सब कुछ है पर कुछ भी नहीं है,
चैन नहीं है, अमन नहीं है।
कश्मीर के हिंदू भटक रहे हैं,
देश में उनको जगह नहीं है ।
आरक्षण बढ़ता ही जाता,
योग्यता की कद्र नहीं है ।
राष्ट्रद्रोह के शोर निरंतर,
राष्ट्रवाद को जगह नहीं है ।
हिंदू- नेता गाल बजाते,
धर्म की कोई समझ नहीं है ।
साल पिचहत्तर बीत रहे हैं,
फिर भी हम आजाद नहीं है ।
बलदानियों को याद न करते,
गांधीवाद में झूम रहे हैं ।
कामुक, चरित्रहीन जो गांधी,
उसको सर पर बिठा रहे हैं ।
धर्म – सनातन सर्वश्रेष्ठ है,
हिंदू – जिम्मी मिटा रहे हैं ।
आतंकी , बर्बर , हत्यारे ,
सरकारों को झुका रहे हैं ।
जिन कंधों पर चढ़कर पहुंचे,
नेता उनको भुला रहे हैं ।
कैसी है अनबूझ पहेली ?
रक्षक राष्ट्र को मिटा रहे हैं ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”