विपुल रेगे। मुगलों के महिमामंडन पर बनी वेब सीरीज ‘द एम्पायर’ फ्लॉप हो गई है। इसे आईएमडीबी पर 3.3 की निचली रेटिंग प्राप्त हुई है। इसकी ख्याति का इंडेक्स भी बहुत नीचे 556 पर दिखाई दे रहा है। झूठ को सजीला आवरण बनाकर सत्य नहीं बनाया जा सकता। ये एक ऐसी सीरीज है कि एक स्वस्थ मानसिकता का दर्शक इसकी वीभत्सता को दो एपिसोड भी नहीं झेल सकता। बर्बरता इस सीरीज से लहू बन टपकती है। इतना ख़ून-ख़राबा क्या सरकार द्वारा गठित कथित समिति को दिखाई नहीं दिया।
ओटीटी मंच : डिज्नी + हॉटस्टार
मैं पहले ही ये स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि इस वेब सीरीज को देखने के बाद इसके बर्बर दृश्य आपको लंबे समय तक परेशान कर सकते हैं। कमज़ोर दिल वाले, गर्भवती महिलाएं और बच्चें इस वीभत्स फिल्म से दूर ही रहे तो उनके स्वास्थ्य के लिए अच्छा होगा। बाबर नामक आततायी को सुशासक सिद्ध करने के लिए ये फिल्म बनाई गई है। बाबर अच्छा था, उसका पिता शायराना मिज़ाज़ का भला आदमी था।
उसने भलमनसाहत में अपना विशाल साम्राज्य सगे-संबंधियों में बाँट दिया था। उसका प्रतिद्व्न्दी एक क्रूर शासक था। ध्यान रहे इस वेब सीरीज का आधार ‘एम्पायर ऑफ़ द मुग़ल’है। एक आततायी, जो भारत के लोगों को भूखा और नंगा लिखता था, वह भारत के प्रति उदार विचार कैसे रख सकता है।
वह राणा सांगा जैसे शासकों से घबराता था। राणा ने उसके भेजे अफगानी योद्धाओं को खदेड़ दिया था। जैसा कि मैंने लिखा वेब सीरीज में खून-ख़राबा इतना अधिक है कि अब तक सरकार और न्यायालय को संज्ञान ले लेना चाहिए था। क्या इतनी हिंसा पर्दे पर स्वीकार की जाएगी ? भारत में मुगल वंश के संस्थापक बाबर के लिए राह आसान नहीं रही थी। उसने राम मंदिर तोड़ा और बाबरी मस्जिद बनाई।
क्या वेबसीरीज बनाने वालों में मूर्तिभंजक बाबर का ये कृत्य दिखाने का साहस नहीं था। ये सीरीज पिट गई है। विश्व जानता है कि बाबर भी उसके पूर्वजों की तरह अपने धर्म का प्रचारक था, जो तलवार के बल पर ये करना चाहता था। इस देसी ‘गेम ऑफ़ थ्रोन’ में दिखाया गया है कि वह पेशे से योद्धा होने के बावजूद क्रूर, सनकी, अत्याचारी और दूसरों के खून का प्यासा नहीं है।
स्वतंत्रता पश्चात् देश के इतिहासकारों ने इन मुगलों के शाही परिधानों पर लगे असंख्य रक्त के धब्बे छुपा लिए थे। आज भी वही हो रहा है। फिल्म उद्योग ने ये ज़िम्मेदारी ले ली है कि वह उन कथित इतिहासकारों के कहे झूठ पर ऐसी फ़िल्में बनाकर मोहर लगा दे। इस फिल्म में शबाना आज़मी एक दृश्य में कहती है ‘याद रहे मुगल, मुगल होते हैं। ये संवाद उन्होंने सत्य ही कहा। मुगल और मुगलई मानसिकता रखने वाले भी मुगल ही होते हैं। वे फ़िल्में बनाते हैं, फिल्मों में अभिनय भी करते हैं।