पुराणों तक राष्ट्र की अवधरणा किसी न किसी रूप में मौजूद है!
कभी यूरोपीय मन से भारतीय ‘राष्ट्र’ को नहीं समझा जा सकता है! नेहरू ने इसी यूरोपीय मन से ‘भारत की खोज’ जैसी मूर्खता की थी! और वामपंथी उसी मूर्खता का ढोल पीटते हुए उन्हें ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ का जनक आज तक मानते हैं! एक राष्ट्र के रूप में भारत के प्रति आपके विश्वास के कारण ही नेहरूवाद, साम्यवाद और औपनिवेशिकवाद से उपजी मानसिकता इस देश पर हावी नहीं हो पाई है! आखिर क्यों बार-बार कोई न कोई आपके समक्ष खड़ा हो जाता है यह कहने के लिए कि भारत कभी एक राष्ट्र नहीं था? क्योंकि यदि आप इसे मान जाएंगे तो फिर कश्मीर, केरल, नार्थ-ईस्ट आदि को भारत से तोड़ने का विचार प्रसारित करने में आसानी होगी! मैं आपके लिए एक वीडियो लाया हूं, जिससे आपको राष्ट्र को समझने और राष्ट्र को तोड़ने वालों को समझने में आसानी होगी। मैं छोटी-छोटी कोशिश करता रहूंगा; तब तक जब तक एक भी आदमी समझने को तैयार है!
मैंने आपलोगों को एक पुस्तक दी है-कहानी कम्युनिस्टों की, आपने यदि उसमें पढ़ा है तो आप पाएंगे कि राष्ट्र की अवधारणा का विरोध और भारत को एक राष्ट्र न मानने की जो जिद कार्ल मार्क्स ने की थी, उसे ही बाद में 1936 में रूसी तानाशाह स्टालिन ने अपने संविधान में शामिल किया और वही दुनिया भर के कम्युनिस्टों, वामपंथियों, भारत के नेहरूवादियों, आज के लेफ्ट-लिबरल्स के लिए ब्रह्म लकीर बन गया!