सोनाली मिश्रा । वर्ष 1999 था। भारत की “सहिष्णु” धरती पर पोप जॉन पॉल द्वितीय ने कदम रखा और फिर अपना एजेंडा दोहराया कि लोगों को ईसाई बनाने की प्रक्रिया को जारी रखना है। यहाँ तक कि कई समाचार पत्रों ने पोप की यात्रा का विरोध करने वाले हिन्दू संगठनों को ही “मिलिटेंट आर्गेनाइजेशन” कहा था। ईसाई मीडिया ने उस दुस्साहस की सराहना की थी, जिसमें पोप ने दिवाली वाले दिन ही ज्यादा से ज्यादा लोगों को ईसाई बनाने के क्रूसेड पर बल दिया था।
अर्थात पोप का जो दौरा था, वह विशुद्ध रिलीजियस था और वह इसलिए था क्योंकि वेटिकन के अनुसार इस सदी में एशिया में इसाइयत की फसल लहलहाने का उद्देश्य लेकर आए थे। इस पर लोगों ने विरोध किया था। हिंदूवादी संगठनों का कहना था कि उन्हें पोप से कोई समस्या नहीं है, परन्तु उन्हें हिन्दुओं के बलात मतांतरण से समस्या है।
उसी वर्ष जनवरी में ओड़िशा में आदिवासियों के जबरन मतांतरण के कारण गुस्से और दुःख में आकर दारा सिंह नामक युवक ने जला दिया था। यह कदम किसी व्यक्तिगत विवाद के कारण दारा सिंह ने नहीं उठाया था, बल्कि कारण था उसका धर्म! कारण था धर्म के प्रति लगाव और पीड़ा! अपने धर्म का अपमान न सह पाना!
जैसे नुपुर शर्मा अपने महादेव का अपमान नहीं सह पाईं! और उन्होंने उस दिन डिबेट में अपना आपा खो दिया। वह आक्रोश और क्रोध मात्र नुपुर का नहीं था, बल्कि शिवलिंग को फुव्वारा बताए जाने को लेकर था। और जिस प्रकार कट्टर इस्लामी महादेव का अपमान कर रहे थे, उनके प्रति गुस्से के कारण था।
वह भी नुपुर शर्मा ने यही कहा कि कहने को तो हम भी यह कह सकते हैं, परन्तु हम कहते नहीं! उस वीडियो के आधार पर जो भी बवाल मचा और उसके कारण जो निर्णय लिया गया, उस पर काफी कुछ कहा जा चुका है। आज हम कुछ और लिखना और कहना चाहते हैं।
आप यह सोच रहे होंगे कि आखिर दारा सिंह और नुपुर शर्मा के मामलों की तुलना क्यों की जा रही है? क्योंकि नुपुर ने तो वध नहीं किया है! यह सत्य है कि नुपुर शर्मा ने ऐसा कुछ नहीं किया है, बल्कि उन्होंने जो भी मौखिक कहा है, वह दरअसल सत्य ही व्यक्त किया है।
क्या है इन दोनों मामलों का सम्बन्ध?
जब नुपुर शर्मा को निलंबित किया गया तो उसके बाद क़तर को दिए गए स्पष्टीकरण में भारत सरकार ने एक शब्द का प्रयोग किया। वह शब्द अत्यंत आपत्तिजनक है। क़तर को भेजे गए स्पष्टीकरण में कहा गया कि जो कुछ भी कहा गया है, वह “फ्रिंज एलीमेंट” ने कहा है। फ्रिंज एलीमेंट को ऐसे तत्व के रूप में समझा जा सकता है, जो शरारत पूर्ण कृत्य करते हैं, जो दूसरे का अपमान करते हैं, आदर नहीं करते हैं आदि आदि! तो अपनी ही प्रवक्ता के लिए, जो अपने आराध्य का अपमान सहन नहीं कर सकी, उसके लिए “फ्रिंज एलीमेंट्स” शब्द का प्रयोग किया गया।
अब इसी शब्द को लेकर बार-बार यह कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी के नेता तो फ्रिंज एलीमेंट्स हैं। परन्तु यह कहानी और भी पुरानी है। हिन्दुओं के प्रति हर सरकार का यही दृष्टिकोण होता है। जहाँ हम देखते हैं कि राहुल गांधी ने यह कहा था कि जो लोग मंदिर जाते हैं, वही लडकियां छेड़ते हैं।
अर्थात मंदिर जाने वालों को लडकियां छेड़ने वाला बता दिया था। अर्थात वह भी कहीं न कहीं फ्रिंज एलीमेंट ही होते हैं। ऐसा ही एक बहुत हैरान करने वाला वक्तव्य भारत के प्रधानमंत्री श्री मोदी जी का भी आया था, जिसमें उन्होंने गौ रक्षकों को “गुंडा” कहा था और कहा था कि 80 प्रतिशत गौ रक्षक गोरखधंधों में लिप्त हैं!
