सबसे बड़ा धर्म का दुश्मन , अब्बासी – हिंदू नेता है ;
कायर – कमजोर है भ्रष्टाचारी , केवल नौटंकी करता है ।
महामूर्ख – हिंदू है इतना , अब तक जान नहीं पाया ;
गंदी – शिक्षा के ही कारण , इनको पहचान नहीं पाया ।
अब्बासी – हिंदू नेता कौन है ? चरित्रहीन,स्वार्थी,कमजोर ;
आंखों में ये धूल झोंकते , अब तक बचे हुये ये चोर ।
हिंदू की दोनों आंखों में , अधर्म का पर्दा पड़ा हुआ है ;
धर्म – भ्रष्ट जो भी हो जाता , समझो कि वो मरा हुआ है ।
धर्म बिना ये जीवन मृत्यु है , अपनी चिता सजाते हो ;
अब्बासी – हिंदू से धोखा खाकर , अपने गले कटाते हो ।
सदियों से धोखा खाते आये , पथ – प्रदर्शक नहीं मिले ;
अभी भी सब डालर – दीनारी , सच्चे-बाबा नहीं मिले ।
धर्म-सनातन ज्ञान का सूरज , उच्च कोटि के सारे ग्रंथ ;
रामायण , गीता , महाभारत , तुझे दिखाते सत्य का पंथ ।
अज्ञान की निद्रा त्यागो हिंदू ! ज्ञान का दीपक पुनः जलाओ;
अब्बासी-हिंदू नेता पहचानो, ज्ञान-मार्ग से सब कुछ पाओ ।
तेरा अब तक सब कुछ लूटा , तेरे ही नेताओं ने ;
सौ में नब्बे हिंदू-नेताओं ने, दस-प्रतिशत बाहर वालों ने ।
धर्म – सनातन की शिक्षा से , हिंदू अपने नेता पहचानो ;
चरित्रहीन,कायर,मक्कारों को , सत्ता से दूर फेंकना जानो ।
“हिंदू का ब्रह्मास्त्र” है “नोटा” नब्बे-प्रतिशत तक इसे चलाना
दस-प्रतिशत जो “कट्टर-हिंदू”, हर हालत में उन्हें जिताना ।
केवल जीते “कट्टर-हिंदू”, शेष सभी की जब्त-जमानत ;
अब्बासी – हिंदू कोई न जीते , सबसे बड़ी यही हैं लानत ।
चाहे मुट्ठी – भर ही जीतें , पर सब होंगे “कट्टर-हिंदू” ;
किसी भी दल के या निर्दल हों , जीतेंगे सब “कट्टर-हिंदू” ।
तब इनकी सरकार बनेगी , मिली- जुली सरकार बनेगी ;
“हिंदू-राष्ट्र” बनेगा भारत , तब हिंदू को मुक्ति मिलेगी ।
हिंदू अभी स्वतंत्र नहीं है , बात- बात पर जजिया लगता ;
हिंदू – मंदिर को सरकारें लूटें , उस धन से जेहादी पलता ।
कितने निकृष्ट, अधम , नीच हैं ? सौ में नब्बे हिंदू-नेता ;
ये सब इतने पाखंडी हैं , अपना धर्म बेचकर हंसता ।
अब हिंदू को जलानी होगी , अब्बासी-हिंदू नेता की लंका ;
तब “कट्टर-हिंदू” नेता के द्वारा,बजेगा “हिंदू-राष्ट्र” का डंका ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”,रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”