
मेरी यह लड़ाई अगली पीढ़ी को बचाने के लिए है!
संदीप देव। मैं जब दैनिक जागरण में था तब मेरे मुख्य महाप्रबंधक थे निशिकांत ठाकुर जी। मैं तब क्राइम रिपोर्टर था। एक बार जागरण में मैंने आजतक के फर्जीवाड़े को एक्सपोज कर दिया। असल में दिल्ली के द्वारका क्षेत्र में बिना ड्राइवर के गाड़ी चलने का फर्जीवाड़ा आजतक ने फैलाया था, जबकि ड्राइवर को बगल की सीट पर बैठाकर उसके पैर से गाड़ी को कंट्रोल करवा रहा था। यही मैंने एक्सपोज किया। दैनिक जागरण बड़ा अखबार है। आजतक की बहुत थू-थू हुई। गुस्से से भन्नाए आजतक के तत्कालीन संपादक कमर वहीद नकवी ने दैनिक जागरण के मालिक व संपादक संजय गुप्त को फोन किया और कहा आपके रिपोर्टर को इतना भी पता नहीं है कि एक मीडिया, दूसरे मीडिया को एक्सपोज नहीं करता? इसे बाहर निकालिए। हमारे संपादक ने भी मीडिया याराना दर्शाते हुए फरमान जारी कर दिया कि संदीप को निकालो।
दैनिक जागरण के मुख्य महाप्रबंधक निशिकांत ठाकुर जी ने इस पर वीटो कर दिया। उन्होंने कहा, किसी अन्य के कहने पर हम अपने रिपोर्टर को नहीं निकालेंगे। संदीप एक अच्छा रिपोर्टर है, अच्छा काम करता है। मैं उसे समझा दूंगा।
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फिर उन्होंने मुझे फोन किया। मुख्य महाप्रबंधक जैसा पद कभी एक साधारण रिपोर्टर को फोन नहीं करते। ऐसा प्रोटोकॉल होता है। इसलिए उनका फोन देखकर मैं घबरा गया। मैंने डरते-डरते उठाया। उन्होंने कहा, ‘संदीप यह तुमने क्या किया? दूसरी मीडिया के बारे में रिपोर्ट नहीं करते। अब आगे मत करना। अच्छा काम करते हो, करते रहो।’ उन्होंने आजतक के एडिटर को कह दिया कि मैंने अपने रिपोर्टर को समझा दिया है, आगे से नहीं करेगा, लेकिन मैं उसे निकाल नहीं सकता। वह हमारा बेहतरीन रिपोर्टर है।
ऐसे एक बार म्लेच्छ समुदाय के एक बड़े बीफ माफिया को मैंने एक्सपोज किया। उप्र में उसका दबदबा था। अखबार जब छप रही थी, तब जागरण के प्रबंधक की उस पर नजर गई। उन्होंने मशीन रुकवाई। तब तक करीब 15,000 कापी छप चुकी थी।
कॉपी लेकर वो दौड़े-दौड़े मुख्य महाप्रबंधक तक पहुंचे। कहा, ‘वो लोग ताकतवर हैं। प्रेस में आग लगा देंगे। इस संदीप को कुछ समझ नहीं आता।’ तत्काल उस 15000 कॉपी को आग के हवाले किया गया। डेस्क ने उस न्यूज को रात में उतारा, फिर अखबार छपा। उस सुबह एडिशन थोड़ा लेट भी हो गया।
अगले दिन मुझे दैनिक जागरण के मुख्यालय, नोएडा बुलाया गया। प्रबंधक जी ने मुझे खूब डांट पिलाई कि तुम्हारे कारण अखबार का नुकसान हुआ। 15 हजार अखबार का मूल्य तुम्हारी सैलरी से कटेगा।
फिर वो मुझे मुख्य महाप्रबंधक निशिकांत ठाकुर जी के पास ले गये। मुख्य महाप्रबंधक जी ने केवल इतना कहा, ‘संदीप देखकर न्यूज लिखा करो।’ फिर उन्होंने प्रबंधक जी को कहा, ‘इसकी क्या गलती है? रिपोर्टर तो रिपोर्ट लिखेगा ही? डेस्क क्या कर रहा था?’ बाद में मेरी सैलरी नहीं कटी।
ऐसे ही मेरी एक रिपोर्ट के कारण म्लेच्छों के एक गुट ने दैनिक जागरण के पश्चिमी दिल्ली कार्यालय पर हमला बोल दिया था। ट्रक भर कर गुंडे आए थे। तलवार, सरिया, हॉकी स्टिक के साथ पेट्रोल का कनस्तर लेकर आए थे कार्यालय को फूंकने। पहले वो मेरा नाम ले मुझे ढूंढने लगे। किसी तरह मैं वहां से सरकाया गया। तब रिपोर्टर का फोटो नहीं छपता था, इसलिए उसे पहचानना मुश्किल होता था। गेट बंद करने के चक्कर में हमारे कार्यालय के बूढ़े दादा(चपरासी) को उन्होंने पीट दिया।
तब तक जागरण के INS कार्यालय में हमारे मुख्य अपराध संवाददाता आलोक वर्मा जी को मैंने फोन किया। उन्होंने आनन-फानन में पश्चिमी दिल्ली के डीसीपी को फोन किया। तत्काल पुलिस फोर्स पहुंची, जिस कारण कार्यालय और वहां के सभी स्टाफ का जीवन बच सका।
