अपने गुरु का ऋण लौटाओ , “हिंदू-युवा वाहिनी” लाओ ;
धर्म – सनातन तेरा जीवन , उसी मार्ग पर वापस आओ ।
राजनीति तो तेरी चेरी , उसको सर पर मत बैठाओ ;
धर्मच्युत हो चुके हैं नेता , उन सबको भी राह दिखाओ ।
राज्य की सत्ता केवल साधन , साध्य सदा ही धर्म-सनातन ;
राज्य सदा सेवक जनता का , भारत की ये प्रथा पुरातन ।
पर जब से अब्बासी – हिंदू , राजनीति में आया है ;
धर्म – सनातन का वैरी है , गजवायेहिंद ही लाया है ।
भारत का दुर्भाग्य तो देखो , हिंदू आंखें मूंदे है ;
अब्बासी – हिंदू का धोखा , सभी जगह ही दीखे है ।
इसी से सच्चा-इतिहास छुपाकर, झूठा-इतिहास पढ़ाता है ;
धर्म की शिक्षा से वंचित कर , गंदी-शिक्षा दिलवाता है ।
बहुत बड़ा ये धोखेबाज है , महाधूर्त है ये मक्कार ;
धर्म का ये जानी – दुश्मन है , अब्राहमिक का है ये यार ।
पता नहीं कब हिंदू समझेंगे ? कौन शत्रु है कौन है मित्र ?
हजार बरस से यही चल रहा , गला काटते बनकर मित्र ।
हिंदू-समुदाय तभी जागेगा , जब तुम सा हो जगाने वाला ;
हिंदू-समुदाय जागने को है, पर कब-तक है तू आने वाला ?
जो कुछ करना है जल्दी करना है , कहीं देर न हो जाये ;
गुरु – परम्परा तेरे साथ है , तू जो चाहे सो हो जाये ।
सूक्ष्म – जगत में कार्य चल रहा , सदा गुरु का आशीर्वाद ;
स्थूल – जगत में तुझे ही करना , सत्य यही है निर्विवाद ।
सारे अवरोध टूट जायेंगे , अंधियारे सब छंट जायेंगे ;
गोरक्षपीठ से ज्योति उठेगी , अंधकार सब मिट जायेंगे ।
देवासुर – संग्राम चल रहा , धर्म – युद्ध हम ही जीतेंगे ;
कालनेमि – रावण जितने हैं , सबके चेहरे नुच जायेंगें ।
चंदन-तिलक-त्रिपुण्ड के पीछे , जितने भी अब्बासी-हिंदू ;
सामने आयेगी सच्चाई , जागरूक जब होंगे हिंदू ।
हिंदू – चेतना की उठे सुनामी , तटबंध सभी तब टूटेंगे ;
सदियों से राह तक रहा भारत , सारे – सपने पूरे होंगे ।
सबसे बड़ा स्वप्न हिंदू का , न्याय का शासन लाना है ;
प्राणी-मात्र हों सभी सुरक्षित , “हिंदू – राष्ट्र” बनाना है ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”