वस्त्र – विन्यास , बनाव – श्रृंगार और फैशनपरस्ती ;
इसी में डूबकर रह गई है तेरी हस्ती ।
लोकेषणा में फंसा है इस कदर, सच्चाई से कोसों दूर हुआ ;
चरित्रवान से भय खाता है , चापलूस ही निकट हुआ ।
कोई सही राय न माने , बस मंदिर तुड़वाता है ;
सबके विश्वास की बातें करके , तुष्टीकरण बढ़ाता है ।
शासन पूरा कूड़ा – करकट , कानून – व्यवस्था चौपट है ;
जान , माल , इज्जत न सुरक्षित , आजाद घूमते लम्पट हैं ।
राष्ट्रवाद को पीछे करके , आगे है अल्पसंख्यकवाद ;
ध्वस्त हुई आंतरिक- सुरक्षा , पूरा हावी है गुंडावाद ।
शाहीन – बाग को हलवा – पूड़ी , रोड – जाम करवाया ;
अश्वनी , जितेंद्र से राष्ट्रभक्त को , जेलों में पहुँचाया ।
मंदिर का धन लूट-लूट कर , जजिया में लुटवाया ;
कितनी भरी गुलामी मन में , झूठा – इतिहास पढ़ाया ।
धर्म – संस्कृति को बिसराया , मजहबवाद बढ़ाया ;
जाने क्या है तेरे – मन में ? धर्म – द्रोह अपनाया ।
अपने धर्म का हो न सका जो , देश का वो क्या होगा ?
ठीक से इसको हिंदू समझे , वरना धर्म नष्ट सब होगा ।
धर्म , राष्ट्र व देश बचाने का , ये अंतिम – मार्ग ;
हिंदू – राष्ट्र बनाओ भारत , केवल ये सन्मार्ग ।
नेतृत्व देश का यूपी सा हो , या फिर हो आसाम सा ;
पार्टी वाले इसे न माने , तो वो दल किस काम का ।
तब सारे हिंदू , ये दल ठुकरायें व एक नया दल लायें ;
और सारे दल के कट्टर – हिंदू , एक मंच पर आयें ।
सदियों से चल रहा है गजवा , इसको पूरा नष्ट करो ;
राष्ट्र – धर्म की उठे सुनामी , देश को हिंदू – राष्ट्र करो ।
तब सारे अत्याचार मिटेंगे , अन्याय सभी मिट जायेंगे ;
हिंदू – राष्ट्र बनेगा भारत , सभी पाप कट जायेंगे ।
सर्वश्रेष्ठ है धर्म – सनातन , संपूर्ण – जगत में छायेगा ;
मानवता का जो भी दुश्मन , दुनिया से जायेगा ।
हर हाल में ये सब होके रहेगा , बस हिंदू जग जाना है ;
अंधकार सब मिट जायेगा व प्रकाश को आना है ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”,
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”