राष्ट्र घिरा है संकट में ,पर संकट- मोचन गफलत में ;
अपनी ताकत भुला चुका है व राष्ट्र पड़ा है सांसत में ।
राम – भक्त को जेल की यात्रा व गुंडे नंगा – नाच करें ;
सड़क घेरते रहते राक्षस , भले लोग बेमौत मरे ।
सामूहिक – संहार कर रहे , देश में राक्षस जगह-जगह ;
क्या कश्मीर है? क्या बंगाल है? बन गए मोपला कई जगह
शौर्य और साहस का कोई , बिल्कुल नहीं विकल्प है ;
राष्ट्रधर्म के लिए लड़ो अब , करना ये संकल्प है ।
कब तक लड़ने से भागोगे ? इसका कोई अंत नहीं ;
डरने से भी मौत मिल रही , दुश्मन कोई संत नहीं ।
तुम तो भूल गये हो साहस , दूध लजाया माता का ;
हाथों में हथियार उठाओ , जयकारा कालीमाता का ।
शत्रुबोध को जागृत करके , शत्रु – मित्र को पहचानो ;
छिपे भेड़िए देश के अंदर,उन सबको अब ठीक से जानो ।
गांधी के दुष्चक्र को तोड़ो , वो पक्का गद्दार था ;
हिंदू धर्म का जानी दुश्मन , गुंडों का वो यार था ।
उसकी छद्म अहिंसा ने , तुमको डरपोक बना डाला ;
तुम सब शेर के बच्चे थे , गांधी ने भेंड़ बना डाला ।
गांधी ने भोगा कर्मो को , घंटों तड़पा गोली खाकर ;
पर उसके चेले चाटों ने , षड्यंत्र रचा आगे जाकर ।
साल चौहत्तर बीत गये , पर सब कुछ जैसे का तैसा ;
दोयम दर्जा है हिंदू का , वो अब भी है पहले जैसा ।
बहुतेरे मंदिर ध्वस्त हुये , कुछ पर सरकारी कब्जा ;
सरकारी लूट है मंदिर की , हिंदू होने की मिली सजा ।
हिंदू का ये देश अकेला , हिंदुस्तान कहाता है ;
वामी , कामी , धिम्मी को तो बस ,पाकिस्तान सुहाता है ।
उनको सरकारी संरक्षण , पर हिंदू केवल लुटने को ;
कितनी गंदी है राजनीति , हिंदू है केवल मरने को ।
इससे पहले कि मिट जाओ , तुम अंतिम एक प्रयत्न करो ;
सारे हिंदू एकजुट होकर , एक नई पार्टी गठन करो ।
परम – साहसी हिंदूवादी नेताओं का , चयन करो ;
भारत को हिंदू राष्ट्र बनाकर ,हर दुर्गति का दमन करो ।
“वंदेमातरम-जयहिंद”
रचयिता:ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”