ऐसा ही हुआ आतंकवादी यासिन मलिक को एक्सपोज करने पर। मनमोहन सरकार ने यासीन मलिक द्वारा कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार की पूरी फाईल नष्ट कर दी थी। मैंने इसे साक्ष्य के साथ एक्सपोज किया। यासीन के आतंकी जागरण के कार्यालय पहुंच कर मुझे ढूंढने लगे। तब नवीन गौतम हमारे चीफ रिपोर्टर होते थे। उन्होंने कहा, संदीप आज ही अपने गांव के लिए निकल गया है, जबकि मैं वहीं बैठा था। मैं फिर बच गया।
ऐसे ही स्टील टाइकून लक्ष्मी निवास मित्तल को जब मैंने एक्सपोज किया तो फिर दैनिक जागरण के मालिकान ने कहा, ‘इसे फायर करो।’ बाद में बिजनस एडिटर अंशुमान तिवारी जी ने कहा कि ‘संदीप ने मेरी जानकारी में देकर रिपोर्ट की थी। रिपोर्ट अच्छी थी। मैं मित्तल की कंपनी से बात कर लेता हूं।’ मैं फिर बच गया।
नयी दुनिया अखबार में जब पूर्व रेलमंत्री लालूयादव को एक्सपोज किया तो मेरे तत्कालीन प्रधान संपादक आलोक मेहता जी के पास लालू ने मेरी शिकायत करते हुए फोन किया। उसी अखबार में मुकेश अंबानी को एक्सपोज किया तो प्रबंधन ने समझाया कि अखबार में अंबानी का शेयर है। खबर रोक दी गई। ऐसे अनगिनत किस्से मेरी रिपोर्टिंग के दौरान के हैं।
आज यह इसलिए लिख रहा हूं कि लोग कह रहे हैं कि तुम ‘मोहन भागवत’ पर मुकदमा करके अपनी जिंदगी दांव पर लगा रहे हो। मैंने अपनी पत्रकारिता के लिए हमेशा अपनी जिंदगी दांव पर ही लगाया है।
उस दौर में जब आज के ‘छर्रे’ कांग्रेसी चापलूसी में मगन थे, और नरेंद्र मोदी का नाम तक लेने से बचते थे, तब मैंने अपनी जमी-जमाई पत्रकारिता की नौकरी छोड़कर उनके विरुद्ध सारी सजिश को ‘साजिश की कहानी-तथ्यों की जुबानी’ पुस्तक लिखकर एक्सपोज किया था। तब सोनिया-मनमोहन की सरकार थी। NIA ने पूछताछ के लिए बुलाया था मुझे। तब राम बहादुर रायजी, अशोक सिंघल जी, सुब्रह्मण्यम स्वामी जी एवं कुछ प्रिय मित्रों के कारण मैं बच गया था।
मैं सत्य और धर्म से समझौता नहीं कर पाता। जिंदगी धर्म से बहुत छोटी है। कर्मप्रधान सनातन धर्म में अपने कर्म से मुंह कैसे मोड़ूं, यह नहीं सीख पाया आजतक। शायद इसीलिए आज मेरे मित्रों की संख्या शून्य है, शत्रुओं की संख्या कहीं ज्यादा है।
मुझे कोसने, भला-बुरा कहने और कुछ न मिलने पर कम्युनिस्ट स्टाइल में मुझ पर व्यक्तिगत हमला करने वाले यह जान लें कि समझौता और रुकना मेरे स्वभाव में कभी नहीं रहा है।
मेरी प्रथम गुरु मेरी नानी कहती थी, ‘दैव पीछे पड़े अभागा के, लोग पीछे पड़े सभागा के।’ अर्थात वो वोग सौभाग्यशाली होते हैं, जिसके शत्रु देवता नहीं मनुष्य होते हैं।
भगवान विष्णु और मां काली का आराधक हूं। उनका स्नेह और आशीर्वाद बस मिलता रहे। सत्य व धर्म से तो मैं अपने घरवालों के लिए भी समझौता नहीं करता, फिर बाहर वाले मेरे लिए कितना मायने रखेंगे?
आज मोहन भागवत जी के विरुद्ध कानून की मदद लेने जा रहा हूं क्योंकि उन्होंने हमारे महाभारत में दो शिवांश भाईयों को मित्र कह समलैंगिक साबित करने के लिए झूठ फैलाया है और भगवान श्रीकृष्ण को अफवाह फैलाने वाला तक कहा है!
मैं नहीं जानता इस कदम का परिणाम आगे क्या होगा? वैसै भी पूर्ण परमेश्वर भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।’ अर्थात्:- तेरा कर्म करने में अधिकार है इनके फल पर नहीं।
सब कुछ जगन्नाथ जी के हवाले है। वही संभालें। मेरा क्या है? रहूं तो भी, न रहूं तो भी, दुनिया की गति पर कौन-सा अंतर पड़ने वाला है? परन्तु एक बार महाभारत में समलैंगिकता का झूठ फैला दिया गया तो हिंदुओं की आने वाली पीढ़ियों को ‘समलैंगिक’ बनाना आसान हो जाएगा! मेरी लड़ाई अगली पीढ़ी को बचाने के लिए है। जय जगन्नाथ 🙏
sandeepdeo
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