विपुल रेगे। ‘द रेलवे मैन’ 39 वर्ष पूर्व हुई भोपाल गैस त्रासदी की अकथनीय पीड़ा को स्वर देती है। । ये वेब सीरीज न केवल यूनियन कार्बाइड नामक अमेरिकी कंपनी द्वारा दिए गए ज़ख्मों को ताज़ा करती है बल्कि उन नायकों को भी सैल्यूट करती है, जिनके कारण हज़ारों लोगों की जान बचाई जा सकी। ‘द रेलवे मैन’ दिल से कमज़ोर दर्शक के लिए नहीं है। भोपाल के उस महान दुःख को दिल पर लेकर आपको ये वेब सीरीज़ देखनी पड़ती है। शिव रवैल की ये प्रस्तुति तात्कालिक भारतीय सिस्टम, राजनीति की कालिख भरी सुरंग से निकलते साहसी नायकों की कथा कहती है।
ओटीटी मंच : नेटफ्लिक्स
भोपाल गैस काण्ड तत्कालीन सरकारों के माथे पर लगा ऐसा धब्बा है, जो कभी मिटाया नहीं जा सकेगा। 39 वर्ष पूर्व मध्यप्रदेश के भोपाल में पौधों के लिए पेस्टिसाइड्स बनाने वाले अमेरिकी कारखाने में आधी रात के समय जानलेवा लीक हुआ था। यूनियन कार्बाइड का नाम भोपाल की याददाश्त से कभी निकाला नहीं जा सका। आज भी उस त्रासदी से पीड़ित हुए लोगों को गंभीर किस्म की बीमारियां है। उस समय जो बच्चे माँ के गर्भ में थे, उन पर ज़हरीली गैस का असर हुआ और जन्म लेने के बाद उनमे कई विकृतियां आ गई। यूनियन कार्बाइड शहर के बीच में स्थित था और रेलवे स्टेशन के करीब बनाया गया था। इसके लचर सुरक्षा प्रबंधों को लेकर अखबारों में रिपोर्ट तक आ गई थी लेकिन सरकार और सिस्टम सोता रहा।
परिणाम सोलह हज़ार निर्दोष लोगों की मौत के रुप में सामने आया था। यूनियन कार्बाइड के अध्यक्ष वारेन एन्डर्सन को गिरफ्तार कर मामूली जुर्माने के साथ छोड़ दिया गया और उसे छोड़ने के लिए सरकार विमानतल तक गई। ये सारे घटनाक्रम ‘द रेलवे मैन’ में विस्तार के साथ देखे जा सकते हैं। सच्ची कहानियों के साथ कुछ अफ़साने जोड़े गए हैं लेकिन मूल कथा तो दस्तावेजों पर ही आधारित है। ‘द रेलवे मैन’ गैस कांड को पूरे भोपाल शहर पर केंद्रित नहीं रखती। भारतीय रेलवे इस कहानी का केंद्र है। भोपाल रेलवे स्टेशन मास्टर के साहस और सदाशयता के चलते बहुत से लोगों की जान बचाई जा सकी। उस समय संचार व्यवस्था लगभग ध्वस्त हो चुकी थी और ऐसे में भारतीय रेलवे ने मदद पहुंचाने में महती भूमिका निभाई थी।
चार एपिसोड की वेब सीरीज में सारे ही पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं। डिप्टी सुपरिंटेंडेंट से लेकर रेलवे के शीर्ष अधिकारियों के मूल नाम नहीं दिए गए हैं। केके मेनन, माधवन और बाबिल इस शो के चमकते हुए हीरे हैं। जब ऐसे होनहार कलाकार एक मंच पर हो तो उच्च स्तर का अभिनय मिलने की गारंटी होती है। इस वेब सीरीज को आप कई एंगल से देख सकते हैं, सराह सकते हैं और इसकी समालोचना भी कर सकते हैं। एक है कलाकारों का सुंदर अभिनय, दूसरा है फिल्म का पीरियोडिक टच और उसका लेवल, तीसरा है स्मूद निर्देशन। 1984 के समय का भोपाल दिखाने के लिए आर्ट डायरेक्शन यूनिट ने बहुत ही बेहतरीन काम दिखाया है।
कई दृश्यों में टीवी समाचारों के दृश्य उभरते हैं। निर्देशक ने वास्तविकता लाने के लिए असली दृश्यों का इस्तेमाल किया है। पूरी सीरीज में कई बार आप पुराने फुटेज देख सकेंगे। उस अँधेरी काली रात को उसके वहशीपन के साथ दिखाने के लिए नए निर्देशक शिव रवैल को बधाई देना चाहिए। अब तक उन्होंने इंडस्ट्री में लेखक और असिस्टेंट निर्देशक के रुप में कार्य किया था और अब पहली बार निर्देशक की सीट पर आए हैं। पहले प्रयास में उन्होंने अपने भीतर की चिंगारी दिखा दी है। माधवन का इस वेब सीरीज में होना बड़ा आवश्यक था। वे इस निराशाजनक रात में एक आशा की किरण के साथ आते हैं। माधवन का किरदार बहुत स्ट्रांग बनाया गया है। यहाँ तय करना मुश्किल है कि केके मेनन के भाव प्रणव अभिनय की अधिक प्रशंसा करें या माधवन के सहज स्वाभाविक अभिनय की।
इन दोनों अनुभवी कलाकारों के बीच बाबिल खान ने अपना जलवा कायम रखा है। जूही चावला का छोटा सा कैमियो बड़ा ही असरदार साबित होता है। प्रसिद्ध पत्रकार राजकुमार केसवानी की जागरुकता के चलते ही भोपाल समेत पूरे प्रदेश को इस आशंका की जानकारी हो गई थी कि यूनियन कार्बाइड कभी भी बड़ी विपदा लेकर आ सकता है। राजकुमार केसवानी का किरदार सन्नी आहूजा ने पूरी ऊर्जा के साथ निभाया है। यहाँ उनका नाम बदलकर जगमोहन कुमावत कर दिया गया है। ये वेब सीरीज देखने के लिए आपको बहुत हिम्मत जुटानी होगी। विशेष रुप से गैस रिसने के बाद मारे गए लोगों के दृश्य बड़े ही हृदय विदारक हैं।
आपको ये देखने के बाद तात्कालिक सरकार पर भी गुस्सा आएगा। किस तरह से सोलह हज़ार लोगों की मौत के आरोपी को हमारी सरकार नौकरों की भांति एयरपोर्ट तक छोड़ आई। आज़ादी के बाद बने भारत के सरकारी सिस्टम को हम अजेय मान सकते हैं। जैसा वह अस्सी के दशक में था, वैसा वह आज भी है। भारतीय नागरिक के सपनों, आशाओं और कर्मठता को निगल जाने का कार्य आज भी वह बखूबी कर रहा है। ‘द रेलवे मैन’ को आप आईना मान सकते हैं और इस बात पर मुतमइन भी हो सकते हैं कि सब कुछ सिनेमा को देखकर समाज में नहीं घटता। समाज में बहुत कुछ ऐसा है जिसे सिनेमा आपको ‘आइने’ की तरह दिखाता है।