राष्ट्र की मैं आवाज बनूंगा , ऊंची मैं परवाज करूंगा ;
राष्ट्र को काले नाग डंस रहे , इसीलिए मैं बाज बनूंगा ।
हजार साल से राष्ट्र सो रहा , हर हाल में उसे जगाना है ;
देश में दुश्मन भरे पड़े हैं , उनको मार भगाना है ।
सत्य छुप गया पाखंडों में , हर ओर अंधेरा छाया है ;
न्याय का सूरज कहां छुप गया ?क्या सूर्यास्त हो गया है?
अभी नहीं सूर्यास्त हुआ है , केवल बादल छाये हैं ;
तेज हवा बनकर उठ बैठो , बादल दूर भगाये हैं ।
न्याय के सूरज को ढंकने को , भ्रष्टाचारी बादल हैं ;
रिश्वतखोरी जो करते हैं , वो तो सारे पागल हैं ।
ऐसे पागल भरे पड़े हैं , उनको पागलखाने भेजो ;
जितने भी आर्थिक अपराधी ,उन सब को जेलों में भेजो ।
देश की हर -दम करे हिफाजत , तू तो चौकीदार है ;
चौकीदारी भूल गया क्या ? कैसा चौकीदार है ?
अब तुम फौरन होश में आओ ,अपना पूरा धर्म निभाओ ;
राष्ट्रप्रेम का जोश हो ऐसा , सारे दुश्मन मार भगाओ ।
सारी लीपापोती छोड़ो , सख्त एक्शन में आ जाओ ;
खुलेआम दुश्मन से कह दो ,अपनी करनी का फल पाओ।
सख्त कार्यवाही तुम करना , जरा नहीं कोताही करना ;
बेईमान जो नेता अफसर , तय कर दो अब उनका मरना ।
भ्रष्टाचार का दंड मृत्यु हो , इससे कमतर कुछ मत करना ;
बीमारी जो बड़ी हो जितनी , उतना ही इलाज तुम करना ।
अपने बारे में मत सोचो , राष्ट्र का हित सर्वोपरि हो ;
राष्ट्र हमें देता है सब कुछ , राष्ट्र से ऊपर कुछ न हो ।
ऐसा करना बहुत जरूरी , वरना उल्टी गंगा होगी ;
अपराधी सब होंगे ऊपर , न्याय व्यवस्था नीचे होगी ।
तू तो मां का राजा बेटा , भारत माता की लाज रखो ;
हजार साल की जो है लानत , उसको भारत से दूर रखो ।
“वंदे मातरम- जय हिंद”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”