उल्टी-गिनती शुरू हो गयी
अब्बासी-हिंदू बन चुका पनौती , हार रहा हर बाजी जीती ;
पूरब-पश्चिम , उत्तर-दक्षिण , सभी जगह किस्मत है रीती ।
इसका खेल खत्म होने को , गिने-चुने ही माह बचे हैं ;
लौटके अब न आ आयेगा , शक्ल में इसके बारह बजे हैं ।
अब तो चला-चली की बेरा , तोड़ दे माया-मोह का घेरा ;
तेरे सारे कर्म सामने , संकट बनके तुझको घेरा ।
सारे कर्म भुगतने होंगे , इसमें कोई भी न माफी ;
जैसी करनी – वैसी भरनी , सद्दाम हुसैन या गद्दाफी ।
बड़े-बड़े मिल गये खाक में , तेरी तो क्या हस्ती है ?
जितनी तूने धरती काटी , उसकी सजा क्या सस्ती है ?
बहुत सरल है राजनीति में , हिंदू को ही मूर्ख बनाना ;
तिलक – त्रिपुंड का झांसा देकर , उनका नेता बन जाना ।
हिंदू सच्चा – धर्म न जाने , पाखंडों में फंसा हुआ है ;
सरकारी – गुंडो की चक्की , दोनों पाटों में फंसा हुआ है ।
टैक्स बढ़ा लूटें सरकारें , गुंडा गर्दन काट रहा है ;
कानून का शासन पूरा चट है , अब्बासी-हिंदू चाट रहा है ।
अब्बासी-हिंदू की यही है ख्वाहिश , हिंदू को मरवाने की ;
ए सी वाई पी एल की ट्रेनिंग , धर्म-सनातन मिटवाने की ।
अब्बासी – हिंदू का भेद खुल रहा , अब न सत्ता पायेगा ;
इसी बार ही इस चुनाव में , मुँह काला कर जायेगा ।
पाँच-माह ही शेष बचे हैं , उल्टी-गिनती शुरू हो गयी ;
अब्बासी-हिंदू भी जान चुका है , सारी-बाजी पलट गयी ।
पर अब समय बहुत भारू है , हिंदू ! हर-क्षण जागते रहना ;
अब्बासी-हिंदू हर-दाँव चलेगा , उसको एजेंडा पूरा करना ।
जितना भी वो कर सकता है , संतुष्टीकरण बढ़ायेगा ;
गांव-गांव में शहर- शहर में , दंगों की बाढ़ को लायेगा ।
हिंदू ! किंचित-भर न धोखा खाना , वरना तेरी खैर नहीं है ;
अब्बासी-हिंदू का राज है जंगल , पूरा-पूरा अंधेर यहीं है ।
हिंदू ! सदा संभल कर रहना, कभी भी हमला हो सकता है ;
पाँच-माह का समय काट लो , इसमें कुछ भी हो सकता है ।
वुल्फ-अटैक हो रहे हैं निसिदिन , हिंदू ! इनसे बचना है ;
सदा सतर्क हिंदू को रहना , “राणा-प्रताप” सा लड़ना है ।
हिंदू ! अपना-बल पहचानो , “एकम् सनातन भारत” है ;
हिंदू ! इसकी सरकार बनाओ, तब पूर्ण-सुरक्षित भारत है ।