अजय शर्मा काशी। आप पूछते हो–भगवान नारायण की व्यासपीठ पर बैठ परम् पूज्य जगतगुरु शंकाराचार्य जी है कौन ??
मैं पूछता हूं- आप सनातनी हिन्दू कैसे??
संसार में बौद्ध एवं ईसाई और इस्लाम रिलीजन जो मानव निर्मित हैं और इनके पोप आदि धर्मोपदेशक मनुष्य रूप हैं और इनकी जय जयकार करने वाले तथाकथित हिन्दूजन या विद्वान् पूछ रहे हैं कि इन शंकराचार्यों ने किया क्या?
जबकि सत्य सनातन धर्म के सर्वोच्च धर्मोपदेश शंकराचार्य साक्षात् शिव रूप हैं। परम्परया आदि गुरु शंकराचार्य के पद पर अधिष्ठित व्यक्ति साक्षात् शिव रूप हैं। इन पर किसी भी प्रकार से आक्षेप, इनके प्रति अनर्गल प्रलाप शिवद्रोह है। आदि गुरु शंकराचार्य की परम्परा में वर्तमान शंकराचार्यों के प्रति अनर्गल प्रलाप करने वाले तथाकथित विद्वान् स्वयं आकलन करें कि वे ऐसा कर किसको प्रसन्न करना चाहते हैं?
इन हिन्दु विद्वानों को ज्ञात होना चाहिए कि जब बौद्ध के प्रसार से सनातन परंपरा रौंदी जा रही थी तब सनातन परंपरा का पुनरुत्थान आदि गुरु शंकराचार्य ने ही किया और सनातन हिन्दुत्व परम्परा के स्वाभिमान को जागृत किया और आपको हमको सनातन धर्मी हिन्दू कहलाने योग्य बना दिए ।
सनातन धर्मग्रंथों के अनुसार आज जिस भारत का स्वरूप हम आप देख रहे हैं उसके शिल्पी आदिगुरु शंकराचार्य ही रहे हैं, क्योंकि भारत को एकसूत्र में बांधने का कठिन कार्य आचार्य शंकर ने ही किया। उन्होंने देश के चारों प्रमुख धामों (रामेश्वर, द्वारिका, बद्रीनाथ, जगन्नाथ) में धर्म प्रचार के लिए मठों की स्थापना की। प्रत्येक मठों को एक-एक वेद और एक महावाक्य सौंपा-
१. ज्योतिर्मठ- बद्रीनाथ ।’अयं आत्मा ब्रह्म’- अथर्ववेद
२. गोवर्धन पीठ- जगन्नाथपुरी। ‘प्रज्ञानं ब्रह्म’-ऋगवेद
३. शारदा पीठ- द्वारिकापुरी। ‘तत्त्वमसि’- सामवेद
४. श्रृंगेरी पीठ- कर्नाटक। ‘अहं ब्रह्मास्मि’- यजुर्वेद।
सनातन संस्कृति के पुरोधा सनकादि महर्षियों का प्राथमिक सर्ग जब उपरति को प्राप्त हो गया, अभ्युदय तथा नि:श्रेयसप्रद वैदिक सन्मार्ग की दुर्गति होने लगी, फलस्वरुप स्वर्ग दुर्गम होने लगा, अपवर्ग अगम हो गया, तब इस भूतल पर भगवान भर्ग (शिव) शंकर रूप से अवतीर्ण हुये–
सर्गे प्राथमिके प्रयाति विरतिं मार्गे स्थिते दौर्गते स्वर्गे दुर्गमतामुपेयुषि भृशं दुर्गेऽपवर्गे सति।
वर्गे देहभृतां निसर्ग मलिने जातोपसर्गेऽखिले
सर्गे विश्वसृजस्तदीयवपुषा भर्गोऽवतीर्णो भुवि।।
भगवान शिव द्वारा द्वारा कलियुग के प्रथम चरण में अपने चार शिष्यों के साथ जगदगुरु आचार्य शंकर के रूप में अवतार लेने का वर्णन पुराणशास्त्र में भी वर्णित हैं जो इस प्रकार हैं–
कल्यब्दे द्विसहस्त्रान्ते लोकानुग्रहकाम्यया।
चतुर्भि: सह शिष्यैस्तु शंकरोऽवतरिष्यति।।
(भविष्योत्तर पुराण ३६)
अर्थात्, कलि के दो सहस्त्र वर्ष व्यतीत होने के पश्चात् लोक अनुग्रह की कामना से श्री सर्वेश्वर शिव अपने चार शिष्यों के साथ अवतार धारण कर अवतरित होते हैं।
निन्दन्ति वेदविद्याञ्च द्विजा: कर्माणि वै कलौ।
कलौ देवो महादेव: शंकरो नीललोहित:।।
प्रकाशते प्रतिष्ठार्थं धर्मस्य विकृताकृति:।
ये तं विप्रा निषेवन्ते येन केनापि शंकरम्।।
कलिदोषान्विनिर्जित्य प्रयान्ति परमं पदम्।
(लिंगपुराण ४०. २०-२१.१/२)
अर्थात्, कलि में ब्राह्मण वेदविद्या और वैदिक कर्मों की जब निन्दा करने लगते हैं; रुद्र संज्ञक विकटरुप नीललोहित महादेव धर्म की प्रतिष्ठा के लिये अवतीर्ण होते हैं। जो ब्राह्मणादि जिस किसी उपाय से उनका आस्था सहित अनुसरण सेवन करते हैं; वे परमगति को प्राप्त होते हैं।
कलौ रुद्रो महादेवो लोकानामीश्वर: पर:।
न देवता भवेन्नृणां देवतानांच दैवतम्।।
करिष्यत्यवताराणि शंकरो नीललोहित:।
श्रौतस्मार्त्तप्रतिष्ठार्थं भक्तानां हितकाम्यया।।
उपदेक्ष्यति तज्ज्ञानं शिष्याणां ब्रह्मसंज्ञितम्।
सर्ववेदान्तसार हि धर्मान वेदनदिर्शितान।।
ये तं विप्रा निषेवन्ते येन केनोपचारत:।
विजित्य कलिजान दोषान यान्ति ते परमं पदम।।
(कूर्मपुराण १.२८.३२-३४)
अर्थात्, कलि में देवों के देव महादेव लोकों के परमेश्वर रुद्र शिव मनुष्यों के उद्धार के लिये उन भक्तों की हित की कामना से श्रौत-स्मार्त – प्रतिपादित धर्म की प्रतिष्ठा के लिये विविध अवतारों को ग्रहण करेंगें। वे शिष्यों को वेदप्रतिपादित सर्ववेदान्तसार ब्रह्मज्ञानरुप मोक्ष धर्मों का उपदेश करेंगें। जो ब्राह्मण जिस किसी भी प्रकार उनका सेवन करते हैं, वे कलिप्रभव दोषों को जीतकर परमपद को प्राप्त करते हैं।
व्याकुर्वन् व्याससूत्रार्थं श्रुतेरर्थं यथोचिवान्।
श्रुतेर्न्याय: स एवार्थ: शंकर: सवितानन:।।
(शिवपुराण-रुद्रखण्ड ७.१)
अर्थात्, सूर्यसदृश प्रतापी श्री शिवावतार आचार्य शंकर श्री बादरायण- वेदव्यासविरचित ब्रह्मसूत्रों पर श्रुतिसम्मत युक्तियुक्त भाष्य संरचना करते हैं।
शेष भगवान नारायण की व्यासपीठ का वर्णन जल्द । जय जय सीताराम हर हर महादेव
धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों मे सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो——–!