राजनीति का धूर्त – खिलाड़ी , छुरा पीठ पे घोंपना जाने ;
आगे वाले को मारके टंगड़ी , सत्ता को कब्जाना जाने ।
बहुत बड़ा नौटंकीबाज है , अभिनय करने में माहिर ;
इतने दिन तक छुपा रहा ये, तृप्तीकरण से हो गया जाहिर ।
हिंदू ! अब तो होश में आओ , निरपराध मत गले कटाना ;
कोई नहीं हिंदू का रक्षक , अपनी रक्षा हमें ही करना ।
शासन और प्रशासन दोनों , मजहब वालों के गुलाम हैं ;
कहीं नहीं कानून की चलती , ये ही किस्सा आम है ।
सरकारों में भरे हुये हैं , सौ में नब्बे अब्बासी- हिंदू ;
वामी,कामी,जिम्मी,सेक्युलर , कहीं नहीं है सच्चे – हिंदू ।
हिंदू अब ये जान गया है,अब्बासी-हिंदू को पहचान गया है ;
अबकी बार नहीं जीतेगा , अब्बासी-हिंदू भी जान गया है ।
पर सत्ता से जाते- जाते , बर्बाद देश को कर जायेगा ;
दो वर्ष की इसी अवधि में , कितने गुल वो खिला जायेगा ?
पागलपन का पड़ा है दौरा , कितने मंदिर तुड़वायेगा ?
कुछ तो भेद है इसके मन में , गजवायेहिंद करवायेगा ।
हिंदू ! अब तो कमर को कस लो , हमको धर्म बचाना है ;
सब के सब सड़कों पर उतरो , हमको आकाश गुंजाना है ।
शाहीन-बाग़ तो मच्छर जैसा , हमें शेर बन जाना है ;
रोड – जाम तो गटर का पिस्सू , परजीवी हमें मसलना है ।
मच्छर और पिस्सू से डरती , कायर – सरकार हमारी है ;
सीधे का मुंह कुत्ता चाटे , हिंदू – जनता बेचारी है ।
हमें त्यागना ये सीधापन , वक्र हमें अब होना है ;
जैसे को तैसा दे करके , हमको ये युद्ध जीतना है ।
लोकतंत्र का महायुद्ध , जल्दी ही आने वाला है ;
अब्बासी – हिंदू कोई न जीते , ये करके दिखलाना है ।
सारे – दल हैं धर्म के दुश्मन , जेहादी के गुलाम हैं ;
इन सबको अब करो किनारे , इनका अब क्या काम है ?
हमें चाहिये कट्टर – हिंदू , धर्म – सनातन का रखवाला ;
किसी भी दल का या निर्दल हो,धर्म का केवल हो मतवाला।
सारे – हिंदू उसे जितायें , अब्बासी – हिंदू को हराना है ;
यदि वहाँ नहीं ऐसा प्रत्याशी , तो नोटा का बटन दबाना है ।
या तो जीते कट्टर – हिंदू , अथवा पूरा चुनाव निरस्त हो ;
हिंदू ! इससे डिग मत जाना , कभी न तेरा सूर्य अस्त हो ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”,रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”