- श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार – गीताप्रेस भारतीय संस्कृति प्राणि मात्र में एक ‘भगवान्’ और ‘आत्मा’ मानती है। इसीलिये प्राणि मात्र का हित चिन्तन उसका सहज स्वभाव है। सबमें परस्पर प्रेम रहे, सब सबका हित साधन करें, कोई किसी से द्वेष-वैर न करे, सब सबको सुख पहुँचाने का प्रयत्न करें – यह हमारा आदर्श है। इसी से भारत का यह स्वाभाविक नारा है –
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग् भवेत् ॥
‘सब सुखी हों, सब तन-मनसे नीरोग हों, सभी को कल्याण का साक्षात्कार हो और दुःख का भाग किसी को न मिले।’ परंतु इस परम पवित्र आदर्श पर विश्वके मनुष्य चलते रहें, इस आदर्श का पालन-संरक्षण और विस्तार हो, इसके लिये प्रयत्न तथा इसमें बाधा देनेवाली प्रबल आसुरी शक्तियों का दमन आवश्यक है। आसुरी शक्ति के दमन में उसका भी हित है। दमन न होने पर वह यदि बढ़ती चली जायगी तो उत्तरोत्तर उसका पापपूर्ण विस्तार होता जायगा, जो उसके लिये भी परिणाम में अत्यन्त घातक होगा।
जैसे अपने ही किसी अत्यन्त सड़े हुए अंगको ऑपरेशन के द्वारा निकलवा देना आवश्यक होता है, उसी प्रकार विश्वमानव- शरीरके सड़े हुए अंगका भी ऑपरेशन आवश्यक है। फिर, जहाँ भौतिक राज्य-संचालनके द्वारा भगवान् की पूजा करनी है, वहाँ तो सुरक्षाका प्रयत्न भी भगवत् पूजा का एक आवश्यक अंग है। हमलोगों ने शान्ति और अहिंसा के नाम पर इसकी ओर ध्यान नहीं दिया, इसीसे आज दुर्दान्त चीन और पाकिस्तान भारतपर आक्रमण करने की बड़ी तैयारी कर रहे हैं और इस समय चीनके द्वारा सैन्य संग्रहके अतिरिक्त आक्रमण की कोई क्रिया न होनेपर भी पाकिस्तान ने तो जहाँ-तहाँ आक्रमण भी आरम्भ कर दिया है।
इनके इस बढ़े हुए रोग का नाश करके इन्हें नीरोग बनाकर इनका हित-साधन करना अत्यन्त आवश्यक है। अतएव भारत को अपना बल-विक्रम, शौर्य-वीर्य इतना बढ़ा लेना चाहिये कि किसी का भी भारतकी ओर ललचायी दृष्टि से देखने का साहस न हो और भारत की जो भूमि अन्यायपूर्वक दबा ली गयी है, उसे भी लौटा देना पड़े। इस दिशा में हमारी सरकार को पूरा प्रयत्न करना चाहिये और जनता को हर तरह से उसमें सरकार की सहायता करनी चाहिये।
भारत सदासे ही शान्ति चाहता है और वह सदा ही शान्ति चाहता रहेगा; पर यदि उसपर कोई अन्याय पूर्वक आक्रमण करना चाहेगा तो उसको पूरा दण्ड दिया जायगा-यह हमारी नीति होनी चाहिये।
परंतु यह स्मरण रखना चाहिये कि केवल भौतिक बल- विक्रमसे ही काम नहीं चलेगा। पूर्ण विजय प्राप्त करनेके लिये ‘अध्यात्मबल’ – दैवी बलकी परम आवश्यकता है। अतएव मूर्खतावश भारतपर आक्रमण करनेवाले इन देशोंकी बुद्धि शुद्ध करनेके लिये और भारतके अजेय बलके सामने इनका साहस सदा के लिये नष्ट हो जाय, इसके लिये स्थान-स्थानपर भगवदाराधन और देवाराधनका पवित्र कार्य होना चाहिये। वैदिक और तान्त्रिक विष्णुयाग, रुद्रयाग, गायत्रीपुरश्चरण, सहस्रचण्डी, लक्षचण्डी आदिके द्वारा शक्तिकी आराधना, मृत्युंजय आदिके द्वारा भगवान् शंकरकी उपासना, वाल्मीकीय रामायण तथा रामचरितमानसके सम्पुटित पारायण, रामरक्षास्तोत्र, नारायणकवच, शिवकवच आदिके अनुष्ठान, बगलामुखीके अनुष्ठान, अखण्ड नामकीर्तन तथा सामूहिक प्रार्थनाके आयोजन सर्वत्र होने चाहिये ।
हम अपने देशवासियों का ध्यान नम्रता पूर्वक इधर खींचते हुए उनसे निवेदन करते हैं कि वे अपने-अपने क्षेत्रमें तन- मन-धनसे यथाशक्ति सरकारकी सहायता करते हुए ही विशेषरूपसे भगवदाराधन और देवाराधनकी ओर ध्यान देकर इन अनुष्ठानोंका आयोजन उत्साहपूर्वक करें-करायें, भगवान्की कृपा पर विश्वास रखें। जहाँ भगवान्का आश्रय होगा और पर्याप्त बल होगा, वहाँ विजय सुनिश्चित है।
जहाँ कृष्ण योगेश्वर प्रभु हों, जहाँ धनुर्धारी हों पार्थ।
मेरे मतसे वहाँ सदा श्री, विजय, भूति ध्रुव नीति यथार्थ ॥