कितना महंगा हुआ इलेक्शन , भले लोग न आ पाते ;
केवल पैसे वाले आते , आकर भ्रष्टाचार बढ़ाते ।
भ्रष्टाचार के इस दलदल में , राष्ट्र हमारा डूब गया ;
ठीक से सूरज निकला न था , उससे पहले डूब गया ।
भ्रष्टाचार से सभी त्रस्त हैं , लेकिन सब मजबूर हैं ;
शासन इसमें कुछ न करता , सत्ता तो मगरूर है ।
इतना पैसा कमा रहे हैं , शायद इनके साथ जायेगा ;
कितना बड़ा अज्ञान है इनका , यही तो इन्हें डुबोयेगा ।
ये भी डूबें , घर भी डूबे , जनता को भी ले डूबें ;
सारा सब कुछ डूब जायेगा , देश को लेकर भी डूबें ।
इतना बुरा हाल है इनका , राष्ट्र बचाना भी मुश्किल ;
राष्ट्रभक्त अब फौरन संभलें,अस्तित्व बचाना भी मुश्किल।
धर्म के दुश्मन ताक में बैठे , कितने दंगे होते हैं ;
हाथ पांव नेता के फूले , वो तो केवल रोते हैं ।
भ्रष्टाचार से हुये खोखले , इनके बूते का राष्ट्र नहीं ;
सारे हिंदू होश में आयें , वरना समझो राष्ट्र नहीं ।
राष्ट्र में फैले राष्ट्र के दुश्मन , जड़ों में मट्ठा डाल रहे ;
हिंदू बंटा हुआ तबको में , अपनी डालें काट रहे ।
जहां नहीं सम्मान योग्य का , राष्ट्र नष्ट हो जाता है ;
शांति व्यवस्था चौपट होती , भ्रष्टाचार बढ़ जाता है ।
हर हालत में योग्य हो आगे , आरक्षण को हटाना है ;
राष्ट्र की बहुत बड़ी लानत है , इससे मुक्ति पाना है ।
इतने संसाधन भरे राष्ट्र में , ठीक से वितरण करना है ;
भूखा नंगा कोई न होगा , भ्रष्टाचार हटाना है ।
राष्ट्र बचाने के दो रास्ते , किसी एक को अब अपनाओ ;
या तो भ्रष्टाचार हटाओ , या फिर हिंदू राष्ट्र बनाओ ।
कुछ भी तुमसे हो न सके तो , दाढ़ी अपनी और बढ़ाओ ;
राजनीति को टाटा करके, छोड़के सब आश्रम को जाओ।
“वंदे मातरम -जय हिंद”
रचनाकार :बृजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”