नेता ये अब्बासी – हिंदू , सबसे बड़ी पनौती है ;
सत्ता को जागीर समझता , माने इसे बपौती है ।
गंदी – राजनीति है इसकी , केवल पूरी धोखेबाजी ;
कभी नहीं ये सत्य बोलता , करता लफ्फाजी-जुमलेबाजी ।
खूब चली नाटक – नौटंकी , रेत पे इसने नाव चलाई ;
पर अब पोल खुल चुकी इसकी , अब इसकी शामत आई ।
जहाँ-जहाँ भी हाथ लगाता , सब-कुछ चौपट हो जाता है ;
जहाँ-जहाँ भी चरण पड़ रहे , बंटाधार ही हो जाता है ।
काठ की हांडी जल गयी है पूरी , ठंडा पूरा चूल्हा है ;
पर चोरों की हर बारात में , बनता ये ही दूल्हा है ।
पूरी तरह खिसियाई-बिल्ली , हर खम्भे को नोंच रही है ;
खट्टे-अंगूर पा गयी लोमड़ी , जगह-जगह ही नाच रही है ।
तंत्र-मंत्र जितने भी इसके , सब के सब पड़ गये हैं उल्टे ;
कहाँ नमाज बख्शानी चाही , रोजे गले पड़ गये उल्टे ।
भाग्य का दीपक बुझने वाला , सारा तेल जल चुका है ;
सारा पाखंड खुल गया इसका , सारा हिंदू जान चुका है ।
तिलक-त्रिपुंड सभी कुछ झूठा, केवल हिंदू को भरमाता था ;
इसके चक्कर में फंसकर हिंदू , कितना गला कटाता था ?
भले – लोग सब दूर हो चुके , केवल गुंडे ही साथ हैं ;
या फिर ढोल के साथी डंडे , मजबूरी में साथ हैं ।
हिंदू ! लहर बनाये रखना , इसका जहर मिटाकर रहना ;
आम चुनाव जो आने वाला , उसमें अच्छी-सरकार बनाना ।
अब जब अमृत हुआ उपस्थित, सारे हिंदू इसको अपनायें ;
“एकम् सनातन भारत” अमृत है, इसकी ही सरकार बनायें ।
धर्म – सनातन के प्रकाश से , ये पूरा-दल चमक रहा है ;
गुंडो की ऑंखें चुधिंया गयी हैं , गुंडा-शासन दरक रहा है ।
अब गुंडो के अच्छे-दिन बीते , हिंदू के बुरे-दिन जायेंगे ;
अब हिंदू धोखा नहीं खायेंगे , धर्म का शासन लायेंगे ।
“एकम् सनातन भारत” का शासन, पूरी तरह धर्ममय होगा ;
कृष्ण-विदुर-चाणक्य नीति से , सबके संग न्याय ही होगा ।
पूरी तरह अपराध मिटेगा , आतंकवाद मिट जायेगा ;
“राम-राज्य” की तरह सुशासन , तब भारत में आयेगा ।