सबसे पहले तो इस शब्द गोरखधंधे पर ही हिन्दुओं को आपत्ति होनी चाहिए। क्योंकि गोरखधंधा शब्द का प्रयोग अनैतिक, अवैध कार्यों के लिए किया जाता है। परन्तु क्या हिन्दू होने के नाते गोरखधंधा शब्द अपमानजनक नहीं है?
गोरख-गोरक्ष शब्द से ही आया है। और गोरखनाथ समुदाय के विषय में कौन नहीं जानता? हाल ही में हरियाणा सरकार ने इस शब्द पर प्रतिबन्ध लगा दिया है।
तो प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कुछ वर्ष पहले भी गौ तस्करों पर बात न करके 80% प्रतिशत गौ रक्षकों को ही दोषी ठहरा दिया था। दरअसल उन दिनों गुजरात में उना काण्ड का शोर बहुत था। तो उसके चक्कर में 80% ऐसे लोगों को ही गाय के नाम पर दुकान खोलने वाला बता दिया था।
क्योंकि इस मामले में भी दलित के नाम पर बाहरी दबाव आने लगा था।
तो बाहरी अर्थात पश्चिम और वामपंथी एवं इस्लामिक दबावों के कारण हिन्दू धर्म का पालन करने वालों, सेवा करने वालों को ही कहीं न कहीं कोसा गया है!
ऐसे ही और थोडा पीछे चलते हैं और देखते हैं कि दारा सिंह का नाम क्यों लिया गया है और आज दारा सिंह कहाँ हैं?
क्या हुआ था वर्ष 1999 में?
वर्ष 1999 में जनवरी में दारा सिंह ने ऑस्ट्रेलिया मिशनरी ग्राहम स्टेंस का वध कर दिया था। ग्राहम स्टेंस के साथ उनके दो बच्चे भी जल कर मर गए थे और इस कारण भारत की बहुत आलोचना हुई थी। परन्तु कोई भी देश यह समझने के लिए तैयार नहीं है कि आखिर क्यों जबरन हिन्दुओं को ईसाई या मुस्लिम बनाना है? अंतत: इतनी बाध्यता क्या है?
दारा सिंह के मन में अपने धर्म को लेकर जो प्रेम था उसका प्रस्फुटन इस रूप में आया। उसी वर्ष पोप जॉन पॉल द्वितीय नवम्बर में आए। और उनके आने के साथ ही और उससे पहले हिन्दू धर्म के लिए कार्य करने वाले संगठनों के विरोध प्रदर्शन आरम्भ हो गए थे। परन्तु पोप पर इनका कोई प्रभाव नहीं पड़ा था। बल्कि ईसाई मीडिया ने यही कहा कि “पोप ने मिलिटेंट हिंदुत्ववादी संगठनों के विरोध की परवाह नहीं की!”
परन्तु वह मिलिटेंट कैसे हैं, यह बताने में ईसाई मीडिया विफल रहता है! वह उन संगठनों को कैसे मिलिटेंट कह सकते हैं, जो अपने धर्म के लिए कार्य कर थे हैं। जिनकी एकमात्र मांग यही है कि कम से कम उनकी यह बात तो सुनी जाए कि आप लालच या धमकी के आधार पर धर्मांतरण न करें!
परन्तु जैसे आज धर्म की आवाज उठाने पर नुपुर शर्मा को फ्रिंज एलीमेंट कहा गया है, वैसे ही उस समय दारा सिंह और उन हिन्दू संगठनों को क्या कहा गया था? और किसने कहा था? उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई ने क्या कहा था?
हमने अपने पहले एक लेख में इसे लिखा भी है।
जब पोप वर्ष 1999 में भारत आए थे तो उस समय हिन्दू संगठनों ने विरोध किया था, कि मिशनरी जबरन धर्मांतरण करवा रही हैं। इस जबरन धर्मांतरण का विरोध करने वालों को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई ने पुलिस और पैरामिलिट्री जवानों की सहायता से दबवा दिया था। न्यूयॉर्क टाइम्स सहित सभी विदेशी मीडिया ने इस घटना को कवर किया था और लिखा था कि किस प्रकार गांधी स्मारक के पास “धर्मांतरण” का विरोध करने वाले हिन्दू राष्ट्रवादियों को पुलिस ने हिरासत में लिया था।
न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई ने भारतीय संविधान के विषय में बात करते हुए कहा था कि “होली फादर, आप जानते हैं कि भारत धार्मिक स्वतंत्रता की भूमि है, परन्तु हमारे यहाँ भी कुछ इंटोलरेन्स फ्रिंज” हैं।
इस यात्रा का विरोध करते हुए हिन्दू संगठनों ने जबरन धर्मांतरण करने वाली मिशनरी के पुतले जलाए थे।
https://www।youtube।com/watch?v=EAbOqjOl5LA
हालांकि ईसाई मिशनरियों ने इस बात से इंकार कर दिया था कि वह गरीबों का जबरन धर्मांतरण कराते हैं, जबकि वनवासी समूहों ने भी उनकी इस यात्रा का विरोध किया था।
यह कैसा संयोग है कि जब-जब ईसाई, वामी और इस्लामी एजेंडे के चलते किसी घटना पर सरकार दबाव में आती है तो उसके निशाने पर केवल और केवल हिन्दू ही होते हैं। कांग्रेस एवं अन्य दलों का तुष्टिकरण एजेंडा सभी को पता है, तभी हिन्दू भारतीय जनता पार्टी पर विश्वास करता है और उसे लगता है कि जो विषय कांग्रेस नहीं उठाती है, जिन पर बात करने से डरती है, उसे कम से कम भारतीय जनता पार्टी उठाएगी और उन पर काम करेगी, परन्तु जब उन्हें ही दोषी ठहरा दिया जाता है, तो उसे ठेस लगती है।
जैसे श्री अटल जी की सरकार में पोप के सामने हिन्दू धर्म के संगठनों के सदस्यों को हिरासत में ले लिया गया था, जैसे अभी जब कतर जैसे देश, जिसकी संलिप्तता आतंकवाद में है, और जिसने कट्टरपंथी और हिन्दुओं के देवी देवताओं के नंगे चित्र बनाने वाले एम एफ हुसैन को शरण दी थी।
क्या आज तक कतर से भारत सरकार ने यह प्रश्न किया कि उसने हिन्दुओं के देवी देवताओं को नंगा चित्रित करने वालों को शरण क्यों दी?
