श्वेता पुरोहित। प्राचीन भारत में सेना को परंपरागत रूप से चतुरंगिणी सेना के नाम से जाना जाता था। यह चतुरंगिणी सेना पैदल सैनिक, अश्वारोही सैनिक, गजारोही और रथसवार योद्धाओं से मिलकर बनी होती थी। सेना की सबसे छोटी इकाई को पट्टी कहा जाता था और उसकी संरचना एक रथवान, एक गजारोही, तीन अश्वारोही और पाँच पैदल सैनिकों को मिलाकर होती थी।
इसके पश्चात् बढ़ते हुए क्रम में 7 इकाइयाँ होती थी, जिनके नाम सेनामुख, गुल्म, गण, वाहिनी, प्रतन, कामू तथा अंकिनी होते थे। संरचना में, इन सभी इकाइयों में से प्रत्येक इकाई अपनी पूर्ववर्ती इकाई से 3 गुना बड़ी होती जाती थी। इस प्रकार अंकिणी में 2187 रथसवार सैनिक, 2187 गजसवार सैनिक और 6561 अश्वारोही सैनिक तथा 10935 पैदल सैनिक शामिल होते थे। इसकी सबसे बड़ी इकाई अक्षौहिणी होती थी, जो कि अपनी संरचना में अंकिणी से 10 गुना अधिक बड़ी होती थी।
इस प्रकार अक्षौहिणी सेना में 21870 रथसवार, 21870 गजसवार, 65610 अश्वारोही सैनिक और 109350 पैदल सैनिक शामिल होते थे। अक्षौहिणी सेना का स्वामी होना राजा के लिए प्रतिष्ठा का विषय होता था।
महाभारत युद्ध में कौरव पक्ष के पास 11 अक्षौहिणी और पांडवों के पास 7 अक्षौहिणी सेना थी। प्रारंभिक अवस्था में दोनों ओर 9-9 यानी 18 अक्षौहिणी सेना होने का अनुमान था। किंतु श्रीकृष्ण की नारायणी सेना के कौरव पक्ष में जाने और दुर्योधन द्वारा नकुल सहदेव के मामा, मद्र नरेश शल्य को छल से अपनी ओर मिला लेने के कारण कुल सेना बल तो 18 अक्षौहिणी ही रहा किंतु अनुपात 11 और 7 का हो गया।
अब अनुमान लगाऐं कि महाभारत के युद्ध में कुल कितने सैनिकों ने भाग लिया था.
18 अक्षौहिणी सेना में 3,93,660 रथसवार, 3,93,660 गजसवार, 1,180,980 अश्वारोही सैनिक और 1,968,300 पैदल सैनिक शामिल हुए थे।
आजकल की परिभाषा में महाभारत किसी विश्वयुद्ध से कम नहीं था।