दारा सिंह का क्या हुआ?
अब यह प्रश्न उठता है कि दारा सिंह का क्या हुआ? दारा सिंह को उस समय फांसी देने के लिए बहुत एड़ी चोटी का जोर लगाया गया था, परन्तु उच्चतम न्यायालय द्वारा दारा सिंह को उम्र कैद की सजा सुनाई गयी थी।
हालांकि जघन्य से जघन्य हत्या काण्ड के मामलों में लोगों को आसानी से पैरोल मिल जाती है, फिर भी दारा सिंह को न ही पिता और न ही माँ की मृत्यु पर पेरोल मिली। दारा सिंह के माता पिता की अस्थियाँ विसर्जन के लिए रखी थीं, परन्तु उन्हें 20 वर्षों की सजा के बाद भी रिहा नहीं किया गया है।
अमर उजाला के अनुसार
“दारा सिंह के ककोर निवासी भाई अरविंद कुमार पाल ने बताया कि उनके पिता मिहीलाल की मौत वर्ष 2005 में एवं माता राजरानी की मौत वर्ष 2012 में हुई थी। मौत के बाद भाई को पैरोल पर रिहा करने की मांग की थी। परंतु उन्हें पैरोल पर भी रिहा नहीं किया गया। भाई के रिहा होने के इंतजार में माता-पिता की अस्थियां विसर्जन के लिए रखीं थीं।
बताया कि मेरी बेटी शादी लायक है। इसलिए जानकारों से राय ली तो बताया कि जब तक माता-पिता की अस्थियां विसर्जित नहीं हो जाती। तब तक मांगलिक कार्य शुरू नहीं होंगे। इसलिए 15 दिन पहले माता-पिता की अस्थियां विसर्जित की गईं। बताया कि प्रधानमंत्री से लेकर उड़ीसा के राज्यपाल को रिहा करने की मांग संबंधी पत्र भेजे गए।“
हाल ही में हमने देखा कि राजीव गांधी जी के हत्यारे को भी रिहा कर दिया गया। यहाँ तक कि एक बच्ची के बलात्कार और हत्या के मामले में तो न्यायालय ने यह तक कहा है कि हर पापी का एक भविष्य होता है! तो फिर ऐसा क्या है कि दारा सिंह को 20 वर्ष की सजा पूरी होने के बाद रिहा नहीं किया जा रहा है?
नुपुर शर्मा के समय में इन्टरनेट और सोशल मीडिया के कारण लोग समस्या को समझ पा रहे हैं, वह प्रश्न उठाते हैं कि हिन्दुओं के आराध्यों के विषय में आप कुछ भी बोलें आपको स्वतंत्रता है, परन्तु यदि अब्रह्मिक कल्ट के विषय में किसी ने कुछ बोला तो या तो हाल कमलेश तिवारी जैसा होगा या फिर गुजरात के कृष्ण भरवाड के जैसा!
इस समय लोगों में गुस्सा है, प्रश्न हैं और सरकार द्वारा जब हिन्दुओं की बात करने वालों को फ्रिंज एलीमेंट, गुंडा, और इंटोलरेन्स फ्रिंज कहती है, तो विश्वासघात जैसा आभास होता है!
नुपुर शर्मा को जो फ्रिंज एलीमेंट कहा गया है, वह हिन्दुओं के लिए इंटोलरेन्स फ्रिंज से फ्रिंज एलीमेंट तक की यात्रा है और वह भी वामी, इस्लामी और ईसाई दबाव के कारण! वहीं नुपुर शर्मा के साथ पार्टी से निकाले गए नवीन जिंदल की जान को भी उन तत्वों से खतरा है, जो नुपुर का सिर तन से जुदा करने की बात कर रहे हैं!
आखिर हिन्दुओं का विमर्श क्या है और कहाँ हैं?